राज्य ब्यूरो, लखनऊ। उद्योगों को अब प्रदूषण की एनओसी व सहमति पत्र लेने के लिए और अधिक रकम खर्च करनी पड़ेगी। प्रदेश सरकार ने यह बढ़ोतरी उद्योगों की श्रेणी के अनुसार ढाई से तीन गुणा तक करने का निर्णय लिया है। लाल रंग वाले उद्योगों को सबसे अधिक व हरे रंग वाले उद्योगों को सबसे कम शुल्क देना होगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में शुल्क बढ़ाने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी गई। यह बढ़ोतरी वर्ष 2008 के बाद यानी 17 वर्ष बाद हुई है।
शुल्क बढ़ोतरी की मार उद्योगों को हर वर्ष झेलनी पड़ेगी, क्योंकि अभी तक उद्योगों को आरंभिक शुल्क के बाद हर वर्ष उसका आधा ही नवीनीकरण शुल्क देना पड़ता था, किंतु अब उन्हें हर वर्ष आरंभिक शुल्क के बराबर ही नवीनीकरण शुल्क भी देना होगा। हर दो वर्ष में 10 प्रतिशत तक शुल्क में वृद्धि की अनुमति भी मिल गई है।
कैबिनेट ने मंगलवार को जल और वायु प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी सहमति शुल्क संरचना में बदलाव के लिए उत्तर प्रदेश जल (मल और व्यावसायिक बहिस्राव निस्तारण के लिए सहमति) (तृतीय संशोधन) नियमावली व उत्तर प्रदेश वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) (चतुर्थ संशोधन) नियमावली को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
इस निर्णय के साथ प्रदेश में उद्योगों, स्थानीय निकायों एवं अन्य इकाइयों के लिए शुद्धीकरण संयंत्र स्थापित करने और उनके संचालन के लिए शुल्क बढ़ जाएगा। उद्योगों को हर वर्ष उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति लेनी पड़ती है।
नियमावली में संशोधन के बाद अब उद्योगों को लाल, नारंगी व हरी श्रेणियों में बांटकर अलग-अलग एनओसी का शुल्क लगेगा। चूंकि लाल रंग के उद्योग सबसे अधिक प्रदूषण फैलाते हैं, इसलिए उनका शुल्क सबसे अधिक होगा। नारंगी वाले उद्योग लाल रंग से कम प्रदूषण फैलाते हैं, इसलिए उनका शुल्क कम होगा। हरे रंग वाले उद्योग सबसे कम प्रदूषण, इसलिए उनका शुल्क सबसे कम होगा।
सरकार का मानना है कि इस निर्णय से बोर्ड की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी। प्रदूषण नियंत्रण गतिविधियों के लिए आवश्यक मानव बल और तकनीकी क्षमता विस्तार संभव होगा। प्रदूषण घटाने की निगरानी व्यवस्था और अधिक प्रभावी हो सकेगी।
एक हजार करोड़ से अधिक वाले उद्योगों का अब एक ही स्लैब
प्रदेश सरकार ने निवेश के आधार पर उद्योगों के 12 स्लैब घटाकर अब सात कर दिए हैं। एक हजार करोड़ रुपये से अधिक वाले उद्याेगों के तीन के बजाय अब एक ही स्लैब होगा। अभी एक हजार करोड़ रुपये से पांच हजार करोड़ रुपये तक के उद्योगों को आरंभिक शुल्क 2.50 लाख व वार्षिक नवीनीकरण शुल्क 1.25 लाख रुपये देना पड़ता था।
पांच हजार करोड़ से 10 हजार करोड़ रुपये तक वाले उद्योगों का आरंभिक शुल्क पांच लाख व सालाना शुल्क 2.50 लाख रुपये, 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक वाले उद्योगों को पहले वर्ष में 10 लाख व उसके बाद प्रति वर्ष पांच लाख रुपये देने होते थे।
इन तीनों श्रेणियों को हटाकर अब एक हजार करोड़ रुपये से अधिक वाले उद्योगों की एक ही श्रेणी बना दी है। हरी श्रेणी के उद्योगों को पांच लाख, नारंगी को 5.75 लाख व लाल श्रेणी के उद्योगों को 6.50 लाख रुपये प्रति वर्ष देने होंगे। वहीं, एक करोड़ रुपये से कम वाले उद्योगों के चार स्लैब को घटाकर एक किया गया है।
श्रेणीवार उद्योगों के लिए अनापत्ति व सहमति शुल्क
| पूंजीगत निवेश | वर्तमान शुल्क | नया शुल्क (रुपये में) | | | आरंभिक शुल्क | वार्षिक नवीनीकरण शुल्क | हरा | नारंगी | लाल | | एक हजार करोड़ से पांच हजार करोड़ तक | 2.50 लाख | 1.25 लाख | 5 लाख | 5.75 लाख | 6.50 लाख | | 500 करोड़ से एक हजार करोड़ तक | 1.50 लाख | 75 हजार | 1.50 लाख | 1.72 लाख | 1.95 लाख | | 250 करोड़ से 500 करोड़ तक | 1 लाख | 50 हजार | 1 लाख | 1.15 लाख | 1.30 लाख | | 50 करोड़ से 250 करोड़ तक | 75 हजार से एक लाख तक | 35 हजार से 50 हजार तक | 75 हजार | 86 हजार | 97 हजार | | 10 करोड़ से 50 करोड़ तक | 50 हजार | 25 हजार | 50 हजार | 58 हजार | 65 हजार | | एक करोड़ से 10 करोड़ तक | 20 हजार | 10 हजार | 20 हजार | 23 हजार | 26 हजार | | एक करोड़ से कम | तीन हजार तक | 1500 तक | पांच हजार | 7500 | 10 हजार |
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