मांदर की थाप पर जीवंत होती संस्कृति
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक परंपराओं को नई ऊर्जा और पहचान दिलाने वाली लोकगायिका रेखा देवार ने अपनी कला से एक अलग ही छाप छोड़ी है। मांदर की थाप पर गाए उनके गीत सिर्फ सुरों का संगम नहीं, बल्कि संस्कृति की जीवंत गूंज हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
वर्ष 1984 में ‘नवा अंजोरी लोक कला सांस्कृतिक मंच’ से जुड़कर उन्होंने लोककला को गांव की गलियों से निकालकर देश के प्रतिष्ठित मंचों तक पहुंचाया। चार हजार से अधिक प्रस्तुतियों के साथ रेखा देवार ने यह साबित किया है कि लोककला केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि वर्तमान की जीवंत सांस है।
कौन हैं रेखा देवार?
रेखा देवार मुंगेली जिले की निवासी है। वे घुमंतू समुदाय की देवार जाति से आती है। बचपन में गरीबी के बावजूद उन्होंने सात साल की उम्र में अपने नाना-नानी के साथ गांव-गांव घूमकर गाना शुरू किया। उनकी प्रतिभा पर ध्यान देने वाले पहले व्यक्ति थे गुरु विजय सिंह, जिनसे उन्होंने भरथरी गाने की कला सीखी। इसके बाद उन्होंने देवार परंपरा के गीतों को गाने का प्रशिक्षण लिया।
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ददौरी में वेदराम देवार और मांदर के सुप्रसिद्ध कलाकार स्व. झुमुकराम देवार से शिक्षा ली। विजय से विवाह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उन्होंने विजय सिंह के साथ दिल्ली, जयपुर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में अपनी प्रस्तुतियां दीं। रेखा का कहना है कि उनका पूरा जीवन संगीत के लिए समर्पित है और विजय सिंह ने ही उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया। चार साल पहले रेखा ने अपने पति को खो दिया। उनकी मृत्यु से पहले, उन्होंने रेखा से कहा था, “मैं मर भी जाऊं, तो हमेशा हंसती रहना, संगीत मत छोड़ना।“ यह वचन रेखा के लिए प्रेरणा का स्रोत बना है।
लोकगायिकी सिखाने खोलना चाहती हैं स्कूल
लोकगायिका रेखा देवार अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने के लिए लोकगायिकी का प्रशिक्षण युवाओं को देना चाहती हैं। उनका लक्ष्य लोकगायिकी सिखाने के लिए एक स्कूल खोलना है, जिसके लिए वे सरकार से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा रखती हैं। उन्हें अब तक कई राज्य और राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए हैं।
रेखा देवार ने देवार जाति की समस्याओं को उजागर करते हुए कहा कि सरकार को उनके समुदाय की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। उनकी इच्छा है कि देवार जाति के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचे। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि देवार समुदाय के कल्याण के लिए एक समिति का गठन किया जाए, जो उनकी समस्याओं का समाधान कर सके।
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