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उत्तराखंड की कौन-सी चीज लखनऊ के लोगों को खूब आ रही पसंद? कई औषधीय गुणों से है भरपूर

deltin33 2025-11-19 01:37:32 views 1058

  



जागरण संवाददाता, लखनऊ। गोमती नदी की धारा और पर्वतीय संस्कृति की विचारधारा..., पंडित गोविंद वल्लभ पंत पर्वतीय सांस्कृतिक उपवन में खड़े हर व्यक्ति के मन में एक साथ हिलोरें मार रही थी। सामने मंच पर पारंपरिक परिधानों में सजे कलाकार तो आजू-बाजू औषधीय गुणों से भरे उत्पादों की सुगंध जैसे मंत्रमुग्ध करने लगी। चमत्कारिक उत्पादों की सुगंध का जादू लोगों को सम्मोहित कर अपनी ओर खींचने लगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

ऊंचे पहाड़ों की धरा में पैदा उत्पादों को खरीदने स्टालों पर भीड़ उमड़ने लगी। उत्तराखंड की गडेरी, हल्दी, अदरक, मूली समेत अन्य उत्पादों के लिए लखनऊ वालों की दीवानगी भी खूब नजर आई।

पहाड़ों के ठंडे पानी से संचित औषधीय गुणों से भरपूर उत्पादों को खरीदने की ललक उनमें दिखाई दी। गहत की दाल, भट्ट, सोयाबीन, राजमा आदि की खरीदारी तो हर बार ही लोग खूब करते हैं, इस मेले में लोगों ने सबसे अधिक जमीन के नीचे पैदा होने वाली वस्तुओं की खरीदारी की।

इंदिास नगर की रहने वाली पुष्पा देवी ने बताया कि गडेरी (अरबी) खरीदने के लिए मेले में आईं। कुछ गोल मूली और नींबू भी खरीदे हैं। रानीखेत से स्टाल संचालक खुशहाल सिंह बिष्ट ने बताया कि इस बार गडेरी, हल्दी, अदरक की बिक्री काफी हुई। वृंदावन विहार सेक्टर-12 की रहने वाली अनीता तिवारी ने पहाड़ी कच्ची हल्दी खरीदी।

बोलीं, बेटी ने खास तौर पर कच्ची हल्दी लाने को कहा था। बागेश्वर से आईं समता स्वयं सहायता समूह की हेमा कोरंगा ने बताया कि चमोली में पैदा होने वाली आर्गेनिक हल्दी औषधीय गुणों से भरी हुई है। देहरादून की बाला मनवाल व पहाड़ी प्रोडक्ट समूह की कुसुम बाला का कहना है कि वह काली हल्दी लेकर आई हैं। जैविक काली हल्दी महंगी होने के बावजूद लोग खरीद रहे हैं।

सीढ़ीनुमा खेतों में उगने वाला मडुआ (रागी), उत्तरकाशी का ब्राउन राइस, मुनस्यारी व जोशीमठ का राजमा भी लोगों की पसंद बना रहा। चिकित्सकों का कहना है कि काली हल्दी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही दर्द कम करने, पाचन सुधारने, सांस और त्वचा संबंधित विकारों में भी फायदेमंद है। गडेरी (अरबी) पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण दिल, ब्लड प्रेशर और शुगर के मरीजों के लिए भी लाभदायक है।

पहाड़ी खाने की तलाश में रहे लोग... मिला नहीं
पिसी राई के साथ खीरे का तीखा रायता, भट्ट के डुबुक, घौत (गहत) की दाल, मडुवे की रोटी... उत्तराखंड महोत्सव में पहुंचने वाले लोगों के मन में यह पकवान मिलने की उम्मीद थी, लेकिन पहाड़ के पकवानों का स्टाल नहीं होने से उन्हें निराश होना पड़ा। समिति के अध्यक्ष हरीश चंद्र पंत ने बताया कि महोत्सव में एक दिन सभी महिलाओं की पहाड़ी पकवानों की प्रतियोगिता भी कराई गई थी। उसमें महिलाओं ने पारंपरिक पकवान बनाए थे। अगले वर्ष से इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि महोत्सव में एक स्टाल पहाड़ी पकवानों का भी रहे।
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