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Net Asset Value पर अपने कॉन्सेप्ट को कीजिए स्पष्ट, समझिए म्यूचुअल फंड में NAV की भूमिका क्या है

LHC0088 2025-11-12 19:37:39 views 1022

  



नई दिल्ली। आज रिटेल निवेशक लगातार निवेश पर अपनी जानकारी बढ़ा रहे हैं, अपनी पुरानी गलतियों से सीख रहे हैं, निवेश के दूसरे ऑप्शन को अपना रहे हैं। लेकिन इन प्रयासों के साथ ज्यादातर निवेशकों की सोच ऐसे निवेश विकल्पों को अपनाने की रहती है, जिनमें कम रिस्क है और बैंक से बेहतर रिटर्न मिले। यहां म्यूचुअल फंड्स सही विकल्प है। यही वजह है कि आज SIP इनफ्लो लगातार बढ़ रहा है, जिसकी वजह से Asset Under Management (AUM) भी ग्रो कर रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

म्यूचुअल फंड एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके बारे में जितनी जानकारी जुटाई जाए उतनी कम है। आपने NAV (Net Asset Value) के बारे में जरूर सुना होगा। लेकिन क्या आपने विस्तार से इस विषय को समझा है। अगर आपके कॉन्सेप्ट इस विषय पर स्पष्ट नहीं है, तो Three Dots Finitude के फाउंडर ऋषभ राजवंशी ने ज्ञानवर्धन किया है। जागरण बिजनेस के शो ‘फाइनेंस के फंडे’ में उन्होंने NAV विषय पर कई महत्वपूर्ण जानकारी दी।

  


क्या है NAV

बता दें कि किसी म्यूचुअल फंड स्कीम की परफॉर्मेंस उसकी प्रति यूनिट NAV द्वारा दर्शाई जाती है। NAV, फंड के कुल एसेट का प्रति-यूनिट मार्केट वैल्यू होता है। इसका कैल्कुलेशन करने के लिए कुल एसेट को कुल लायबिलिटी से घटाया जाता है और कुल आउटस्टैंडिंग यूनिट से डिवाइड किया जाता है। इसी से प्रति-यूनिट मार्केट वैल्यू निकाला जाता है। आप फंड हाउस की वेबसाइट और AMFI (Association of Mutual Funds in India) पर म्यूचुअल फंड की NAV को ट्रैक कर सकते हैं।

“फंड हाउस की वेबसाइट और AMFI पर NAV के बारे में मिलने वाली जानकारी से निवेशकों को अगले दिन फंड की बाइंग या रिडीम करने में मदद मिलती है“ - ऋषभ राजवंशी
म्यूचुअल फंड की खरीदारी में NAV की क्या है भूमिका

NAV का कार्य फंड के करेंट वैल्यू पर पारदर्शिता प्रदान करना है, जिससे आप इसके वैल्यू को ट्रैक कर सकते हैं और ग्रोथ का अंदाजा लगा सकते हैं। हालांकि, लो NAV का मतलब यह नहीं है कि फंड सस्ता है, या हाई NAV का मतलब यह नहीं है कि वह महंगा है। यह फंड के पूरे प्रदर्शन और क्षमता का विश्लेषण करते समय विचार करने वाले कई कारणों में से एक है।

“हमारे इन्वेस्टर्स कम्युनिटी के बीच में यह सबसे बड़ी गलतफहमी है कि हाई/लो NAV के आधार पर म्यूचुअल फंड को खरीदा या बेचा जाए, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। हाई/लो NAV फंड की परफॉर्मेंस के बारे में नहीं बताता है। इसके बावजूद, यह साधारण रूप से उस समय पर यूनिट वैल्यू के बारे में बताता है। यहां NAV के अलावा आपको फंड की परफॉर्मेंस पर भी ध्यान देना चाहिए “ - ऋषभ राजवंशी
म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय हमें क्या देखना चाहिए

किसी भी फंड का पोर्टफोलियो उस फंड के बारे में सब कुछ बता देता है। जैसे- फंड ने किन-किन सेक्टर्स में निवेश किया है, उसके पास लिक्विडिटी कितनी है और मैनेजमेंट कैसा है। इसके अलावा, एक्सपेंस रेश्यो, टैक्स, एग्जिट लोड, दूसरे फंड के साथ तुलना आदि पर विचार करना चाहिए। हालांकि, यह भी जरूरी है कि आप फंड के रिटर्न, रिस्क एडजस्ट रिटर्न और रिटर्न में स्थिरता कितनी है, के बारे में जानें।
Nav-Based Pricing और Entry Load-Based Pricing क्या है

Nav-Based Pricing में किसी म्यूचुअल फंड का Per-Unit Market Value निकालने के लिए कुल एसेट में से लायबिलिटी घटाकर कुल आउटस्टैंडिंग यूनिट से डिवाइड किया जाता है। यह कैल्कुलेशन रोजाना किया जाता है। इसमें निवेशक रोजाना कैल्कुलेट की गई NAV पर यूनिट्स को खरीदते और बेचते हैं। वहीं बात करें Entry Load-Based Pricing की तो, यह एक चार्ज या फीस है, जो निवेशकों द्वारा म्यूचुअल फंड यूनिट खरीदने पर NAV में जोड़ दी जाती है, जिससे खरीद की कुल लागत बढ़ जाती है। निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए और ट्रांसपेरेंसी को बढ़ावा देते हुए SEBI (Securities and Exchange Board of India) ने 2009 में निवेश के इस तरीके को हटा दिया था।
डिविडेंड, NAV पर कैसे डालते हैं प्रभाव

कई बार म्यूचुअल फंड द्वारा अर्जित लाभ को निवेशकों में डिविडेंड के रूप में डिस्ट्रीब्यूट किया जाता है। डिविडेंड आमतौर पर उस अतिरिक्त रिटर्न से प्राप्त होता है जो फंड मैनेजर निवेशकों के लिए अर्जित करता है, या उनके द्वारा होल्ड किए गए निवेश पर देय डिविडेंड से प्राप्त होता है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि डिविडेंड हमारे निवेश पर प्रभाव डालता है। जब कोई म्यूचुअल फंड डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूट करता है, तो भुगतान की राशि से NAV कम हो जाती है, लेकिन इस कमी का अर्थ निवेशकों के लिए नुकसान नहीं है। वैसे, डिविडेंड पर टैक्स आयकर स्लैब दर के अनुसार लगाया जाता है और इसे “अन्य स्रोतों से आय“ के रूप में रिपोर्ट किया जाता है।
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