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जहां गुरु के चरण पड़े, वहां मीठा हुआ पानी... हरियाणा में दर्ज हैं गुरु साहिब के कई चमत्कारिक किस्से

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श्री गुरु तेग बहादुर साहिब (जागरण ग्राफिक्स)



जागरण संवाददाता, पंचकूला। गुरु नानक देव जी के बाद धार्मिक यात्राओं की सबसे विस्तृत और दूरगामी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने उत्तर से पूर्व और मालवा से बंगाल-असम तक की यात्राओं में सिख धर्म के सिद्धांतों, सेवा, समानता और मानवधर्म की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इन यात्राओं का मुख्य उद्देश्य गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रचार, संगतों को जोड़ना, जल-स्रोतों का निर्माण, लंगर की परंपरा को सुदृढ़ करना और जरूरतमंदों की सेवा करना था। उन्होंने हरियाणा में भी अपनी पावन यात्राओं में अनेक स्थलों को पवित्रता और आस्था का केंद्र बनाया।

बिलासपुर की रानी चंपा से भूमि खरीदकर चक्क नानकी (वर्तमान आनंदपुर साहिब) की स्थापना करना उनकी आध्यात्मिक-राजनैतिक दूरदर्शिता का उदाहरण है। इतिहास में दर्ज है कि हरियाणा की दिशा में आते समय ही मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर गुरु साहिब को गिरफ्तार किया गया था। आज बलिदान दिवस पर हम हरियाणा की उसी पवित्र धरा के उन स्थलों की कथा आपके सामने रख रहे हैं, जहां गुरु साहिब के चरण पड़े।

गुरु तेग बहादुर साहिब का बलिदान दिवस न केवल त्याग की स्मृति है, बल्कि उन यात्राओं को नमन करने का अवसर भी है जिनसे हरियाणा की धरा धन्य हुई। जहां कुएं मीठे हुए, जल-स्रोत फूटे, वन खिले और मनुष्यता का दीपक प्रज्वलित हुआ।
कुएं से निकलने वाला रेतीला पानी हुआ साफ

गांव सलेमपुर में गुरु साहिब के चरण पड़ते ही कुएं से निकलने वाला रेतीला पानी अचानक निर्मल हो गया। आज भी गांव की संगत इस घटना को गुरु कृपा का चमत्कार मानती है। पुरानी चर्चा है कि गुरु तेग बहादुर सुबह मुनियारपुर पहुंचे, दिन वहीं व्यतीत किया। उस समय गांव आम के घने वृक्षों से आच्छादित था। आज उसी स्थान पर भव्य गुरुद्वारा स्थित है। ईंट निकालते ही पानी उमड़ा। डूडी से सलेमपुर पहुंचकर गुरु साहिब ने अपने सेवादारों से कुएं में रेत भराव की समस्या सुनी। गुरु साहिब ने कुएं की एक ईंट निकालने का निर्देश दिया। जैसे ही ईंट निकाली गई, कुएं से मीठा, स्वच्छ और प्रचुर जल निकलने लगा।
बारना में बुजुर्ग माई ने दिया था गुरु को दोशाला

वर्ष 1665 में गुरु साहिब जब गांव बारना पहुंचे, तो एक वृद्ध माता ने अपने हाथों से बुना हुआ दोशाला उन्हें भेंट किया। जिस स्थान पर गुरु साहिब घोड़े से उतरे थे, वहीं आज भव्य गुरुद्वारा स्थापित है, जहां संगत नई पीढ़ी को गुरु इतिहास से अवगत कराती है।
भाई उदै की सेवा-दान की अनोखी मिसाल

कराह साहिब में गुरु साहिब की वाणी और उपदेशों का ऐसा असर हुआ कि ग्रामीणों ने लगभग 300 बीघा भूमि गुरु घर के नाम दान, खरीद और रजिस्ट्री के माध्यम से समर्पित कर दी। भाई उदै सिंह इस सेवा के अग्रदूत रहे। उन्होंने स्वयं भूमि दी और जमींदार परिवारों को प्रेरित किया कि लंगर, सराय, कुएं, बाग और शिक्षा संस्थानों के लिए स्थायी आर्थिक आधार तैयार किया जाए। आज भी क्षेत्र में ये परंपरा है।
धमतान साहिब: गुरु साहिब के तीन आगमन की ऐतिहासिक धरा

धमतान साहिब में गुरु तेग बहादुर तीन बार पधारे। भाई दग्गो से जुड़े तपस्या, भक्ति, कुएं निर्माण और बाद में उसकी अवज्ञा के प्रसंग लोक-इतिहास में आज भी जीवंत हैं। 22 एकड़ में फैला यह परिसर अमावस्या स्नान, दशहरा मेला और देश-विदेश की संगत का प्रमुख केंद्र है।
माई के प्रेम में बना रोहतक का गुरुद्वारा माईजी

प्रसंग है, रोहतक के कलालान मोहल्ला में एक वृद्ध माई ने अपने छोटे से घर में गुरु साहिब को प्रेमपूर्वक भोजन करवाया—और वही स्थान आज गुरुद्वारा माईजी है। यह सादगी, भक्ति और मानवीय सेवा का अद्वितीय उदाहरण है।
कैथल में जब नीम के पत्ते से रोग दूर हुए

जुगल तरखाण के घर ठहरने, ठंडार तीर्थ में स्नान और रोगी को नीम का पत्ता खिलाकर ताप दूर करने की घटना आज भी वहां के गुरुद्वारा नीम साहिब का आधार है। मोहल्ला सेठान में भोजन के बाद गुरु साहिब ने वर दिया—यहां कथा-कीर्तन होगा और श्रद्धा से मांगी मुरादें पूरी होंगी। यही स्थान आज गुरुद्वारा मंजी साहिब है।
थड़ा साहिब: सुढ़ल पंचतीर्थी की पवित्र परंपरा

झींवरहेड़ी का थड़ा साहिब—जहां गुरु साहिब पंडित भिखारी दास से मिले और आज भी हरा-भरा वह पीपल आशीष की कथा कहता है। सुढ़ल का मंजी साहिब—जहां गुरु साहिब दो बार आए। पंचतीर्थी—जहां रुककर संगत को दर्शन दिए और आज भी सर्वधर्म जोड़ मेला बड़े स्तर पर आयोजित होता है।
खटकड़ गांव को मीठे पानी का वरदान मिला

1665 में खटकड़ गांव में गुरु साहिब ने दो दिन तक डेरा लगाया। एक गुर-भक्त बीबी की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया। बाद में गांव का पानी मीठा हुआ और तालाब-कुएं बनवाए गए। घोड़ा चुराने वाले व्यक्ति का बार-बार अंधा होकर सुधर जाना यहां की मौखिक परंपरा का हिस्सा है।
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