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उत्तराखंड: ओएनजीसी ने खोजे 62 जियोथर्मल स्रोत, जीएसआई के साथ मिलकर सर्वे

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सांकेतिक तस्वीर।



अशोक केडियाल, देहरादून। ऑयल एंड नेचुरल गैस कार्पोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) ने उत्तराखंड में 62 स्थलों की पहचान की है जहां भू-तापीय (जियोथर्मल) स्रोत उपलब्ध हैं और जिनसे ऊर्जा उत्पादन की संभावना है। ओएनजीसी की हरित ऊर्जा की दिशा में की जा रही महत्वाकांक्षी पहल का यह एक हिस्सा है। ओएनजीसी पहले भी जियोथर्मल ऊर्जा को दोहन करने में सक्रिय रहा है। ओएनजीसी ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के साथ मिलकर सर्वे कार्य प्रारंभ किया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
ओएनजीसी भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के साथ मिलकर सर्वे


ओएनजीसी ने राज्य सरकार को प्रस्ताव देने के साथ ही एक अध्ययन टीम भी तैयार की है। कंपनी का यह कदम राज्य की नवनिर्मित जियोथर्मल एनर्जी पालिसी, 2025 के अनुरूप उठाया गया है, जिसे हाल ही में कैबिनेट की मंजूरी मिली है। इस नीति का उद्देश्य इन गर्म जल स्रोतों का उपयोग बिजली उत्पादन, हीटिंग कूलिंग और जल शुद्धिकरण जैसी बहुआयामी उपयोगी गतिविधियों के लिए करना है। इस तरह, ओएनजीसी की यह पहल उत्तराखंड में जियोथर्मल ऊर्जा को हकीकत में बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में स्थिरता और स्थानीय विकास दोनों में योगदान दे सकती है।

उत्तराखंड में जियोथर्मल ऊर्जा के संभावित क्षेत्र


ओएनजीसी ने जिन जियोथर्मल क्षेत्रों को चिह्नित किया है उनमें बदरीनाथ का तप्तकुंड, यमुनोत्री का सांस्कृतिक स्थल, तपोवन का तप्त कुंड के अलावा अलकनंदा, मंदाकिनी भागीरथी, यमुना, टौंस नदी घाटी के क्षेत्र हैं। ये सभी प्राकृतिक गर्म पानी के स्रोत 1000 से 4000 मीटर तक की ऊंचाई पर स्थित हैं। इन गर्म पानी के स्रोत का तापमान 25 डिग्री सेल्सियस 90 डिग्री सेल्सियस तक है।
30 सीलों के लिए लाइसेंस देने की तैयारी


राज्य सरकार ने जियोथर्मल एनर्जी नीति के अंतर्गत परियोजनाओं को 30 साल के लिए लाइसेंस देने की व्यवस्था की है और निजी या सार्वजनिक दोनों तरह की कंपनियों को प्रतिस्पर्धात्मक बोली (बीडिंग) के ज़रिए प्रोजेक्ट आवंटित किए जाएंगे।
पारिस्थितिक संवेदनशीलता बड़ी चुनौती

पर्यावरणविद और भू‑विज्ञानी इस परियोजना की पारिस्थितिक संवेदनशीलता पर चिंता भी जता रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधि, जल स्रोतों पर दबाव और भूमि धंसाव जैसे जोखिमों को देखते हुए सावधानी बरतने की मांग हो रही है। इसके अलावा पहाड़ों की भू-आकृति, ट्रांसमिशन क्षमता की सीमाएं, सामुदायिक व भूमि उपयोग से जुड़े विवाद, पर्यावरण व वन संवेदनशीलता इसके निर्माण में बड़ी चुनौतियां हैं।



‘ओएनजीसी ने उत्तराखंड में 62 स्थलों की पहचान की है जहां भू-तापीय (जियोथर्मल) स्रोत उपलब्ध हैं और जिनसे ऊर्जा उत्पादन की संभावना है। ओएनजीसी ने जीएसआई के साथ मिलकर यह सर्वे किया है। इस परियोजना की पारिस्थितिक संवेदनशीलता का भी अध्ययन किया जा रहा है।’ - संजय मुखर्जी, मुख्य महाप्रबंधक ओएनजीसी
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