cy520520 • 2025-12-4 15:37:48 • views 507
91,717 करोड़ रुपए का दूसरा सप्लीमेंट्री बजट राज्य की आर्थिक संरचना पर सवाल
राधा कृष्ण, पटना। बिहार सरकार द्वारा पेश किया गया 91,717 करोड़ रुपए का दूसरा सप्लीमेंट्री बजट राज्य की आर्थिक संरचना और राजनीतिक प्राथमिकताओं पर कई सवाल खड़े करता है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह दूसरी बार है जब मुख्य बजट के बाद इतना बड़ा वित्तीय दस्तावेज सदन में लाया गया। यह राशि अपने आप में रिकॉर्ड है और मुख्य बजट के करीब तीन में से एक हिस्से के बराबर है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सरकार का तर्क है कि लोक कल्याणकारी योजनाओं और नई स्कीमों के सुचारू संचालन के लिए अतिरिक्त राशि की जरूरत पड़ी। लेकिन यह भी सच है कि सप्लीमेंट्री बजट का आकार इतना बड़ा शायद ही कभी देखा गया हो। इससे यह बहस तेज हो गई है कि कहीं बजट अनुमान कमजोर तो नहीं थे या चुनावी वादों ने वित्तीय संतुलन को प्रभावित किया है।
क्यों बना यह सप्लीमेंट्री बजट ‘मेगा’?
मुख्य बजट में सरकार ने सालाना खर्च का खाका 3.16 लाख करोड़ रुपए तय किया था। लेकिन जुलाई में पहला सप्लीमेंट्री (57,946 करोड़) और दिसंबर में दूसरा सप्लीमेंट्री (91,717 करोड़) मिलाकर कुल 1.49 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त प्रावधान किया गया।
यह मुख्य बजट का 47% हिस्सा है, अर्थात लगभग आधा बजट ऐड-ऑन के रूप में समीक्षा के बाद जोड़ा गया।
योजना मद में तो यह अंतर और भी बड़ा है। मुख्य बजट में योजनाओं के लिए स्वीकृत 1.16 लाख करोड़ रुपए की तुलना में दोनों सप्लीमेंट्री बजट मिलकर 87 हजार करोड़ रुपए योजना मद में जोड़ चुके हैं।
यह दर्शाता है कि लोक कल्याण और सब्सिडी आधारित खर्च अचानक बहुत बढ़ गया है।
क्या चुनावी घोषणाएं हैं सबसे बड़ी वजह?
वित्तीय विशेषज्ञों का दावा है कि चुनावी साल में नीतीश सरकार ने कई बड़े फैसले लिए थे
- महिला रोजगार योजना के तहत 10-10 हजार रुपए,
- 125 यूनिट मुफ्त बिजली,
- वृद्ध पेंशन और मानदेय में बढ़ोतरी,
- आंगनवाड़ी–रसोइया–आशा कर्मियों की सैलरी वृद्धि,
- जीविका समूहों को आर्थिक सहायता।
इन योजनाओं ने खर्च में भारी उछाल पैदा किया। अकेले महिला रोजगार योजना पर 21 हजार करोड़ का प्रावधान सप्लीमेंट्री में किया गया है। यह अपने आप में किसी मध्यम आकार के राज्य के वार्षिक बजट के बराबर है।
इसके अलावा 40 हजार करोड़ रुपए जीविका कर्मियों और महिला सहायता योजनाओं पर अतिरिक्त खर्च के रूप में पहले ही जुड़ चुका है।
बिजली सब्सिडी में 18,300 करोड़ की वृद्धि ने राजकोषीय दबाव और बढ़ाया।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सप्लीमेंट्री बजट चुनावी घोषणाओं को पूरा करने का माध्यम भी है और राजनीतिक संदेश भी, \“एनडीए सरकार वादों पर अमल कर रही है।\“
खर्च बढ़ने का फायदा और जोखिम—दोनों मौजूद
पटना यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री अविरल पांडेय इसे \“राजनीतिक रूप से समझदारी भरा और आर्थिक रूप से जोखिम भरा कदम\“ मानते हैं। उनके अनुसार, बड़े खर्च से सरकार ग्रामीण और शहरी बाजारों में नकदी प्रवाह बढ़ाना चाहती है। इससे उपभोग बढ़ेगा, मांग मजबूत होगी, छोटे कारोबार और लोकल मार्केट में तेजी आएगी। यह रणनीति अल्पकाल में फायदेमंद हो सकती है।
लेकिन उसी के साथ लंबे समय का खतरा भी बड़ा है। यदि राज्य अपनी आय नहीं बढ़ा पाया तो कर्ज बढ़ सकता है।
पहले से ही बिहार अपने संसाधनों से केवल 67 हजार करोड़ की आय अर्जित करता है, जबकि 65 हजार करोड़ केवल वेतन और पेंशन में चले जाते हैं।
ऐसे में वेलफेयर मॉडल लंबी अवधि में बड़े राजकोषीय घाटे में बदल सकता है।
क्या बजट अनुमान कमजोर थे?
इतने बड़े सप्लीमेंट्री बजट को इससे भी जोड़ा जा रहा है कि शायद बजट निर्माण के समय विभागों के अनुमान सटीक नहीं थे।
एक ही वर्ष में 47% अतिरिक्त प्रावधान यह संकेत देता है कि वास्तविक खर्च और अनुमानित खर्च के बीच बहुत बड़ा अंतर था।
अर्थशास्त्री इसे \“बजट मैनेजमेंट की संस्थागत कमजोरी\“ भी बता रहे हैं।
सरकार किन मदों पर कर रही सबसे ज्यादा खर्च?
- महिला रोजगार योजना – 21,000 करोड़ रुपए
- वृद्धजन पेंशन – 1,885 करोड़
- स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड – 800 करोड़
- सड़कों के निर्माण – 861 करोड़
महिला रोजगार योजना पर जोर इसलिए भी है क्योंकि 1.5 करोड़ महिलाओं को पहली किश्त 10-10 हजार दी जा चुकी है और आगे की किश्तों की प्रक्रिया जारी है।
नतीजा क्या?
नीतीश सरकार इस सप्लीमेंट्री बजट के जरिए एक संदेश देना चाहती है, \“वेलफेयर हमारी प्राथमिकता है, बाकी वित्तीय प्रबंधन हम संभाल लेंगे।\“
लेकिन सवाल यही है कि क्या बिहार अपनी कमाई बढ़ाने के रास्ते खोज पाएगा?
क्योंकि फिलहाल राज्य की आर्थिक रणनीति पूरी तरह लुभावनी योजनाओं और सब्सिडी आधारित खर्च पर टिकी दिखाई देती है।
यदि आय के स्रोत मजबूत नहीं हुए, तो आने वाले सालों में बिहार को बजट संतुलित रखने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। |
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