सुशील भाटिया, फरीदाबाद। पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद धौज की अल-फलाह यूनिवर्सिटी को विगत कुछ वर्षों से आतंक का गढ़ बना रहा था। अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी होने और शहरी इलाके से दूर होने के चलते उसके लिए यह मुफीद स्थल था। अपनी आतंकी गतिविधियों को सफेदपोशों के जरिये देशभर में अंजाम देने के मकसद से वह यहां एक-एक करके डाक्टरों व कर्मचारियों की नियुक्तियां करा रहा था। जैश की इस साजिश के बीच यूनिवर्सिटी प्रबंधन पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इनमें से कुछ ऐसे डॉक्टर थे, जो पूर्व में अन्य मेडिकल काॅलेजों से बर्खास्त हो चुके थे। कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज से 2021 में बर्खास्त डाॅ. शाहीन ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी में नियुक्ति पाई। इस यूनिवर्सिटी में कार्यरत कश्मीरी डाॅक्टर मुजम्मिल व लाल किले के पास विस्फोट करने वाले डाॅ. उमर के बाद अब एक और डाॅ. निसार उल हसन के तार भी इस आतंकी समूह से जुड़ रहे हैं।
यही नहीं, जम्मू कश्मीर पुलिस और दिल्ली पुलिस ने इस यूनिवर्सिटी से कई संदिग्धों को हिरासत में लिया है, जिनमें से कई लोगों की आतंकियों से जुड़े होने की आशंका है। इतनी बड़ी संख्या में इस यूनिवर्सिटी के डाॅक्टरों और कर्मचारियों का जैश से जुड़ाव सामने आना कोई इत्तेफाक नहीं है। पुलिस के पूर्व अधिकारी इसे एक सोची-समझी साजिश के तौर पर देख रहे हैं, जिसके अनुसार जैश इस यूनिवर्सिटी के रूप में दिल्ली के साथ लगते शहर में अपना गढ़ तैयार कर रहा था।
जैश प्रमुख मसूद अजहर की बहन सादिया से सीधे संपर्क रखने वाली डाॅ. शाहीन जैश की महिला विंग की प्रमुख थी और यूनिवर्सिटी में ही छात्रों का ब्रेन वाश करने में सक्रिय थी, लेकिन उसकी देशविरोधी गतिविधियों पर प्रबंधन की ओर से ध्यान नहीं दिया गया।
डाॅ. निसार उल हसन को 2023 में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल ने उसकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के कारण श्रीनगर के मेडिकल कालेज से बर्खास्त कर दिया था, लेकिन अल-फलाह यूनिवर्सिटी में उसकी आसानी से नियुक्ति हो गई थी। यही नहीं, सूत्र यह भी बताते हैं कि डा. उमर लंबी छुट्टियां लिया करता था, लेकिन उसकी छुट्टियों पर आपत्ति नहीं की जाती थी, जबकि अन्य कर्मचारियों की कम दिनों की छुट्टी पर भी सवाल उठाए जाते थे।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, जैश की फरीदाबाद से पूरे देश में प्रमुख स्थानों को दहलाने की साजिश थी और वह अपने मकसद में कामयाब भी हो गया होता, यदि ऑपरेशन सिंदूर में मई माह में उसके बहावलपुर में स्थित आतंकी ठिकाने तबाह न हुए होते।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद जैश की ताकत बहुत हद तक कम हो गई थी और आतंकी गतिविधियां रोककर वह नए सिरे से अपने को खड़ा कर रहा था। यही वजह थी कि यहां आतंकियों का समूह तैयार करने के बावजूद लाल किला धमाके से पहले तक किसी आतंकी घटना को अंजाम नहीं दिया गया था।
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