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Sitamarhi News: बिचौलियों के हाथ धान बेचने को विवश किसान, देरी ने बढ़ाई परेशानी

deltin33 Yesterday 01:42 views 414
  



संवाद सहयोगी, रुन्नीसैदपुर(सीतामढ़ी)।Sitamarhi News: धान अधिप्राप्ति की प्रक्रिया की सुस्त रफ्तार व अनिश्चितता से किसानों की चिंता चरम पर है। एक ओर जहां धान अधिप्राप्ति केंद्रों पर ताले लटके हुए हैं।

दूसरी ओर धान खरीद के लिए अब तक कोई निश्चित लक्ष्य निर्धारित नहीं है। रबी फसल की बुआई, बच्चों की पढ़ाई तथा शादी विवाह जैसी पारिवारिक मजबूरी किसानों को अपना अनाज औने-पौने दाम पर बिचौलियों के हाथ बेचने को विवश हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

धान अधिप्राप्ति के लिए अभी तक लक्ष्य भी निर्धारित नहीं है। धान कटनी रिपोर्ट अभी तक प्रखंड स्तर पर फाइलों में हीं बंद है । कटनी रिपोर्ट पहले जिला मुख्यालय भेजी जाएगी। इसके बाद इन्हें पटना स्थित मुख्यालय को भेजा जाएगी।

अंत में, उत्पादन प्रतिशत के आधार पर धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया जाएगा। इस लंबी व जटिल प्रक्रिया के कारण सरकारी खरीद में देरी हो रही है। खरीद में देरी के कारण किसानों को धान 1300 से 1500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचना पड़ रहा है जबकि सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य 2369 रुपए प्रति क्विंटल है।

धान अधिप्राप्ति के लिए जबावदेह प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी राजन कुमार कहते हैं कि प्रखंड के कुल 33 पैक्सों में से 26 पैक्सों के द्वारा हीं खरीदारी की जानी है। शेष सात पैक्सों को नजदीक के पैक्सों के साथ टैग किया जाएगा।

अधिकारी के अनुसार, इस वर्ष प्रखंड के कुल 23 पैक्सों के 115 किसानों से कुल 778 एमटी धान की खरीदारी की जा चुकी है जो जिले में सर्वाधिक है। इस आंकड़े से इतना स्पष्ट है कि प्रति पैक्स औसतन पांच किसानों से हीं धान की खरीदारी की गई है।

कोरलहिया गांव के किसान पारस कुमार सिंह कहते हैं कि धान में नमी की मात्रा, गुणवत्ता व वज़न के संबंध में नियमों का हवाला देकर धान की खरीदारी में हो रहे भ्रष्टाचार से किसान हतोत्साहित हैं।

मोरसंड गांव के किसान विनोद कुमार सिंह धान अधिप्राप्ति को लेकर सरकारी मंशा पर हीं सवाल खड़ा करते कहते हैं कि सरकारी घोषणाएं सिर्फ अखबार के पन्नों में हीं अच्छा लगता है।

कहते हैं - सरकार की मंशा खरीदारी की होती तो गेहूं की तरह धान अधिप्राप्ति की जबावदेही भी सीधेतौर पर भारतीय खाद्य निगम के पास होती। धान अधिप्राप्ति में हो रही देरी का एक और बड़ा कारण सामने आया है।

जिलास्तर पर अभी तक पैक्सों को राइस मिलों के साथ टैग नहीं किया गया है। पैक्स अध्यक्षों को मिलिंग में मनपसंद डील का इंतजार हैं। एक पैक्स अध्यक्ष ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वे किसी भी ख़राब मिल के साथ टैग नहीं होंगे।अगर उनके मनपसंद का राइस मिल नहीं मिला तो वे खरीदारी शुरू हीं नहीं करेंगे।
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