कोसी प्रमंडल में इस बार बदलते समीकरण और राजनीतिक दलों की खींचतान बड़ी चुनौती
माधबेन्द्र, भागलपुर। कोसी की राजनीति में गठबंधन का गणित और जातीय समीकरण प्रभावी रहे हैं। प्रमंडल के तीन जिलों (सहरसा, सुपौल और मधेपुरा) में विधानसभा की कुल 13 सीटें हैं, और यहां यादव, पचपनिया, दलित-पिछड़े और अल्पसंख्यक आदि की गोलबंदी सत्ता का रुख तय करती है। कभी लालू-राबड़ी राज में इसे राजद का गढ़ माना जाता था। आगे चलकर शरद यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी ने इसे जदयू का किला बना दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
नीतीश के होने के कारण 2015 में महागठबंधन का पलड़ा भारी रहा तो 2020 में एनडीए का। सुपौल की सभी पांच, सहरसा की चार में से तीन और मधेपुरा की दो सीटें एनडीए के खाते में आईं। राजद को मात्र तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा। अब 2025 में बदलते समीकरण के बीच यहां की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर आ गई है।
सहरसा में चार सीटों पर रोचक जंग:
सहरसा जिले की चार सीटों (महिषी, सोनवर्षा, सहरसा और सिमरीबख्तियारपुर) पर इस बार का चुनावी संग्राम रोचक हो गया है। सहरसा सीट पर भाजपा के आलोक रंजन ने 2020 में लवली आनंद को हराया था। अब लवली जदयू की सांसद हैं और तीसरे स्थान पर रहे किशोर मुन्ना जन सुराज में जा चुके हैं।
भाजपा में टिकट को लेकर अंदरखाने खींचतान है, जबकि राजद अभी प्रत्याशी खोज रहा। सिमरीबख्तियारपुर सीट अभी राजद के युसूफ सलाउद्दीन के पास है। उन्होंने 2020 में वीआइपी सुप्रीमो मुकेश सहनी को डेढ़ हजार वोट से हराया था। अब मुकेश सहनी महागठबंधन के साथ हैं और एनडीए में इस सीट को लेकर घमासान है।
जदयू, लोजपा, हम और भाजपा चारों यहां अपने-अपने प्रत्याशी आगे बढ़ा रहे हैं। महिषी सीट पर जदयू के गुंजेश्वर साह की नैया पिछली बार लोजपा के अब्दुल रज्जाक ने हिलाई थी। इस बार भी उनकी उपस्थिति मुकाबले को तिकोना बना सकती है।
सोनवर्षा (सुरक्षित) पर मंत्री रत्नेश सादा मजबूत हैं, लेकिन यहां पासवान वोट का झुकाव समीकरण पलट सकता है।
मधेपुरा में यादव बनाम पचपनिया:
मधेपुरा हमेशा मंडल बनाम कमंडल और यादव बनाम पचपनिया समीकरण के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। सदर सीट से राजद के प्रो. चंद्रशेखर लगातार तीन बार विजयी रहे, लेकिन इस बार एंटी-इनकंबेंसी और आंतरिक गुटबाजी उनकी राह कठिन बना रही। जिलाध्यक्ष जयकांत यादव और ई. प्रणव प्रकाश जैसे दावेदार सक्रिय हैं। सिंहेश्वर (सुरक्षित) सीट पर राजद विधायक चंद्रहास चौपाल को पार्टी के भीतर ही विरोध झेलना पड़ रहा, जबकि जदयू से रमेश ऋषिदेव लगभग तय माने जा रहे हैं।
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बिहारीगंज में जदयू के निरंजन मेहता दावेदारी कर रहे, वहीं कांग्रेस-राजद की खींचतान और रेणु कुशवाहा की एंट्री से समीकरण उलझ गया है। आलमनगर सीट पर विधानसभा उपाध्यक्ष नरेंद्र नारायण यादव तय माने जा रहे, जबकि महागठबंधन यहां भी अंतर्कलह में उलझा है।
सुपौल में मजबूत है एनडीए का किला:
सुपौल जिले की पांचों सीटें (निर्मली, सुपौल, पिपरा, त्रिवेणीगंज, छातापुर) अभी एनडीए के पास हैं। 2010 में सभी पांचों सीटें जदयू ने जीती थीं। 2015 में जदयू-राजद गठबंधन के दौरान सुपौल, निर्मली और त्रिवेणीगंज जदयू को मिलीं, जबकि पिपरा और छातापुर से राजद मैदान में था।
कांग्रेस को सुपौल सीट मिली थी। उस चुनाव में भाजपा को केवल छातापुर की सीट मिली। 2020 आते-आते महागठबंधन यहां खाली हाथ हो गया। इस बार भी एनडीए में चार-एक का फार्मूला कायम रहने की संभावना है। वहीं, महागठबंधन में राजद चार और कांग्रेस एक सीट पर दावेदार है। वीआइपी भी हिस्सेदारी चाह रही।
गठबंधनों की रणनीति और कमजोर कड़ियां
कोसी में एनडीए को सत्ता और सीटिंग विधायकों के नेटवर्क का लाभ मिल सकता है। भाजपा और जदयू दोनों का यहां मजबूत संगठन है, जबकि लोजपा एवं हम जैसे सहयोगी दल भी तालमेल में हैं। हालांकि, टिकट बंटवारे में गुटबाजी परेशानी पैदा कर सकती है। अभी हाल ही में मधेपुरा के आलमनगर में लोजपा (रा) के प्रदेश सचिव चंदन सिंह ने बदलाव रैली निकाली, जबकि यहां सहयोगी दल जदयू के नरेंद्र नारायण यादव विधायक हैं।
महागठबंधन की स्थिति भी उलझी हुई है। राजद के अंदर गुटबाजी है, कांग्रेस कमजोर है और वीआइपी की एंट्री ने समीकरण और पेचीदा बना दिए हैं। कई सीटों पर स्थानीय कार्यकर्ताओं और बाहरी नेताओं के बीच ठनी हुई है।
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