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बिहार चुनाव: संदेशों से भरा जनादेश, विकास और विश्वसनीयता पर मुहर; राहुल गांधी के नकारात्मक नारे पड़े कांग्रेस पर भारी

deltin33 2025-11-15 13:07:05 views 733

  

बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बनना तय है (फोटो- एक्स)



आशुतोष झा, नई दिल्ली। बिहार के चुनाव नतीजे सिर्फ सरकार गठन का जनादेश नहीं है। उसके लिए तो 122 सीटें ही पर्याप्त थी। मिली हैं लगभग 200 सीटें। राजग को मिला यह प्रचंड जनादेश संदेश है कि जनता कभी-कभार कुछ मुद्दों पर भ्रमित हो सकती है, लेकिन विकास एवं सतत विकास ही प्रमुख मुद्दा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
बिहार में मोदी-नीतीश के चेहरे ने यह भरोसा भरा है

बिहार में इसका जोरदार डंका बजा है जिसकी गूंज दूसरे राज्यों तक भी पहुंचेगी। यह भी संदेश है कि वादे और नारे उसके ही सुने एवं अपनाए जाते हैं, जिसकी विश्वसनीयता हो। बिहार में मोदी-नीतीश के चेहरे ने यह भरोसा भरा है कि डबल इंजन ही आगे का रास्ता है।
राजनीति में घोर परिवारवाद लोगों को नापसंद

राजनीति में घोर परिवारवाद लोगों को नापसंद है। नतीजे इसका भी संदेश देते हैं कि वोट चोरी और चुनाव में हेरा-फेरी जैसे तथ्यहीन एवं नकारात्मक नारों से खुद के ही हाथ जलते हैं।

जनादेश यह भी बताता है कि विपक्षी दलों को चुनावी रणनीति का लंबा पाठ पढ़ने की जरूरत है और नई पार्टी बनाना तो आसान है, लेकिन लोगों का मन जीतना मुश्किल।यूं तो अधिकतर लोग बिहार चुनाव के नतीजों से हतप्रभ हैं। राजग नेताओं की ओर से भी इसकी आशा नहीं की जा रही थी।
बिहार में विकास की ललक

हां, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जरूर अब तक की सबसे बड़ी जीत की बात कही थी। लेकिन बिहार में विकास की ललक, महिलाओं में विकास की उत्कंठा, बिहारी आत्मसम्मान की प्रबलता इतनी ज्यादा है कि जब जरूरत हो तो ऐसा ही जनादेश आता है।

वर्ष 2010 में भी इसी तरह बड़ी जीत मिली थी जब महागठबंधन एमवाई समीकरण और जाति भावनाओं को भड़काकर वापस सत्ता में आना चाहता था। 20 वर्षों तक लगातार नीतीश कुमार के सत्ता में रहने के कारण इस बार उतनी बड़ी जीत को लेकर आशंका जताई जा रही थी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की विश्वसनीयता जुड़ते ही कमाल हो गया।
राजग एकजुट होकर लड़ा

पीएम मोदी का चेहरा, मोदी की गारंटी, नीतीश के लिए सद्भाव और अमित शाह का चुनावी चक्रव्यूह काम कर गया। संकल्प पत्र में उन सभी मुद्दों का रोडमैप रखा गया जो लोगों के दिल में थे। राजग एकजुट होकर लड़ा, वहीं महागठबंधन में आखिरी समय तक रस्साकशी दिखी। जनता ने समझ लिया कि जाति-पाति के चक्कर में पड़े तो फिर पिछड़े।

यहां तक कि एमवाई समीकरण भी ध्वस्त हो गया जो साधारणत: 2014 के लोकसभा चुनाव से मोदी के नाम पर टूटता रहा था। लोगों ने देखा है कि मोदी और नीतीश शासन में विकास जाति-पाति और धर्म से परे होता है। डबल इंजन का जोर लगा और सरपट दौड़ा। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि अगले चार महीनों में होने वाले बंगाल चुनाव में भी इसका असर दिखेगा।

बिहार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में महागठबंधन ने एसआइआर जैसे मुद्दे पर चुनाव को केंद्रित करने की कोशिश की थी, जो गलत था। जो नाम कटे, वे सही थे इसीलिए एसआइआर के बाद जनता की ओर से कोई भी नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं हुई। बल्कि सवाल यह पूछा जाने लगा है कि महागठबंधन के दलों की ओर से ऐसे लोगों को सूची में रखने का दबाव क्यों है जो वोटर हैं ही नहीं।

बंगाल में भी इसकी गूंज दिखेगी जहां एसआइआर की शुरुआत हो गई है और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की ओर से विरोध हो रहा है। चाहे तृणमूल हो या द्रमुक, वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुके हैं, लेकिन विरोध के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं।

यूं तो कांग्रेस के अंदर भी कई नेता राहुल गांधी के नारों से मतभेद रखते रहे हैं, लेकिन इस चुनाव ने साबित कर दिया कि 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त \“\“चौकीदार चोर है\“\“ या फिर अभी \“\“वोट चोर\“\“ जैसे नारों को जनता नापसंद करती है। खासतौर से तब, जबकि प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाया जाए।

बिहार चुनाव में राहुल गांधी ने राज्य के बारे में कम और मोदी, भाजपा व संघ के बारे में ज्यादा बयान दिए जो सवाल खड़ा करते हैं कि वह मुद्दों से भटकते हैं। तथ्यों के आधार पर आक्रामक होने की बजाय आपत्तिजनक शब्दों को अपनाते हैं और खुद ही घायल हो जाते हैं।

राहुल गांधी ने महापर्व छठ से जुड़े एक मुद्दे पर ड्रामा शब्द का इस्तेमाल किया था और भाजपा ने इसे मुद्दा बनाया था। राहुल के मंच से ही एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री मोदी की मां को लेकर अश्लील शब्द कहे थे और राहुल या तेजस्वी यादव की ओर से इसके लिए खेद तक नहीं जताया गया।

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों को थोड़ी संख्या मिली, हालांकि वह सम्मिलित रूप से भी अकेले भाजपा की संख्या से कम थे, लेकिन उनका मनोबल बढ़ा था।

ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश के अलावा 2024 में महाराष्ट्र और बिहार में भी राजग को अपेक्षाकृत कम सीटें मिली थीं। लेकिन उसके बाद जिस तरह महाराष्ट्र में लोगों ने अभूतपूर्व निर्णय दिया और उसके बाद बिहार का जनादेश आया है, उससे यह चर्चा भी छिड़ गई है कि क्या जनता 2024 की क्षतिपूर्ति करना चाहती है। अगर यह सच है तो फिर देखना होगा कि उत्तर प्रदेश में जनता क्या गुल खिलाती है।
परिवारवाद पर चोट बहुत गहरी है

परिवारवाद पर चोट बहुत गहरी है। राजद जमीन पर आ चुका है। यह देखना बाकी है कि दूसरे राज्यों से क्या संदेश दिया जाता है। बिहार चुनाव में इस बार जनसुराज पार्टी और प्रशांत किशोर की भी बहुत चर्चा थी। लेकिन वह जिस तरह फ्लाप हुए, उसने यह सिद्ध कर दिया कि कोच होने और प्लेयर होने में फर्क होता है।
जनसुराज पार्टी में अधिकतर लोग दूसरी पार्टियों के पुराने चेहरे थे

दूसरी बात, नई पार्टी सिर्फ नाम से नहीं बनती। जनसुराज पार्टी में अधिकतर लोग दूसरी पार्टियों के पुराने चेहरे थे। एक आंदोलन के जरिये दिल्ली की सत्ता में प्रवेश करने वाली आम आदमी पार्टी के पास उस वक्त चेहरे भी नए थे और तौर-तरीका भी, जो बाद में फीका पड़ गया। जनसुराज के लिए यह नतीजा आखिरी कील है और राजद एवं कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चेतावनी।
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