सजने लगा है कांटे की टक्कर का मैंदान
जन्मेंजय, बिहारशरीफ (नालंदा)। बिहारशरीफ ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से बेहद अहम विधानसभा सीट रहा है। जिसपर सब की निगाहें रही है। यह न केवल नालंदा जिले की सबसे चर्चित सीटों में से एक है, बल्कि राज्य की सत्ता की राह भी अक्सर यहीं से होकर गुजरती है। हर दल की नजर इस सीट पर रहती है, क्योंकि यह सीट जीतना सिर्फ एक चुनावी सफलता नहीं, बल्कि प्रदेश की राजनीति में पैठ बनाने का प्रतीक भी है। पिछले दो दशकों से यह सीट सीएम नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा से जुड़ा है। वर्तमान में यह सीट भारतीय जनता पार्टी के पास है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
2020 में जब बिहारशरीफ बना सियासी रणभूमि
वर्ष 2020 में यह सीट राजनीतिक युद्ध का मैदान बना, जहां भाजपा के डा. सुनील कुमार ने 81,514 वोट हासिल कर जीत का परचम लहराया। वहीं, राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशी सुनील कुमार ने 66,281 वोटों के साथ कड़ी टक्कर दी। दोनों के बीच महज 15,000 वोटों का फासला रहा, जो इस बात का संकेत था कि एनडीएम प्रत्याशी यदि सर्तक नहीं हुए तो आने वाला समय मुश्किलें पैदा कर सकता है। वह न सिर्फ कांटे का था बल्कि प्रदेश की राजनीति के बदलते समीकरणों की एक मजबूत झलक थी।
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एक बार सत्ता की होड़ का केंद्र बनने जा रहा बिहारशरीफ
अब 2025 का चुनाव होना है। नवंबर में चुनाव होने का कयास लगाया जा रहा है। ऐसे में बिहारशरीफ एक बार सत्ता की होड़ का केंद्र बनने जा रहा है। इस सीट से भाजपा, राजद सहित करीब एक दर्जन निर्दलीय प्रत्याशी जीत की आस लगाए बैठे हैं। जिसमें मनोज तांती, कुंदन कुमार, प्रफुल्ल पटेल, पप्पू खां, दानिश मलिक, संजय यादव, सुनील कुमार, दिनेश कुमार, अनिल अकेला, आइशा फातिमा, विनोद मुखिया शामिल हैं। वहीं राजद ने अब तक अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है।
जिसके कारण अटकलें तेज है। राजद प्रत्याशी की कतार में आइशा फातिमा, सुनील कुमार, दानिश मलिक खड़े दिख रहे हैं। लेकिन राजद सुप्रीमो की ओर से अब तक हरी झंडी किसी को नहीं मिली है।
एनडीए प्रत्याशी की जीत की राह आसान नहीं
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो इस बार चुनावी संघर्ष पहले से कहीं अधिक तीव्र और रणनीतिक होने वाला है। माना यह जा रहा है कि इस बार एनडीए प्रत्याशी की राह आसान नहीं है। क्योंकि मैंदान में उतरने वाले अधिकांश प्रत्याशियों के वोटर एनडीए कैडर के ही हैं। ऐसे में एनडीए प्रत्याशी के लिए जीत की डगर आसान नहीं है। ऐसे में की जनता की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या डा. सुनील कुमार दोबारा विश्वास जीत पाएंगे या इस बार बदलाव की बयार किसी नए चेहरे को मौका देगी।
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