प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने रेल मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह ऑटिज्म से पीड़ित यात्रियों को रेलवे रियायत के दायरे में शामिल करने पर छह माह के अंदर नीतिगत निर्णय ले।
यह आदेश नक्श की ओर से उसके पिता कमलेश कुमार द्वारा दायर याचिका पर पारित किया गया। याचिकाकर्ता ने आटिज्म को रेलवे के रियायत दर के नियमों में शामिल न किए जाने को मनमाना, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताया गया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि चूंकि मामला रेलवे की नीति से संबंधित है, इसलिए यह निर्णय रेलवे प्रशासन को ही लेना होगा। अदालत ने निर्देश दिया कि इस याचिका को रेलवे की ओर से एक प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाए और उस पर समयबद्ध निर्णय लिया जाए।
याचिका में कहा गया कि भारतीय रेलवे द्वारा दिव्यांगजन के लिए दी जाने वाली रियायतों में कई श्रेणियां शामिल हैं, लेकिन ऑटिज्म को इसमें स्थान नहीं दिया गया, जबकि यह एक न्यूरो-डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (तंत्रिका विकास विकार) है।
याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि रेलवे रियायत नियमों में संशोधन कर आटिज्म श्रेणी को जोड़ा जाए।
गौरतलब है कि एक अनुमान के अनुसार, भारत में लगभग 18 से 20 लाख बच्चे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से प्रभावित हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर हर 100 में से 1 बच्चा ऑटिस्टिक होता है।
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