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जस्टिस सूर्यकांत होंगे देश के अगले चीफ जस्टिस, राष्ट्रपति ने नियुक्त पर लगाई मोहर

Chikheang 4 day(s) ago views 289

जस्टिस सूर्यकांत को बृहस्पतिवार को भारत का 53वां प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया और वह 24 नवंबर को पदभार ग्रहण करेंगे। केंद्रीय कानून मंत्रालय के न्याय विभाग ने एक अधिसूचना जारी करके उनकी नियुक्ति की घोषणा की। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस भूषण आर. गवई की जगह लेंगे, जो 23 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत लगभग 15 महीने तक प्रधान न्यायाधीश के पद पर रहेंगे और 65 साल की उम्र पूरी होने पर 9 फरवरी, 2027 को रिटायर होंगे।



कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोशल मीडिया प्लेट ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘भारत के संविधान की ओर से दी गईं शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत को 24 नवंबर, 2025 से भारत का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया है।’’



वर्तमान CJI भूषण रामकृष्ण गवई के बाद सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे सीनियर जज, जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को देश के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे। चीफ जस्टिस गवई 23 नवंबर को रिटायर होंगे।




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CJI जस्टिस बीआर गवई ने अगले प्रधान न्यायाधीश के रूप में केंद्रीय कानून मंत्रालय से जस्टिस सूर्यकांत के नाम की सिफारिश की है।



शीर्ष अदालत की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज में कहा गया है, “भारत के माननीय प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई, भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश के पद के लिए अपने उत्तराधिकारी के रूप में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश, माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम की सिफारिश करते हैं।“



सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में 24 मई, 2019 को प्रमोट हुए जस्टिस सूर्यकांत का प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल करीब 15 महीने होगा। वह 9 फरवरी, 2027 को रिटायर होंगे।



सुप्रीम कोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र 65 साल है।



सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति, ट्रांसफर और प्रमोशन के दिशानिर्देश संबंधी प्रक्रिया ज्ञापन के अनुसार भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज को चुना जाना चाहिए, जिन्हें पद धारण करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।



इसके अनुसार केंद्रीय कानून मंत्री, ‘उचित समय पर’, निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश से उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति के लिए अनुशंसा प्राप्त करेंगे।



परंपरागत रूप से, यह पत्र वर्तमान प्रधान न्यायाधीश के 65 वर्ष की आयु होने पर सेवानिवृत्त होने से एक महीने पहले भेजा जाता है।



न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। वह 24 मई, 2019 को शीर्ष अदालत में न्यायाधीश बने।



न्यायमूर्ति सूर्यकांत पीठ में दो दशक के अनुभव के साथ देश के शीर्ष न्यायिक पद को ग्रहण करेंगे, जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण और लैंगिक समानता से संबंधित ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं।



न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी थी और निर्देश दिया था कि सरकार की ओर से समीक्षा होने तक इसके तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज न की जाए।



चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को रेखांकित करने वाले एक आदेश में, उन्होंने निर्वाचन आयोग को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों का विवरण देने को कहा था।



न्यायमूर्ति सूर्यकांत को यह निर्देश देने का श्रेय भी दिया जाता है कि उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं।



उन्होंने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन (ओआरओपी) योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए उसे बरकरार रखा और सेना में स्थायी कमीशन में समानता की मांग करने वाली सशस्त्र बलों की महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी।



न्यायमूर्ति सूर्यकांत सात-न्यायाधीशों की उस पीठ में शामिल थे जिसने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था।



वह पेगासस स्पाइवेयर मामले की सुनवाई करने वाली पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने गैरकानूनी निगरानी के आरोपों की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों का एक पैनल नियुक्त किया था। न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा रहे जिसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 2022 की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ​​​​की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों के लिए ‘‘न्यायिक रूप से प्रशिक्षित दिमाग’’ की आवश्यकता होती है।



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