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बाराचट्टी चुनाव: जातिवाद से ऊपर, विकास की राजनीति!

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बिहार विधानसभा चुनाव



अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी (गया)। बाराचट्टी सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनाव जातीय जोड़-घटाव से आगे बढ़कर सामाजिक संतुलन और स्थानीय मुद्दों की राजनीति का रूप ले चुका है। जहां पहले अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की संख्या चुनावी नतीजों की दिशा तय करती थी, वहीं अब स्वर्ण, ईबीसी और वैश्य समुदाय निर्णायक शक्ति बनकर उभर रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

राजनीति के जानकारों का कहना है कि मतदाता अब पार्टी से अधिक प्रत्याशी की छवि और कामकाज को प्राथमिकता दे रहे हैं। अनुसूचित वर्ग अब भी इस सीट की मूल ताकत है, लेकिन उसमें भी इस बार विचारों का बिखराव देखा जा रहा है।

कई समुदायों में मतदाता अपने हित और स्थानीय जरूरतों को तरजीह दे रहे हैं। स्वर्ण और वैश्य समुदाय के मतदाता विकास, सुरक्षा और स्थिर नेतृत्व को मुद्दा बना रहे हैं।

वहीं ईबीसी वर्ग हमेशा की तरह इस बार भी निर्णायक भूमिका में है, जो अपने सामाजिक और आर्थिक हितों के आधार पर अंतिम क्षणों तक अपना निर्णय तय करके चुप्पी साधे रहता है।


मायापुर के राजकुमार यादव कहते हैं,अब वोट जाति देखकर नहीं, काम देखकर देना चाहिए। जिसने सड़क, रोजगार और शिक्षा पर ध्यान दिया, वही हमारी पसंद होगा।

बरवाडीह के महावीर पासवान का कहना है, हम लोग चाहते हैं कि इस बार ऐसा विधायक बने जो हर समाज की बात सुने, सिर्फ चुनाव के समय ही न दिखे।

मोहनपुर के युवा मतदाता विक्की सिंह ने कहा, अबकी बार युवा वर्ग रोजगार और शिक्षा को लेकर सजग है। नेता वही सही जो इन मुद्दों को गंभीरता से लेते है।

बोधगया कबरबिगहा के भूषण सिंह का मानना है, बाराचट्टी में अब जाति नहीं, विकास की बात होनी चाहिए। जनता अब समझदार है, कौन क्या कर रहा है, सब जानती है।

वहीं चेरकी बाजार के व्यवसायी सुनील गुप्ता कहते हैं, व्यवसाय और बाजार की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है। स्थिर शासन और शांति के बिना विकास नहीं हो सकता।

इसी क्रम में मायापुर के राम किशुन मांझी की बात ने सामाजिक पीड़ा को सामने रखा। उनका कहना है,हमारा समाज आज भी मजबूत लोगों के दबाव में है, जैसे हमें गुलाम बनाकर रखा गया हो। अब हमें अपनी पहचान और अधिकार के लिए खुद आगे आना होगा।

इन बयानों से स्पष्ट झलकता है कि बाराचट्टी का मतदाता अब जातीय परंपराओं से निकलकर विकास, सम्मान और जवाबदेही की राजनीति को प्राथमिकता दे रहा है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार यदि परंपरागत गठजोड़ एकजुट नहीं रहे, तो ईबीसी, स्वर्ण और वैश्य मतदाता इस बार की बाजी पूरी तरह पलट सकते हैं।

जनसुराज और बसपा जैसे दलों की सक्रियता ने दोनों प्रमुख गठबंधनों की गणित को उलझा दिया है। अनुसूचित जाति समाज, जिसकी वजह से यह सीट आरक्षित श्रेणी में आती है, अब भी स्थानीय नेतृत्व के केंद्र में है।

वहीं पासवान, रविदास, यादव और अन्य समुदायों के मतदाता अलग-अलग मुद्दों को लेकर सक्रिय हैं। हर वर्ग अब इस सोच के साथ वोट डालने को तैयार है कि वोट अब सिर्फ पहचान नहीं, बल्कि भविष्य तय करेगा।

बाराचट्टी की जनता की यह परिपक्वता चुनावी हवा को और दिलचस्प बना रही है। अबकी बार जीत उसी की होगी, जो जातिय सीमाओं से ऊपर उठकर हर वर्ग के मतदाता से भरोसे का रिश्ता बना सके।
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