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तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच नहीं थम रहा विवाद, SC में इस विधेयक के फैसले को दी चुनौती

LHC0088 2025-10-16 14:07:22 views 327

  

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल का विवाद (फाइल फोटो)




डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तमिलनाडु की राजनीति में सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहा विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा है। बुधवार को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। राज्य सरकार ने राज्यपाल के उस “अवैध और असंवैधानिक“ फैसले को चुनौती दी, जिसमें उन्होंने तमिलनाडु शारीरिक शिक्षा और खेल विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 को राष्ट्रपति की स्वीकृति देने के बजाय उसे राष्ट्रपति के पास भेजने का फैसला किया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दरअसल, मुख्य सचिव के माध्यम से दायर राज्य की रिट याचिका में राज्यपाल, भारत संघ और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में यह मांग की गई है कि विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखने का राज्यपाल का कार्य “स्पष्ट रूप से असंवैधानिक, संविधान के अनुच्छेद 163(1) और 200 का उल्लंघन करने वाला और आरंभ से ही शून्य“ है।

तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने SC में याचिका दी है। याचिका में कलैगनार विश्वविद्यालय विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आरक्षित करने के राज्यपाल के फैसले को दी चुनौती दी। इस याचिका से पहले सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के गवर्नर आर. एन. रवि को फटकार भी लगाई थी।
क्या है पूरा मामला

यह पूरा मामला यूनिवर्सिटी वाइस-चांसलर विधेयक से जुड़ा है। जिसमें राज्य सरकार की ओर से के कुलपति की नियुक्ति में बदलाव को लेकर एक प्रस्ताव लाया गया था. इस प्रस्ताव के तहत राज्यपाल की जगह कुलपति की नियुक्ति सीएम के हाधों में होगी। लेकिन विधेयक पास होने के बाद राज्यपाल द्वारा इसे मंजूरी नहीं दी गई। इसके बाद यह विवाद तब और बढ़ गया राज्यपाल आर. एन. रवि ने एक समिति का गठन किया जिसका काम वाइस-चांसलर की नियुक्ति करना था। तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया और इसको लेकर तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
राज्य सरकार का तर्क

एनडीटीवी की रिपोट के मुताबिक, 29 अप्रैल, 2025 को तमिलनाडु विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित यह विधेयक राज्य सरकार को तमिलनाडु शारीरिक शिक्षा एवं खेल विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति और उन्हें हटाने का अधिकार देता है। यह अधिकारी वर्तमान में कुलपति के पास है। सरकार का तर्क है कि यह विधेयक समवर्ती सूची (प्रविष्टि 25) के अंतर्गत आता है, जिससे यह राज्य विधानमंडल के अधिकार क्षेत्र में आता है।

याचिका के अनुसार, विधेयक को 6 मई, 2025 को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था, साथ ही इसे मंजूरी देने के लिए मुख्यमंत्री की सलाह भी ली गई थी। हालांकि, 14 जुलाई को, राज्यपाल ने यूजीसी विनियम, 2018 के खंड 7.3 के साथ कथित टकराव का हवाला देते हुए विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज दिया - एक ऐसा कदम जिसके बारे में राज्य का कहना है कि यह उनके संवैधानिक अधिकार से परे है।
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