प्रतीकात्मक तस्वीर।
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। चंद रुपये की लालच में किसी गरीब परिवार के बच्चों की तस्करी कर बेचने वाले आरोपित भी कानूनी दांवपेंच से सलाखों से बाहर निकल जाते हैं। नवजात शिशुओं की तस्करी के ऐसे ही एक मामले में दो नवजात महिला तस्करों पूजा और बिमला को जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय पर गंभीर सवाल उठाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
महिला आरोपितों की जमानत रद करते हुए न्यायमूर्ति अजय दिग्पॉल की पीठ ने टिप्पणी की कि अभियुक्तों को जमानत देते समय अपने विवेक का प्रयोग करने के लिए ट्रायल कोर्ट ठोस और पर्याप्त कारण नहीं बता सका। वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर विवेकाधिकार का प्रयोग मनमाना पाया गया है और ऐसे गंभीर अपराधों में जमानत देने संबंधी स्थापित सिद्धांतों के विपरीत हैं।
अदालत ने कहा कि दोनों आरोपित बार-बार अपराध करते हुए गिरफ्तार किए गए हैं और अवैध व्यापार में नियमित भागीदार हैं। अदालत ने कहा कि जांच से पता चलता है कि आरोपित कई राज्यों में बच्चों की आपूर्ति, कूरियर और प्राप्त करने वाले गिरोह का हिस्सा हैं और अब भी आरोपित फरार हैं और एक शिशु अभी बरामद होना बाकी है।
ऐसे में अदालत की राय है कि नवजात शिशुओं की तस्करी के अपराध की उच्चतम स्तर की न्यायिक जांच की जरूरत है। अदालत ने कहा कि आरोपितों को जमानत देने से गवाहों को प्रभावित करने से लेकर अदालती कार्यवाही में बाधा डालने की पूरी संभावना है। उक्त तथ्यों को देखते हुए अदालत ने आरोपितों को जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के 22 जुलाई 2025 के आदेश को रद कर दिया और आरोपित पूजा व बिमला को सात दिन के अंदर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। अदालत ने नोट किया कि प्राथमिकी में नामजद 13 आरोपितों में से 11 के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया है।
दिल्ली से लेकर राजस्थान-गुजरात तक फैला नेटवर्क
पूछताछ में अंजली ने पुलिस को बताया कि उसे 2024 में भी तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया गया था और मार्च 2025 में वह जमानत पर बाहर आई थी। इसके बाद उसने फिर सरोज, ज्योति, पूजा व जितेंद्र के मिलकर काम शुरू किया। जांच में यह भी पता चला कि यह पूरा नेटवर्क दिल्ली से लेकर राजस्थान व गुजरात तक फैला है।
आरोपित प्रभु व रंजीत, गुजरात और राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवारों की पहचान करने और उन्हें अपने नवजात शिशुओं को 1,00,000 से 1,50,000 रुपये के बीच बेचने के लिए राजी करता था। एक बार सौदा पक्का हो जाने पर वे सरोज और ज्योति को सूचित करते थे। इसके बाद दिल्ली में पूजा से संपर्क किया जाता था और वह धन का प्रबंध करके यास्मीन को प्रभु और रंजीत से शिशुओं को लेने का निर्देश देती थी।
यास्मीन बच्चों को रिसीव करने के बाद ज्योति या सरोज को सौंप देता था। वे बच्चों को पूजा या अंजलि को दे देते थे। पूजा और अंजली बच्चों को दिल्ली में संभावित खरीदारों को बेच देते थे। आरोपित बिमला ने खरीदारों में से एक के रूप में काम किया, जिससे अंतिम लेनदेन में मदद मिली।
मुनाफे के कारण तस्करी करने लगीं महिला आरोपित
18 अप्रैल 2025 को गिरफ्तार की गईं सरोज, ज्योति व पूजा ने बताया था कि पहले वे आइवीएफ केंद्रों पर अंडाणु दान करने का काम करती थीं, लेकिन तस्करी होने वाले बड़े मुनाफे के कारण वे प्रभु के साथ काम करने लगी। उन्होंने स्वीकार किया कि प्रभु ने यास्मीन को राजस्थान और गुजरात में गरीब परिवारों से बच्चे इकट्ठा करने के लिए भेजा था और उन्होंने उसके जरिए पूजा को दो और कोमल को एक-दो बच्चे दिए थे। सरोज और ज्योति दोनों ने प्रति सौदे 35,000 से 40,000 कमीशन हासिल किया था।
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