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संवाद सहयोगी,जाले (दरभंगा)। जलवायु परिवर्तन के दौर में बारिश देर से आने से खेतों में जलजमाव एवं नमी की अधिकता से किसान रबी की खेती में पिछड़ गए हैं। खेतों पानी है तो किसान मखाना की खेती करें। अगर नमी अधिक है तो सब्जियों की खेती करें। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यह सुझाव जाले कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान विज्ञानी डा. प्रदीप विश्वकर्मा ने दिया है। बताया कि दरभंगे जिला के अधिकांश किसानों के खेतों में अभी भी पानी भराव से अधिक नमी है। ऐसे में उनकी मुख्य फसल गेहूं की खेती में बहुत देर हो रही है।
जलवायु के बदलते परिवेश में आमदनी अधिक हो इसके लिए सब्जियों की खेती बेहतर विकल्प है। किसान सब्जियों जैसे फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्ची और शिमला मिर्च की पहले से तैयार की हुई नर्सरी से पौधे प्राप्त कर अपने खेतों में रोपाई आमदनी दोगुनी कर सकते हैं।
फसल बोआई से पहले मिट्टी का परीक्षण, बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बीजों का उपचार एवं अवांछित पौधों में छिपे कीट और रोग को नष्ट करने के लिए खेत के साथ उसके आसपास की घास-फूस, झाड़ियों और खरपतवारों की भी सफाई करनी चाहिए।
इसके अलावा ऐसे इलाके जहां पानी सूखने की उम्मीद बिल्कुल नहीं है, उसको एक सुनहले अवसर के रूप में इस्तेमाल करके मखाना की खेती करना चाहिए। मखाना की खेती के लिए तालाब में सीधे बीज बोआई एवं नर्सरी लगाने के लिए अभी का समय उपयुक्त है। मखाना की खेती से किसान बाढ़ की समस्या से निदान के साथ अच्छी आमदनी भी प्राप्त कर सकते हैं।
फसल की बोआई से पहले सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट की 100 से 125 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में अच्छी तरह बिखेरकर जुताई करना चाहिए। इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है।
जुताई के समय 50 किलोग्राम यूरिया, 80 किलोग्राम डीएपी, 60 किलोग्राम पोटाश और 20 से 30 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाना चाहिए। इससे खेत की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी होगी और फसल की पैदावार भी बेहतर होगी। खेत की अच्छे से तैयारी के बाद शरदकालीन उद्यानिकी एवं अन्य फसलों की बोआई की शुरुआत कर सकते हैं। |