भाई दूज का महत्व।  
 
  
 
दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। भाई दूज, जो दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है, भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत करने और उनके प्रेम को सम्मान देने का विशेष अवसर है। यह पर्व केवल भाई-बहन के रिश्ते में स्नेह और प्यार का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसमें सुरक्षा, जिम्मेदारी और आशीर्वाद की भावना भी छिपी होती है। जिन बहनों के पास कोई वास्तविक भाई नहीं होता, उनके लिए भी यह दिन उतना ही महत्वपूर्ण और भावपूर्ण होता है। परंपरा में ऐसे बहनों के लिए कई रीति-रिवाज हैं, जिनके माध्यम से वे इस पर्व को अपने जीवन में उतनी ही श्रद्धा और प्रेम के साथ मना सकती हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
    
जिन बहनों के भाई नहीं हैं वे क्या करें?  
 
ऐसी बहनें अपने घर या आस-पड़ोस के किसी करीबी पुरुष सदस्य को अपने भाई के रूप में मानकर भाई दूज मनाती हैं। यह पिता, चाचा, भाई समान मित्र या अन्य रिश्तेदार हो सकते हैं। इस परंपरा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बहन अपने स्नेह, प्रेम और सेवा भाव को व्यक्त कर सके और अपने लिए भाई के संरक्षण और आशीर्वाद का अनुभव कर सके। इस तरह, भाई दूज केवल रक्त संबंधों तक सीमित नहीं रह जाता, बल्कि यह भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव को भी उजागर करता है।  
चंद्रमा और देवताओं को भाई मानना  
 
कुछ क्षेत्रों में, जैसे हरियाणा और महाराष्ट्र, बहनें चंद्रमा को अपना भाई मानकर पूजा करती हैं। वे तिलक करती हैं, आरती उतारती हैं और उसकी लंबी उम्र, खुशहाली और समृद्धि की कामना करती हैं। इसके अलावा, कुछ परंपराओं में बहनें भगवान यमराज या भगवान कृष्ण को अपना भाई मानकर भी तिलक और भोजन करती हैं। यह पूजा और भोजन बहन के प्रेम और सेवा भाव को व्यक्त करने का एक सुंदर तरीका है और भाई दूज की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को बनाए रखता है।  
 
यह भी पढ़ें: Bhai Dooj पर जरूर करें ये काम, भाई-बहन को मिलेगा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद  
 
यह भी पढ़ें:  Chhath Puja 2025: 26, 27 या 28 अक्टूबर, कब दिया जाएगा सूर्य देव को संध्या अर्घ्य? यहां नोट करें छठ पूजा की संपूर्ण जानकारी  
 
लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें। |