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Digital Arrest: तीन साल में 43 लोग बनें शिकार, 30 करोड़ रुपये ठगे

LHC0088 9 min. ago views 1028

  

प्रदेश में साइबर ठगी के शिकारत हुए अधिकतर पीड़ित बुजुर्ग, 29 ठगों को किया गिरफ्तार



सोबन सिंह गुसांई, देहरादून। डिजिटल युग में साइबर ठग ठगी के नए-नए तरीकों को अपना रहे हैं। इनमें से डिजिटल अरेस्ट का नया स्कैम शुरू कर साइबर ठगों ने तीन सालों में 43 लोगों से 30 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि लूट ली। ठगी के शिकार हुए पीड़ितों में अधिकतर बुजुर्ग लोग हैं। हालांकि साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन ने कार्रवाई करते हुए 29 ठगों को गिरफ्तार भी किया है। अन्य मामलों में पुलिस जांच कर रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

बढ़ते डिजिटल अरेस्ट के केसों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने इससे निपटने के लिए कड़े आदेश देने की जरूरत बताते हुए कहा कि अगर अभी इसे नजरअंदाज करते हैं तो भविष्य में यह समस्या बढ़ सकती है। उत्तराखंड में भी डिजिटल अरेस्ट के केसों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। गंभीर बात तो यह है कि पुलिस इन ठगों से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं। पुलिस एक तरफ संसाधनों से जूझ रही है तो वहीं दूसरी ओर मानवशक्ति की भी भारी कमी है।

साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन देहरादून के रिकार्ड के अनुसार अक्टूबर 2023 से नवंबर 2025 तक साइबर ठगों ने 43 लोगों को अपने जाल में फंसाया। उन्हें गिरफ्तारी का डर दिखाकर उनसे 30 करोड़ रुपये की ठगी की। इनमें से 24 डिजीटल अरेस्ट के मुकदमे साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन देहरादून में ही दर्ज हैं। इसके अलावा 08 मुकदमे साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन कुमाऊं, 06 मुकदमे उधमसिंहनगर, 04 मुकदमे हरिद्वार और एक मुकदमा पौड़ी गढ़वाल में दर्ज हुआ है।

छोटे-मोटे ठग ही चढ़ते हैं पुलिस के हत्थे
साइबर अपराध के दो बड़े हथियार सिम कार्ड और बैंक अकाउंट हैं। दोनों की केवाईसी है, लेकिन हजारों सिम कार्ड फर्जी नामों और पहचानों से बिकते हैं। खाते खोलने में फर्जीवाड़ा हो रहा है। पुलिस अलग-अलग समय में कई साइबर अपराधियों को सिमकार्ड के साथ गिरफ्तार कर चुकी है, लेकिन फर्जी सिमकार्ड के खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं लग पा रही है। ऐसे में देश में बैठे साइबर ठग फर्जी तरीके से सिमकार्ड लेते हैं और इसी नंबर से खाता खुलवाकर विदेश में बेच देते हैं। ठगी की धनराशि चाइना, कंबोडिया, थाइलैंड जैसे देशों में चली जाती है। विदेश में बैठे साइबर ठगों को पकड़ना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है।

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डिजिटल अरेस्ट का खतरनाक जाल
आइपीएस अधिकारी कुश मिश्रा ने बताया कि डिजिटल अरेस्ट का मतलब होता है फोन या वीडियो काल के जरिए किसी व्यक्ति को यह विश्वास दिलाना कि वह किसी अपराध में शामिल है और उसे गिरफ्तार किया जा रहा है। ठग सबसे पहले पीड़ित को फोन करके बताते हैं कि उसके बैंक खाते या मोबाइल नंबर का इस्तेमाल किसी गैरकानूनी गतिविधि में हुआ है।

इसके बाद उसे डराया जाता है अगर वह सहयोग नहीं करेगा तो पुलिस उसकी गिरफ्तारी कर लेगी। फिर वीडियो कॉल के जरिए अपराधी खुद को पुलिस अधिकारी, जांच एजेंसी या किसी मंत्रालय से जुड़ा अधिकारी बताकर पेश करते हैँ। बैकग्राउंड में पुलिस स्टेशन या सरकारी कार्यालय जैसा माहौल तैयार किया जाता है। इसके बाद ठग पीड़ित से रकम अपने खाते में ट्रांसफर करवा लेते हैँ।

डिजिटल अरेस्ट से ऐसे बचें

  • कोई भी पुलिस या सरकारी एजेंसी आनलाइन या वीडियो काल पर किसी को गिरफ्तार नहीं करती
  • अगर कोई खुद को पुलिस, सीबीआइ, आरबीआइ या कोई सरकारी अधिकारी बताकर काल करें तो तत्काल काल काट दें
  • बैंक खाता नंबर, ओटीपी, कार्ड डिटेल, पैन या आधार नंबर किसी को फोन या वाट्सएप पर न बताएं
  • साइबर ठग वीडियो काल पर नकली पुलिस आफिस दिखाते हैँ, यह सब फर्जी होता है।
  • किसी कॉल पर शक हो तो तत्काल हेल्पलाइन नंबर 1930 पर संपर्क करें
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