अयोध्या मामले का फैसला आस्था नहीं हुआ- पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)
एएनआई, मुंबई। पूर्व प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि अयोध्या मामले का फैसला आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि साक्ष्यों और कानूनी सिद्धांतों के आधार पर हुआ था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बाबरी ढांचे के निर्माण संबंधी एक मीडिया पोर्टल को दिया गया उनका बयान गलत तरीके से समझा गया और इसी वजह से अयोध्या विवाद पर उनके विचारों की गलत व्याख्या हुई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
लोग बिना पढ़े इंटरनेट मीडिया पर व्यक्त करते हैं राय- चंद्रचूड़
मुंबई में एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में आलोचनाओं का जवाब देते हुए चंद्रचूड़ ने कहा, \“\“इंटरनेट मीडिया पर लोग जवाब के एक हिस्से को उठाकर दूसरे हिस्से से जोड़ देते हैं, जिससे संदर्भ पूरी तरह से बदल जाता है।\“\“
चंद्रचूड़ ने कहा कि अधिकतर लोगों ने फैसला नहीं पढ़ा है
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चंद्रचूड़ ने कहा कि अधिकतर लोगों ने फैसला नहीं पढ़ा है और बिना पढ़े ही इंटरनेट मीडिया पर राय व्यक्त करते हैं।
उन्होंने कहा, \“\“यह फैसला 1,045 पृष्ठों का था क्योंकि केस रिकॉर्ड 30,000 पृष्ठों से अधिक का था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास में क्या हुआ था। ये तथ्य साक्ष्यों का हिस्सा थे जिन पर हमने उस मामले में विचार किया था।\“\“
इंटरनेट मीडिया पर न्यायिक स्वतंत्रता के दो आधार हैं
जस्टिस चंद्रचूड़ उस पांच सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे जिसने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था। पूर्व सीजेआइ ने यह भी कहा कि इंटरनेट मीडिया पर न्यायिक स्वतंत्रता के दो आधार हैं और आजकल लोग इसी तरह जजों का आकलन कर रहे हैं।central government, government report, high triglycerides, heart disease,
उन्होंने कहा, \“\“जब तक कोई जज हर मामले का फैसला किसी नेटिजन के दृष्टिकोण के अनुसार नहीं करता, तो उसे स्वतंत्र नहीं माना जाता। स्वतंत्रता को केवल सरकार के विरुद्ध फैसला करने के रूप में भी देखा जाता है। अगर आप एक मामले का फैसला सरकार के पक्ष में करते हैं, तो आपको सरकार समर्थक कहा जाता है।\“\“
चंद्रचूड़ ने उन मामलों के उदाहरण दिए जिनमें सरकार के विरुद्ध फैसले सुनाए गए, जिनमें चुनावी बांड मामला, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक दर्जा मामला और आधार का फैसला शामिल हैं।
न्यायिक तटस्थता के संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन
जब उनसे पूछा गया कि क्या इतने महत्वपूर्ण फैसले से पहले सार्वजनिक रूप से प्रार्थना करने की बात स्वीकार करना न्यायिक तटस्थता के संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन है, तो चंद्रचूड़ ने कहा, \“\“जज प्रतिदिन संघर्ष के दौर से गुजरते हैं। मैं अपने काम में शांति और संतुलन लाने के लिए हर सुबह प्रार्थना या ध्यान करता हूं।\“\“
उन्होंने बताया कि प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने प्रतिदिन नवकार मंत्र का जाप किया और इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान एक दरगाह और गोवा की यात्राओं के दौरान एक चर्च सहित कई धार्मिक स्थलों का दौरा किया।
मेरी आस्था दूसरों को अलग तरह की आस्था नहीं
चंद्रचूड़ ने कहा, \“\“मेरी आस्था दूसरों को अलग तरह की आस्था रखने की गुंजाइश देती है। शांत चिंतन या प्रार्थना में कुछ भी गलत नहीं है, जो एक जज को निष्पक्षता से न्याय करने में मदद करती है।\“\“ उन्होंने स्पष्ट किया कि इस तरह की निजता संविधान के तहत संरक्षित हैं, जो जजों समेत प्रत्येक व्यक्ति को आस्था के अधिकार की गारंटी देता है।
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