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अकाल मृत्यु के बाद प्रेतशिला पर्वत पर होता है पिंडदान, पर क्यों शाम को यहां रुकना है मना? जानें रहस्य

cy520520 2025-11-19 01:10:24 views 372

  

प्रेतशिला पर्वत का धार्मिक महत्व



धर्म डेस्क, नई दिल्ली। बिहार का गयाजी धार्मिक विरासत के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह पावन भूमि सनातन और बौद्ध दोनों धर्मों के अनुयायियों के लिए बेहद खास है। जहां विष्णुपद और महाबोधि मंदिर है। बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों का पिंडदान करने के लिए गयाजी आते हैं। पितृ पक्ष के दौरान फल्गु नदी के तट पर पितरों का पिंडदान किया जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

  

इसके अलावा, सामान्य दिनों में भी व्यक्ति अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। वहीं, महाबोधि मंदिर में देव दर्शन के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि गयाजी में एक ऐसा स्थल भी है, जो बेहद रहस्यमयी है। इस स्थल पर असमय मरने वाले पितरों का पिंडदान किया जाता है। इस स्थान पर सूरज ढलने के बाद रुकने की मनाही है। आइए, इसके बारे में जानते हैं-  
प्रेतशिला पर्वत

बिहार के गयाजी में स्थित प्रेतशिला असमय मरने वाले पितरों के पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है। कहते हैं कि असमय मरने वाले या अकाल मृत्यु वाले पितरों का प्रेतशिला में तर्पण और पिंडदान किया जाता है। सनातन शास्त्रों में प्रेतशिला को प्रेतशिला तीर्थ कहा गया है। प्रेतशिला पर्वत पर यम के देवता धर्मराज का मंदिर है। पितृ पक्ष के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए प्रेतशिला पर तर्पण और पिंडदान करने आते हैं। प्रेतशिला पर्वत पर तर्पण और पिंडदान करने से असमय मरने वाले पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जानकारों की मानें तो असमय मरने वाले पितरों का तर्पण और पिंडदान पितृ पक्ष के दौरान अष्टमी तिथि को किया जाता है। वहीं, सामान्य दिनों में भी प्रेतशिला पर पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। वहीं, पितरों का पिंडदान सत्तू से किया जाता है। प्रेतशिला पर्वत के शिखर पर पितरों का पिंडदान किया जाता है। संध्याकाल यानी सूर्यास्त के बाद लोगों को यहां रुकने की मनाही है। यहां असमय मरने वाले पितरों की आत्मा का वास रहता है। इसके लिए सूर्यास्त के बाद रुकने से किसी अनहोनी का खतरा रहता है।

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