अभिनेता रजित कपूर ने कही बड़ी बात, बोले- The Making of Mahatma ने बदल दिया मेरा व्यक्तित्व

deltin33 2025-10-5 03:06:24 views 1243
  केएल इंटरनेशनल स्कूल में कार्यक्रम को संबोधित करते रजित कपूर। जागरण





जागरण संवाददाता, मेरठ : सोसाइटी फार द प्रमोशन आफ इंडियन क्लासिकल म्यूजिक एंड कल्चर अमंगस्ट यूथ (स्पिक मैके) की ओर से शनिवार को केएल इंटरनेशनल स्कूल में प्रसिद्ध अभिनेता एवं रंगकर्मी रजित कपूर की चर्चित फिल्म \“द मेकिंग आफ महात्मा\“ का विशेष प्रदर्शन किया गया। राष्ट्रीय सिनेमा श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित इस प्रदर्शन में पहले विद्यार्थियों ने फिल्म देखी और बाद में अभिनेता रजित कपूर से रूबरू हुए।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

विद्यार्थियों के सबसे यादगार पल के सवाल पर रजित कपूर ने बताया कि फिल्म के क्लाइमेक्स में बैरिस्टर की वेशभूषा छोड़कर सर मुंडवाने और सफेद कपड़े पहनने के बाद लोगों के साथ भजन में बैठने का दृश्य उनके दिल के बेहद करीब रहा है।  



कहा कि इस फिल्म के बाद उनका व्यक्तित्व भी बदल गया जिसमें गांधी का हठ या किसी कार्य को करने के प्रति दृढ़ निश्चय उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन गया। बताया कि श्याम बेनेगल की यह फिल्म मोहनदान करमचंद गांधी की रिश्तेदार फातिमा मीर की किताब ‘द अप्रेंटिशिप आफ अ महात्मा’ पर आधारित है। फिल्म की शूटिंग 1994 में ढाई महीने तक दक्षिण अफ्रीका में हुई थी। इसमें मोहनदास करमचंद गांधी के दक्षिण अफ्रीका में बिताए 20 वर्षों की कहानी है। छात्रों ने ‘द मेकिंग आफ महात्मा’ के साथ ही उनकी अन्य चर्चित भूमिकाओं ‘व्योमकेश बक्शी’, ‘घर जमाई’, श्याम बेनेगल की ‘सूरज का सातवां घोड़ा’, मलयाली फिल्म ‘अग्निसाक्षी’ के किरदार पर भी चर्चा की।



स्कूल के उपाध्यक्ष तेजेन्द्र खुराना, निदेशक हर्नीत खुराना ने अभिनेता रजित कपूर के साथ ही स्पिक मैके के राष्ट्रीय समन्वयक पंकज मल्होत्रा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गजेन्द्र सिंह धामा का स्वागत किया। राष्ट्रीय समन्वयक पंकज मल्होत्रा ने बताया कि यह फिल्म देशभर के विभिन्न स्कूलों में प्रदर्शित की जा रही है। माह के अंत में एक विशेष आनलाइन सत्र में अभिनेता रजित कपूर सभी स्कूलों के छात्रों से जुड़ेंगे। प्रधानाचार्य सुधांशु शेखर ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन युवाओं को भारतीय संस्कृति और महान व्यक्तित्वों से जोड़ने का सराहनीय प्रयास हैं।



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विद्यार्थियों के सवालों का रजित कपूर ने दिया विस्तृत जवाब

सवाल : फिल्म पूरी होने के बाद भी कौन सा दृष्य आपके मन में बस गया?

जवाब : इस फिल्म का वह दृश्य था जब मोहनदास करमचंद गांधी ने यह तय कर लिया कि उन्हें काफी कुछ त्याग कर लोगों की सेवा के लिए वापस अपने देश जाना होगा। फिल्म में सिर के बाल काटने का असल दृश्य फिल्माया गया। उसके बाद पोशाक सफेद हो जाती है। एक छड़ी लेकर चप्पल पहने भजन में पहुंचते हैं। करीब ढाई सौ लोगों के बीच बादल छा गए। माहौल में चुप्पी छा गई। कदम अपने आप सही स्थान पर पहुंचे। भजन शुरू हुआ और कैमरा चेहरे के पास आया तो आंखों से आंसू टपक रहे थे। इसकी व्याख्या मैं नहीं कर सकता। शाम को एक महिला ने कहा कि उन दो मिनटों में महात्मा गांधी की आत्मा आपके भीतर समाहित हो गई थी। मेरे पास यही एक व्याख्या है। वह दो मिनट यादगार रहे और हमेशा मेरे दिल के करीब रहेंगे।



सवाल : दूसरे देश के कलाकारों संग काम करने का अनुभव कैसा रहा?

जवाब : पहले दो दिन कठिन रहे। भाषा के साथ ही वहां अमेरिकी कार्यशैली थी और हम भारतीय शैली में कार्य करते थे। तीसरे दिन शूटिंग करने की बजाय एक-दूसरे के साथ मेलजोल का कार्यक्रम रखा गया जहां उन लोगों ने बताया कि उनके पूर्वज विशेष तौर पर दक्षिण भारतीय जिलों से दक्षिण अफ्रीका काम करने गए थे। कुछ लोगों के पास पूर्वजों के पहचान पत्र भी थे। इसके बाद शूटिंग करना आसान रहा।



सवाल : फिल्म में आपके अनुभव के अनुसार युवाओं को क्या सुझाव देना चाहेंगे कि हमें अपने व्यक्तित्व में क्या शामिल करना चाहिए?

जवाब : फिल्म देखने के दौरान आप बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ा? गांधीजी ने खुद पर कार्य किया। अपनी कथनी और करनी में समानता को शामिल किया। विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कर जलाया। वह जो कह रहे थे उसका अभ्यास कर रहे थे, यही उदाहरण था। दक्षिण अफ्रीका में बैरिस्टर के तौर पर पहुंचे तो मजदूरों का केस लड़ रहे थे। पगड़ी हटाए जाने को कहने पर भी नहीं हटाया और अपनी पहचान को प्रमुखता दी। स्वच्छता का उदाहरण पेश किया। प्रमाण पत्रों को जलाने सहित तमाम उदाहरण वह अपने व्यवहार में लाते हुए लोगों के सामने रख रहे थे।



सवाल : विभिन्न देशभक्ति किरदारों को निभाने का अनुभव कैसा रहा?

जवाब : जब हम मोहनदास, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू जैसे किरदार निभाते हैं तो उनकी सीमाएं होती हैं। हम अभिनेता के तौर पर भी उनके व्यक्तित्व से बाहर नहीं जा सकते हैं। गांधीजी बहुत तेज चलते थे। समय-समय पर ऊंचे स्वर में भी बोलते थे। ऐसे जीवंत किरदारों को निभाने में सीमाओं और मर्यादा की लाइन को ध्यान में रखना पड़ता है।



सवाल : महात्मा गांधी के किरदार ने आपको व्यक्तिगत व व्यवसायिक तौर पर कैसे प्रभावित किया?

जवाब : महात्मा गांधी का किरदार निभाने के बाद मैं अधिक हठी हो गया। यह मेरे लिए सकारात्मक है। दूसरे शब्दों में दृढ़ संकल्प मेरे व्यक्तित्व में आ गया। मैंने जो सोच लिया वह करना है तो करना है। वह समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ा। गांधीजी के बारे में पढ़कर नेचुरोपेथी पर विश्वास बढ़ा। व्यवसायिक तौर पर फिल्म इंडस्ट्री में सम्मान बढ़ा।



सवाल : आपने श्याम बेनेगल के साथ काफी काम किया है तो आपका उनके साथ अनुभव कैसा रहा और इसने आपको अभिनेता के तौर पर कैसे प्रभावित किया?

जवाब : पहली फिल्म श्याम बेनेगल की ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ थी जिसके मिलने का श्रेय रंग मंच को जाता है। उन्होंने मुझे स्टेज पर काम करते देख अगले दिन बुलाया और फिल्म दी। स्क्रिप्ट देखा तो धर्मवीर भारती के उपन्यास पर आधारित फिल्म में प्रमुख किरदार था। उसके बाद उन्होंने जो भी किया, मैं हर प्रोजेक्ट का हिस्सा रहा। उन्होंने हर प्रोजेक्ट में मुझे अलग किरदार दिया। ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ में कोई किरदार नहीं था, लेकिन मुझे उनके प्रोजेक्ट में जुड़ना ही था इसलिए एक क्लर्क का किरदार किया। उनके 15 प्रोजेक्ट में मैं हिस्सा रहा। वह परिवार का हिस्सा थे। वह आज नहीं हैं लेकिन उनकी पत्नी को मैं मां बुलाता हूं।



सवाल : आपने ऐसे महान व ऐतिहासिक व्यक्तित्व का किरदार निभाने के लिए कैसे तैयारी की?

जवाब : प्राथमिक तैयारी के लिए श्याम बेनेगल ने गांधीजी की किताब ‘माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ दी जो उनकी लगभग आटोबायोग्राफी मानी जाती है। सच्चाई को लेकर उनके प्रयोग पर आधारित वह किताब ही मेरे लिए उनके किरदार की गीता, कुरआन व बाइबल बनी। इससे उनकी मन: स्थिति को जानने व समझने में मदद मिली। शारीरिक तौर पर मैं भी तेज चलता हूं। मेरे हाथ भी सामान्य से लंबे हैं। चेहरे पर मेकअप से गांधीजी जैसा दिखने लायक बनाया गया।



सवाल : क्या कोई ऐसा किरदार है जिसका प्रभाव भावनात्मक तौर पर आप पर पड़ा?

जवाब : किसी अभिनेता में किसी किरदार का रह जाना बहुत खतरनाक स्थिति है। यह मानसिक तौर पर परेशान करने वाला भी हो सकता है। किरदार निभाने के बाद उसे भूलकर आगे बढ़ने की कोशिश करता हूं। कभी-कभी किसी किरदार की कुछ बातें आपके पास रह जाती हैं। गांधीजी के किरदार के बाद मेरा दृढ़ निश्चय बढ़ा लेकिन फिल्म राजी में अपनी बेटी को कुर्बान करने वाले पिता के किरदार का प्रभाव रह जाना उचित नहीं।

सवाल : युवा पीढ़ी को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?

जवाब : जिस बात पर मोहनदास करम चंद गांधी ने मुझे प्रभावित किया कि वह है, आप वह बदलाव बनें जैसा कल देखना चाहते हैं। आप लोग जैसा चाहते हैं उसके लिए आप सभी को आज से ही कार्य करने की जरूरत है। सिर्फ आलोचना करने व नकारात्मकता से आपको नकारात्मक भविष्य मिलेगा। सकारात्मक भविष्य के लिए खुद में सकारात्मक बदलाव करें।

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सवाल : फिल्मों में अभिनय का सफर आपकी अपेक्षाओं पर कैसा रहा और इसमें अपना अनुभव साझा करें?

जवाब : जीवन में कुछ भी योजना के अनुरूप नहीं चलता है। उसी तरह अभिनय के दौरान भी जब हमें यह पता होता है कि यह हमारी योजना के अनुरूप नहीं हो रहा है तब भी हमें अपना शत प्रतिशत देना पड़ता है क्योंकि वह हमारा कर्तव्य है। महत्वपूर्ण यह है कि अपना ईगो अलग रखें। मैं हमेशा शून्य से शुरू करता हूं, इससे मुझे मदद मिलती है।
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