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Darbhanga News : रैयाम चीनी मिल को फिर मिलेगी रफ्तार, पुनर्जीवन की जगी नई उम्मीद

deltin33 2025-11-28 22:43:03 views 1018

  

खंडहर बना केवटी का रैयाम चीनी मिल। जागरण  



विजय कुमार राय, केवटी ( दरभंगा )। बिहार सरकार की मंत्रिपरिषद की पहली बैठक में सूबे में 25 चीनी मिलें चालू करने की घोषणा से दरभंगा जिले के केवटी प्रखंड की बंद पड़ी रैयाम चीनी मिल के पुनर्जीवन की उम्मीद जग गई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने जनसभा में चीनी मिलें चालू करने की घोषणा की थी। इसके तत्काल बाद पहली मंत्रिपरिषद की बैठक में बंद पड़ी चीनी मिलों को खोलने और नई चीनी मिलें स्थापित करने की लिए गए निर्णय से इलाके के लोगों में एक बार फिर उत्साह का संचार हुआ है।

इससे गन्ना उत्पादक किसानों की आय बढे़गी और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। चालू हालत में हजारों टन चीनी का उत्पादन यह मिल करता था। मिल से दरभंगा और मधुबनी जिले के हजारों किसान जुड़े थे। बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती थी, लेकिन जब से मिल बंद हुआ गन्ने की खेती भी धीरे - धीरे कम होने लगी ।

मालूम हो कि अपनी गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध मेसर्स वेश सदर लैंड ने रैयाम चीनी मिल की स्थापना 1914 में की थी। इसका रकबा करीब 68 एकड़ है। आजादी के बाद इसका संचालन रैयाम सुगर कारपोरेशन द्वारा किया गया, लेकिन चार जून 1977 से मिल का प्रबंधन क्रमशः तिरहुत काे-आपरेटिव सुगर फैक्ट्री लिमिटेड तथा बिहार राज्य सुगर कारपोरेशन द्वारा किया गया।

इस मिल के क्रय केंद्र (राटन ) के लिए रेल लाइन व सड़क मार्ग बनाए गए थे। सड़क मार्ग में बसबरिया , औसी जीरो- माइल , ननौरा, मुहम्मदपुर आदि जबकि रेलमार्ग में मुक्कदमपुर लोआम व मुरिया था। इस क्षेत्र में तब एक लाख से अधिक हेक्टेयर में ईख की खेती होती थी ।

मिल में अधिकतम गन्ना पेराई सालाना 12 लाख क्विंटल तक होती थी जिससे करीब सवा लाख बोरी चीनी तैयार होती थी। मिल में 135 स्थायी, मौसमी 554 एवं आकस्मिक व दैनिक भोगी 125 कर्मचारी कार्यरत थे। मिल में पेराई सत्र 1992-93 तक चला ।

1994 से मिल बंद हो गई । मिल पर गन्ना लाने के लिए करीब 10 किमी ट्राली लाइन रैयाम से मुक्कदमपुर व करीब 12 किमी रैयाम से मुरिया तक बिछाया गया। ट्राली से मुक्कदमपुर व मुरिया केंद्र से गन्ना लादकर मिल पहुंचाया जाता था। अब इनका कोई अस्तित्व नहीं बचा है। मिल की चीनी अपनी गुणवत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध थी और वह विदेशों में भेजी जाती थी।
मिल हस्तांतरण के बाद करोड़ों के उपकरण चले गए अन्यत्र

16 अप्रैल, 2010 को सूबे के तत्कालीन ईख आयुक्त सह बिहार स्टेट सुगर कारपोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ने मिल का हस्तांतरण तिरहुत इंडस्ट्रीज को कर दिया। उसी वर्ष 19 अप्रैल को बजाप्ता समारोह आयोजित कर मिल की चाबी इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक प्रदीप चौधरी को सौंप दी गई थी। उस समय सप्ताह भर में मिल का पुर्ननिर्माण शुरू करने एवं दिसंबर 2011 से उत्पादन शुरू करने की बात कही गई थी, लेकिन योजना धरातल पर नहीं उतरी ।

इस बीच मिल में लगे करोड़ों के उपकरण व मशीनें भी यहां से उठाकर अन्यत्र ले जाया गया। अब मिल के नाम सिर्फ ईंट बची है। महत्वपूर्ण कागजात दीमक के भेंट चढ़ गए। करीब चार वर्ष पहले सरकार ने तिरहुत इंडस्ट्रीज को ब्लैक लिस्टेड करते हुए मिल का स्वामित्व अपने अधीन कर लिया।
125 श्रमिकों के 50 लाख रुपये अब भी बकाया

बताते हैं कि 125 श्रमिकों का अब भी करीब 50 लाख रुपये मिल पर बकाया है। गन्ना उत्पादक भोला महतो, रमेश कुमार यादव, उपेंद्र राम, राम पुकार यादव आदि ने बताया कि मिल के जमाने में किसानों की मुख्य फसल गन्ना थी। उससे उन्हें एकमुश्त नकदी की आमदनी होती थी, जिससे उनकी माली हालत ठीक थी।

किसान घर बनाने से लेकर शादी - विवाह तक इससे करते थे। मिल बंद होने के बाद पारंपरिक खेती के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। अधिकांश किसानों ने ईंख की खेती छोड़ दी। तिरहुत इंडस्ट्रीज को हस्तांतरण होने के बाद कुछ आस जगी थी, लेकिन 31 वर्ष बीतने के बाद भी इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई।
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