बिहार के सात प्रसिद्ध देवी मंदिरों में मां दुर्गा की पूजा
जागरण टीम, पटना। नवरात्र में चहुंओर श्रद्धालु मां दुर्गे की आराधना में डूबे हैं। जिसकी जैसी क्षमता व श्रद्धा, वैसी ही पूजन विधि, शृंगार व स्तुति गान। ऐसे में श्रद्धालुओं के मन में जानने की उत्कंठा रहती है कि मां दुर्गे के प्रसिद्ध मंदिरों में पूजा, आरती व शृंगार का कौन सा विधि-विधान अपनाया जाता है। ताकि उसी प्रक्रिया का पालन कर मां को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त की जा सके। प्रस्तुत है, राज्य के अलग-अलग जिले के सात प्रसिद्ध देवी मंदिरों की स्तुति व शृंगार की विधि। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मां ताराचंडी धाम: जयंती मंगलाकाली
यह मंदिर सासाराम में जीटी रोड के किनारे अवस्थित है। मान्यता है कि यहां पर मां सती का दायां नेत्र गिरा था। मां पहाड़ी की गुफा में विराजमान हैं। गर्भ गृह के पास 11वीं सदी का एक शिलालेख है, जिससे मंदिर की प्राचीनता की पुष्टि होती है।
प्रतिमा पूर्व मध्यकालीन तथा प्रत्यालीढ़ मुद्रा में है। यहां मां का शृंगार वस्त्र, फूल, माला, इत्र, गंगाजल, रक्त चंदन व केशर चंदन, रोली, दूब और आभूषण से भोर 3.30 से चार बजे के बीच होता है।
सुबह की आरती भोर में चार बजे, दोपहर में 12 बजे भोग के साथ व शाम में 7:30 से 8:30 बजे तक होती है। यहां स्तुति, जयंती मंगलाकाली... (श्लोक) व रात में ऊं नम:...(क्षमा याचना) से की जाती है।
कमेटी के महामंत्री महेंद्र साहू ने बताया ने बताया कि कोई श्रद्धालु मंदिर परिसर में पूरे नवरात्र पूजा पाठ करना चाहे तो पूरी व्यवस्था है। भक्त चाहें तो यहां अपनी ओर से पूरे नवरात्र अखंड दीप भी प्रज्जवलित कर सकते हैं।
बड़ी पटनदेवी: ऊं नम:
पटना सिटी स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि मां सती की दाहिनी जंघा गिरी थी। मंदिर में महाकाली, महासरस्वती व महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है। यहां शृंगार वस्त्र, फूल, माला, गंगाजल, सफेद चंदन व केशर चंदन, रोली व दूब से सुबह चार से पांच बजे तक होता है।
मां की सुबह की आरती पांच से छह बजे और रात की आरती 10:30 से 11:30 बजे तक होती है। आरती के समय स्तुति गान, जयंती मंगलाकाली... (श्लोक) व रात में ऊं नम:...(क्षमा याचना) है।
महंत विजय शंकर गिरि ने बताया कि कोई श्रद्धालु मंदिर परिसर में पूरे नवरात्र पूजा पाठ करना चाहें तो परिसर में ब्राह्मण व भक्त के पूजा करने की व्यवस्था है।
छोटी पटनदेवी: जय अम्बे गौरी
पटना सिटी स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर मां सती की दाहिनी जंघा गिरी थी। मंदिर में महाकाली, महासरस्वती व महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है। यहां शृंगार वस्त्र, फूल, माला, गंगाजल, कुमकुम, सिंदूर, इत्र, रोली, दूब, अपराजिता के फूल, स्वर्ण आभूषण अलंकरण से सुबह चार से छह बजे के बीच होता है।
मां की सुबह की आरती छह से सात बजे व रात की आरती आठ से नौ बजे होती है। स्तुति गान के बोल- जग जननी जय-जय मां... व रात में जय अम्बे गौरी...(क्षमा याचना) है।
पीठाचार्य अभिषेक अनंत द्विवेदी ने बताया कि कोई श्रद्धालु मंदिर परिसर में पूरे नवरात्र पूजा पाठ करना चाहें तो परिसर में ब्राह्मण व भक्त के लिए पूरी व्यवस्था है।
मां मुंडेश्वरी मंदिर: खडगम चक्र गदेशु
कैमूर जिले के रामगढ़ गांव के निकट पंवरा पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह देवी मंदिर अब तक ज्ञात इतिहास के अनुसार प्राचीनतम है। इसके निर्माण का कालखंड 389 ईस्वी के आसपास है। इसके निर्माण की अष्टकोणीय वास्तुकला नागर शैली की है।
मान्यता है कि यहीं पर मां ने मुंड नामक राक्षस का किया था। यहां मां का शृंगार प्रात: पांच से छह बजे के बीच साड़ी, चुनरी, फूल व माला से किया जाता है। सुबह में छह से साढ़े छह बजे के बीच मंगला आरती, मध्याह्न में 12 से लेकर 12:30 बजे व संध्या आरती साढ़े छह बजे से सात बजे तक होती है।
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तीनों समय स्तुति दुर्गा सप्तशती से (खडगम चक्र गदेशु....) से की जाती है। नवरात्र में मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के पूजा-पाठ की व्यवस्था है। यदि कोई आचार्य रखकर पूजा कराना चाहे तो उसकी भी सुविधा है।
मां थावे: या देवी सर्वभुतेषू
गोपालगंज जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर सिवान-गोपालगंज मुख्य मार्ग पर ऐतिहासिक थावे मंदिर स्थित है। यह लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व स्थापित है। आदि काल से यहां मां की पूजा-अर्चना की जाती है।
यहां मां भगवती भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं। मां का शृंगार तड़के चार से पांच बजे के मध्य लाल चुनरी, सोलह शृंगार के सभी साधन से किया जाता है। शाम सात बजे फूलों से शृंगार किया जाता है।
आरती सुबह सुबह पांच से छह बजे तथा रात आठ से नौ बजे तक होती है। स्तुति गान के बोल या देवी सर्वभुतेषू..., नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम: से प्रारंभ होती है। एक घंटे की आरती में दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है।
मां अंबिका भवानी
यह मंदिर सारण के दिघवारा में गंगा नदी तट पर अवस्थित है। मान्यता है कि यहां राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में कूदकर माता सती भस्म हुई थीं। यहां माता की पिडी स्थापित है। मां का शृंगार सुबह में नहीं, केवल शाम 7.30 बजे से रात 9.30 तक सोने चांदी के आभूषण, फल व नौ प्रकार के फूल व मखाना आदि से होता है।
सामान्य दिनों में सुबह की आरती पांच से छह बजे व शाम में चार बजे से होती है। नवरात्र में आरती शृंगार के बाद 9.30 बजे रात से शुरू होती है। स्तुति, आरती की जै जगदम्बे भवानी....से की जाती है। कोई श्रद्धालु मंदिर परिसर में पूरे नवरात्र पूजा पाठ करना चाहें तो यहां ठहरने की उचित व्यवस्था है।
मंगलागौरी: ‘ऊं मंगले वरदे
मंगलागौरी मंदिर गयाजी-बोधगया सड़क किनारे अवस्थित है। ‘ऊं मंगले वरदे देवी भस्मकूटनिवासिनी’- यह श्लोक मंदिर के प्रवेश द्वार पर अंकित है। इसे पालनपीठ माना जाता है। प्रमुख प्रसाद नारियल है।
मां का शृंगार पंचामृत स्नान के उपरांत वस्त्र और लाल उड़हुल के फूल से किया जाता है। मां के स्थान के ऊपर घृतदीप अनवरत प्रज्जवलित रहता है। सुबह चार बजे, दोपहर एक बजे और रात्रि 11 बजे आरती होती है। स्तुति, जय अंबे गौरी... से की जाती है।
नवरात्र में मंदिर परिसर में दुर्गा सप्तशती पाठ करने का कोई शुल्क नहीं लगता। दर्जनों लोग परिसर में बैठकर पाठ करते हैं।
पुजारी प्रमोद गिरि ने बताया कि जिन भक्तों के पास अर्थाभाव के कारण नए वस्त्र या धार्मिक पुस्तक नहीं होती, उनकी पूरी व्यवस्था समिति करती है।
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