विजेंद्र प्रसाद यादव की कहानी
जागरण संवाददाता, सुपौल। 79 वर्षीय विजेंद्र प्रसाद यादव 1990 में पहली बार सुपौल से विधायक निर्वाचित होकर उन्होंने जो राजनीतिक यात्रा शुरू की, वह आज चौथे दशक में भी मजबूती से जारी है। आज तक वे किसी चुनाव में पराजित नहीं हुए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री काल में कुछ महीनों तक विधायक रहने के बाद 1991 में ही उन्हें ऊर्जा राज्य मंत्री बनाया गया। 1995 में दोबारा चुनाव जीतकर वह नगर विकास मंत्री बने और बाद में विधि एवं ऊर्जा विभाग की भी जिम्मेदारी निभाई।
1997 में जनता दल के विभाजन के दौरान उन्होंने शरद यादव का साथ चुना, जिसकी राजनीतिक कीमत उन्हें मंत्री पद खोकर चुकानी पड़ी। फिर भी 2000 में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुनाव जीता।
2005 में जदयू के प्रदेश अध्यक्ष
2005 का विधानसभा चुनाव जदयू के लिए निर्णायक था और इसके केंद्रीय नेतृत्वकर्ता थे विजेंद्र प्रसाद यादव, जो उस समय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और एनडीए की सत्ता वापसी हुई। इसके बाद उन्हें सिंचाई, ऊर्जा और विधि जैसे महत्वपूर्ण विभाग सौंपे गए।
2010 के बाद लगातार बदलते गठबंधन,महागठबंधन, एनडीए और पुनः महागठबंधन इन सभी राजनीतिक उतार-चढ़ावों के बीच विजेंद्र प्रसाद यादव की उपस्थिति स्थिर रही।
संसदीय कार्य, मद्य निषेध, निबंधन, वित्त, वाणिज्य कर, ऊर्जा, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण बार-बार बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी मिलना यह दर्शाता है कि सरकारें बदलती रहीं, मगर विजेंद्र प्रसाद यादव पर विश्वास कायम रहा।
2022 के कैबिनेट में भी जगह
2022 में जब जदयू ने राजग छोड़कर महागठबंधन की सरकार बनाई, तब भी विजेंद्र प्रसाद यादव को कैबिनेट में प्रमुख स्थान दिया गया और ऊर्जा एवं योजना विकास विभाग सौंपा गया। इससे स्पष्ट हो गया कि सत्ता में किसी भी गठबंधन का स्वरूप हो, उनके अनुभव और प्रशासनिक क्षमता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं।
मजबूत पक्ष, अनुभव, ईमानदारी और प्रशासनिक पकड़ ने उन्हें लगभग चार दशक तक लगातार सत्ता में बनाए रखा। पार्टी संगठन और सरकार दोनों में उनकी भूमिका निर्विवाद रही।
चार दशक में बिहार की राजनीति कई करवटें बदल चुकी है, लेकिन राजनीति में टिके रहने का विश्वास विजेंद्र प्रसाद यादव ने लगातार जीता है। |