1971 में पाइन डिव ने दिखाया दमखम... जेसोर फतह कर बंदी पाक सैनिकों को भी ले आई थी पाइन डिव

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मेरठ छावनी स्थित पाइन डिवीजन मुख्यालय में आयोजित जेसोर दिवस कार्यक्रम में बलिदानियों को सलामी देते पाइन डिवीजन के जनरल आफिसर कमांडिंग मेजर जनरल प्रणय डंगवाल। जागरण



जागरण संवाददाता, मेरठ। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से कराह रही जनता को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से भारत ने 1971 में निर्णायक कदम उठाया। आपरेशन कैक्टस लिलि में महज 13 दिन में भारतीय फौज ने दुश्मन को परास्त कर ऐतिहासिक विजय हासिल की। ढाका पर कब्जे के साथ ही 94 हजार पाकिस्तानी सैनिकों व अधिकारियों ने हथियार डाल दिए। युद्ध इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण का यह पहला उदाहरण था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

16 दिसंबर को प्रतिवर्ष विजय दिवस मनाकर देश उस गौरवशाली क्षण को नमन करता है। इस अद्भुत विजय के यज्ञ में मेरठ की भूमिका भी स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यहां के वीर सपूतों ने न केवल रणभूमि में मोर्चा संभाला, बल्कि चार हजार से अधिक पाक युद्धबंदियों को भी मेरठ छावनी के विभिन्न कैंपों में रखा गया। जेसोर फतह में मेरठ छावनी स्थित पाइन डिवीजन ने भी निर्णायक भूमिका निभाई थी।

भारत के विजय तिलक में पाइन डिवीजन ने जेसोर फतह का टीका लगाया था। उसी विजय पर हर वर्ष पाइन डिवीजन में सात दिसंबर को जेसोर दिवस मनाया जाता है। सोमवार को जेसोर दिवस के आयोजन में पाइन डिवीजन के जनरल आफिसर कमांडिंग मेजर जनरल प्रणय डंगवाल ने बलिदानियों को पुष्पचक्र चढ़कर नमन किया। कार्यक्रम में पाइन डिवीजन के साथ ही युद्ध में शामिल 32वीं ब्रिगेड के अधिकारी और जवानों ने भी अपने पूर्वजों के बलिदान को श्रद्धासुमन अर्पित किया।

पाइन डिवीजन ने ढहा दिया था पाकिस्तानी सुरक्षा का किला
पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी फौज का अभेद गढ़ माने जाने वाले जेसोर और खुलना को भेदने का श्रेय मेरठ छावनी स्थित पाइन डिवीजन को जाता है। दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था, जो कालीगंज, सखीरा और कृष्णनगर से भारतीय सीमा से जुड़ता था। भारत से करीब 560 किलोमीटर सरहद से जुड़े इस क्षेत्र से करीब 50-60 किलोमीटर दूरी पर ही खुलना-जेसोर-झेनिदा-कुस्तिया को जोड़ता महत्वपूर्ण रास्ता है। यही मार्ग ढाका पहुंचने का दूसरा सबसे छोटा रास्ता भी था। पद्मा और मधुमति जैसी विशाल नदियां इस क्षेत्र को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती थीं।

पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने इस क्षेत्र की रक्षा मेजर जनरल अंसारी के अधीन 9 इन्फेंट्री डिवीजन को सौंपी थी। इसमें ब्रिगेडियर मंजूर की अगुवाई में 57 इन्फेंट्री ब्रिगेड और ब्रिगेडियर हयात खान की अगुवाई में 107 इन्फेंट्री ब्रिगेड शामिल थीं। युद्ध शुरू होते ही पाकिस्तानी सेना ने अपनी 9 डिव का मुख्यालय जेसोर से मगुरा स्थानांतरित कर दिया था। भारतीय सेना के टू कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल रैना ने मधुमति नदी के पश्चिमी क्षेत्र को जीतने के लिए दो डिवीजनों को आगे बढ़ाने की रणनीति बनाई। पाइन डिवीजन, मेजर जनरल दलबीर सिंह के नेतृत्व में और 4 माउंटेन डिवीजन मेजर जनरल एमएस ब्रार के नेतृत्व में दुश्मन किले को ढहाने निकली।

चार दिसंबर को प्रवेश, सात दिसंबर को जेसोर ध्वस्त
चार दिसंबर की सुबह ब्रिगेडियर जेएस घराया की 42 इन्फेंट्री ब्रिगेड ने बायरा मार्ग से प्रवेश कर पाकिस्तानी 107 ब्रिगेड को प्रथम आघात में ही अफ्रा–झिंगरगाछा तक पीछे धकेल दिया। दुश्मन ने मार्ग में एंटी-टैंक माइंस बिछाकर रोकने की कोशिश की। परिस्थितियों को भांपते हुए मेजर जनरल दलबीर सिंह ने 42 ब्रिगेड को अरपारा की ओर बढ़ाया, जबकि ब्रिगेडियर एचएस संधु की अगुवाई में 350 ब्रिगेड को दूसरे छोर से आगे किया गया।

कड़े प्रतिरोध के बाद ब्रिगेडियर तिवारी की 32 ब्रिगेड को लगाते ही मोर्चा पलट गया। यह ब्रिगेड भी वर्तमान में पाइन डिव के साथ छावनी में तैनात हैं। छह दिसंबर सुबह 10 बजे भारतीय सेना ने सुरक्षा घेरा तोड़ दिया। 2 सिख, 7 पंजाब मेकनाइज्ड बटालियन और 63 कैवेलरी स्क्वाड्रन के सहयोग से भारतीय सेना चौगाछा–जेसोर रोड तक पहुंच गई। सात दिसंबर की सुबह 7 पंजाब ने जेसोर एयरफील्ड पर विजय ध्वज फहरा दिया। भारतीय प्रगति से भयभीत मेजर जनरल अंसारी जेसोर छोड़कर भाग निकले। 107 ब्रिगेड के ब्रिगेडियर हयात ने पीछे हटने की अनुमति मांगी, पर नियाजी के आदेश अनुसार 75% सैनिकों के नष्ट होने से पूर्व पीछे हटने की इजाजत नहीं थी। अंततः स्थिति बेकाबू देखकर हयात ने आदेश का उल्लंघन कर स्वयं पीछे हटने का निर्णय लिया।

खुलना मोर्चे पर दुश्मन को 40 मील तक खदेड़ा
जेसोर–झेनिदा विजय के बाद टू कोर कमांडर ने ढाका की ओर बढ़ने का निर्देश दिया। 4 डिव कुश्तिया में युद्ध क्षेत्र छोड़ नहीं सकी जबकि पाइन डिव खुलना मार्ग पर चल रहे आपरेशन में शामिल था। तब मेजर जनरल दलबीर सिंह ने 32 ब्रिगेड को खुलना दिशा में धावा बोलने के लिए भेजा।

पाकिस्तान की 107 ब्रिगेड ने रोकने का भरसक प्रयास किया, पर भारतीय सेना ने चार दिनों में उन्हें 40 मील पीछे धकेलकर दौलतपुर तक पीछे खदेड़ दिया। 16 दिसंबर को हुए सीजफायर तक पाइन डिव खुलना से 14 किमी दूरी पर पाक सेना को परास्त करती रही। गौर करने वाली बात यह है कि 6-7 दिसंबर को जेसोर पतन के तुरंत बाद खुलना की पाकिस्तानी ब्रिगेड ढाका की ओर भाग चुकी थी।

विजय की मुहर है पाकिस्तान का समर्पण
ढाका में ले. जनरल नियाजी ने ले. जनरल रैना के समक्ष आत्मसमर्पण किया। इस मोर्चे पर भारतीय सेना ने 500 हथियार, 18 टैंक, 13 गन व 4 मोर्टार जब्त व नष्ट किए। पाकिस्तान के लगभग 700 सैनिक मारे गए और भारत के 367 सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया। इसी दौरान पाइन डिव मुख्यालय के जीओसी मेजर जनरल दलबीर सिंह के समक्ष ब्रिगेडियर हयात खान ने 107 इन्फैंट्री ब्रिगेड के 81 अधिकारी, 130 जेसीओ और 3,476 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया। यह विजय केवल सैन्य पराक्रम नहीं बल्कि मानवीय संरक्षण, रणनीति, साहस और बलिदान की अद्वितीय गाथा है। जेसोर में मिली जीत ने ढाका के पतन और पाकिस्तान की पराजय की राह प्रशस्त की। भारतीय सैनिकों के शौर्य ने इतिहास के पन्नों पर अमिट स्वर्ण रेखाएं उकेरीं जो सदैव प्रेरणा देती रहेंगी।

विजय के बाद मेरठ छावनी आई थी पाइन डिव
नाइन माउंटेन डिवीजन को एक अगस्त 1964 को स्वर्गीय लेफ्टिनेंट जनरल (तब मेजर जनरल) पीएस भगत की अगुवाई में दोबारा खड़ा किया गया और रांची में मुख्यालय बना। वर्ष 1970 में डिव को इंफेंट्री डिवीजन का दर्जा मिला। वर्ष 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ डिवीजन जंग में उतरी थी। उस युद्ध में पूर्वी पाकिस्तानी सीमा पर दुश्मन को धूल चटाने के बाद वर्ष 1971 की लड़ाई में एक बार फिर पाकिस्तानी सेना को नतमस्तक होने पर विवश कर दिया था।

डिव बनने के बाद इसके साथ 32वीं, 42वीं व 350वीं इंफेंट्री ब्रिगेड जुड़ी। पाकिस्तान पर मिली बड़ी जीत के बाद जनवरी 1976 में डिवीजन रांची से वर्तमान लोकेशन मेरठ छावनी में पहुंची। देश की विभिन्न छावनियों के साथ ही मेरठ छावनी में भी 4,000 से अधिक युद्धबंदी सैनिक लाए गए थे।
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