भगवानपुर पश्चिम गांव निवासी करुणेश प्रताप(बाएं)से जीरा,धान संग मछली पालन के बारे में पूछते मत्स्य वैज्ञानिक डा. प्रकाश चंद्र।
दिलीप पाण्डेय, जागरण, संतकबीर नगर। नाथनगर ब्लाक के भगवानपुर पश्चिमी गांव निवासी करुणेश प्रताप पहले नवोदय विद्यालय में बाबू थे। इस पद पर रहते हुए कुछ और बेहतर करने की ललक थी। उन्होंने तैयारी कर बिजली विभाग में नौकरी की। कोर्ट के आदेश पर वर्ष 2018 में उनकी नौकरी चली गई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इससे वह अपने को असहाय व बेरोजगार महसूस करने लगे। वह कृषि विज्ञान केंद्र-बगही में पहुंचे। यहां के वैज्ञानिकों के समक्ष अपनी पीड़ा बतायी। अच्छी आय के लिए सुझाव मांगा। इस पर उन्हें वैज्ञानिकों ने सुझाव देने के साथ ही उसके बारे में विस्तार से जानकारी दी।
पहले छोटे स्तर पर मछली पालन के एक छोटा तालाब बनवाया। इसमें उन्होंने जीरा उत्पादन प्रारंभ किया। आज उनके पास दो एकड़ में तालाब है। इसमें वह जीरा,धान के साथ मछली पालन करते हैं। अच्छी कमाई कर रहे हैं। इस किसान की जुबानी पेश है रिपोर्ट...
इसके लिए जलजमाव वाली भूमि उपयुक्त
ऐसी भूमि जो गहरी है,जहां पर वर्षा होने पर पानी इकट्ठा होता है,वह काफी उपयुक्त होती है। कम से कम 20 फीट चौड़ी व डेढ़ से दो फीट भूमि गहरी होनी चाहिए। जलमंगना,सरयू-52,तकिया-64,सोरगा सब वन आदि प्रजाति की मध्यम मोटे धान की रोपाई की जाती है। जुलाई में धान की रोपाई के 15 दिन बाद अंगुली आकार की दो हजार से ढ़ाई हजार मछली बीज डालना होता है।
इसमें ग्रास कार्प व कामन कार्प मछली का बीज कदापि नहीं डालना चाहिए। मछली बीज के लिए कोई पोषक आहार देने की जरूरत नहीं पड़ती। इसी तरह रोपे गए धान के लिए खाद डालने की आवश्यकता नहीं होती। जीरा की खेती भी मौसम अनुकूल होने पर किया जा सकता है। इसमें लागत कम पड़ती है।
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प्रति एकड़ इतनी लागत और इतना उत्पादन
प्रति एकड़ तीन माह में पांच से छह क्विंटल मछली का उत्पादन हो जाता है। इस पर केवल मछली बीज डालने पर 10 से 12 हजार रुपये खर्च आता है। तीन माह में करीब 70 हजार रुपये कमाई हो जाती है। वहीं धान की खेती में 15 से 16 हजार रुपये लागत पड़ती है जबकि 15 से 16 क्विंटल धान का उत्पादन हो जाता है।
रासायनिक खाद,सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। फसल में कीड़े,मकाेड़े नहीं लगते,इसलिए कीटनाशक दवा की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए यह सब पैसा बच जाता है। वहीं मछली संग जीरा की खेती करना भी काफी लाभकारी है। प्रति एकड़ केवल 10 हजार से 12 हजार रुपये का जीरा का बीज खरीदना पड़ता है। इसमें भी किसी प्रकार की खाद की जरूरत नहीं पड़ती। अच्छी कमाई हो जाती है।
पानी गर्म होने पर तुरंत बदलना पड़ता है
तेज धूप व गर्मी में पानी गर्म होने पर पंपिंग सेट चलाकर सेक्शन पाइप से पानी निकालना पड़ता है। इसके बाद बोरिंग के जरिए सेक्शन पाइप से ताजा पानी डालना पड़ता है। नियमित रूप से पानी की स्थिति देखनी पड़ती है। जिससे मछलियों व फसल पर कोई गलत प्रभाव न पड़े। आर्थिक क्षति न हो।
जीरा,धान संग मछली पालन करने पर लागत कम पड़ती है। मुनाफा अच्छा हो जाता है। फिलहाल इसके बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है। इसके लिए जल्द जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
डाॅ.प्रकाश चंद्र-मत्स्य वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र-बगही।
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