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रामपुर तिराहा कांड मामले में 25 साल बाद भी न्याय का इंतजार, महिला आंदोलनकारियों से हुई थी बर्बरता

LHC0088 2025-11-9 00:37:43 views 770

  

महिला आंदोलनकारियों पर दुष्कर्म व अत्याचार की इंतहा। प्रतीकात्‍मक



जागरण संवाददाता, नैनीताल। अलग उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौर में दो अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहा कांड में आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाने, महिलाओं के साथ दुष्कर्म व अत्याचार करने के अभियुक्तों को सजा दिलाने का मामला न्यायिक लड़ाई में उलझा है। जिससे बलिदानी व अत्याचार से पीड़ित आंदोलनकारियों को न्याय नहीं मिला है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दरअसल दो अक्टूबर 1994 को जब राज्य आंदोलनकारी राज्य की मांग को लेकर दिल्ली कूच को निकले तो रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के निर्देश पर आंदोलनकारियों पर गोली चलाई गई। जिसमें सात आंदोलनकारी बलिदान, सात महिला आंदोलनकारियों के साथ दुष्कर्म किया गया और 17 महिलाओं पर अत्याचार किया गया। इस मामले की इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआइ जांच के आदेश दिए तो सीबीआइ ने हत्या, घातक हथियारों व फायरिंग से गंभीर चोट पहुंचाने की धाराओं में केस दर्ज किए थे।

इस मामले में आधा दर्जन मुकदमे विचाराधीन हैं। जिनकी स्थिति क्या है, इस पर हाई कोर्ट ने जवाब मांगा है। राज्य आंदोलनकारी अधिवक्ता व याचिकाकर्ता रमन कुमार शाह के अनुसार राज्य गठन के ढाई दशक बाद भी आंदोलनकारियों पर गोली चलाने, अत्याचार करने का आदेश जारी करने के बड़े अधिकारी अभियुक्तों को आज तक सजा नहीं हुई। अब तक इस कांड में दो पीएससी जवान ही दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा हुई जबकि तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह से संबंधित दस्तावेज तक नहीं मिल रहे हैं।

मुजफ्फरनगर की ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में 23 अन्य अभियुक्तों के विरुद्ध गैर जमानती वारंट जारी किए हैं। यहां उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने मुजफ्फनगर में सात, देहरादून में पांच केस दर्ज किए। सीबीआइ की विशेष कोर्ट ने चार्जशीट का संज्ञान हत्या व अन्य गंभीर धाराओं में किया लेकिन अब तक मामला अदालतों में विचाराधीन है।

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