जागरण संवाददाता, भागलपुर। बिहार में चुनावी बिगुल बजते ही इंटरनेट मीडिया पर राजनीतिक माहौल जितना गर्म है, उतना ही मनोरंजक भी हो गया है। इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर ऐसी-ऐसी रीलें वायरल हो रही हैं, जिन्हें देखकर लोग हंस-हंसकर लोटपोट हो रहे हैं और साथ ही सूबे की सामाजिक हकीकत पर भी सोचने को मजबूर हो रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इधर सबसे ज्यादा चर्चा में एक वीडियो है, जिसमें कुछ युवा बाकायदा रैली पैकेज का आफर देते नजर आते हैं। संदेश कुछ यूं है “कोई भी दल संपर्क कर सकता है। गाड़ी आपका, खाना-पीना आपका, बस हमको 500 दे दीजिए, दिनभर झंडा ढोएंगे, जिंदाबाद-मुर्दाबाद करेंगे।
बेरोजगार हैं भाई, पैसा के खातिर किसी भी पार्टी में जाने को तैयार हैं। इस कटाक्ष भरे कंटेंट को विक्की फोटोग्राफर नाम के क्रिएटर ने पोस्ट किया है, जिसे अब तक 11 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। सिर्फ यही नहीं, हाल के दिनों में होने वाले दल-बदल पर भी क्रिएटर्स जमकर मीम और रील बना रहे हैं।
धमदाहा के कंटेंट क्रिएटर अमित मेहता ने एक वीडियो बनाया है जिसमें वह कुशवाहा समाज के राजनीतिक उलटफेर को मजाकिया अंदाज में बताते हैं पहले सब एक पार्टी में थे, अब सब दूसरी में पहुंच गए हैं। झोला लेकर इधर-उधर घूम रहे हैं। इस वीडियो पर भी हजारों मजेदार कमेंट आए किसी ने लिखा भैया, ये पालिटिक्स नहीं, तोप खेल है! तो किसी ने कहा नेता लोग कुर्सी बदलें, हम पार्टी बदलें फिफ्टी-फिफ्टी।
बीते 15 दिनों से इंटरनेट पर चुनावी माहौल अब सिर्फ गंभीर बहस का नहीं, बल्कि पालिटिकल कामेडी जोन बन चुका है। जहां पहले राजनीतिक विशेषज्ञ डिबेट करते थे, अब वहीं रील विशेषज्ञ माहौल गर्म कर रहे हैं।
सी-मजाक के बीच स्मार्ट वोटर बनने का संदेश भी शामिल
इंटरनेट मीडिया पर चुनावी रीलों का अंदाज भले ही मजाकिया हो, लेकिन कई क्रिएटर अब इसे जागरूकता के हथियार के रूप में भी इस्तेमाल कर रहे हैं। एक वीडियो में क्रिएटर पूछता है — जो नेता पांच साल बाद याद आए, उसे क्यों वोट दें? तो दूसरा कहता है पार्टी का रंग नहीं, काम का ढंग देखो।
कोई मजेदार तुलना करते हुए बोल रहा है जैसे मोबाइल खरीदने से पहले रिव्यू देखते हो, वैसे ही उम्मीदवार का वर्क रिव्यू भी देखो। ऐसे चुटीले अंदाज में दिया गया संदेश लोगों को बिना बोझ महसूस कराए समझा भी रहा है और जोड़ भी रहा है।
मनोरंजन के साथ जिम्मेदारी भी जरूरी
वास्तविकता यह है कि युवाओं के भीतर राजनीतिक चेतना बढ़ी है लेकिन अंदाज उनके बाबू साहेब वाले अंदाज से नहीं, ठेठ बिहारी स्टाइल में है। वे सवाल भी करते हैं, मजाक भी उड़ाते हैं, और तालियां भी बजाते हैं सब मोबाइल कैमरे के सामने। शहर के वीडियो क्रिएटर राज बबलू कहते हैं हम लोग सिर्फ हंसी-मजाक के लिए वीडियो नहीं बनाते, बल्कि कोशिश रहती है कि देखने वाले को कुछ सोचने पर भी मजबूर करें।
चुनाव हो या कोई सामाजिक मुद्दा, कंटेंट में मजा भी रहे और मतलब भी।वहीं खगड़िया के ब्लागर आरके का कहना है आज का दर्शक सिर्फ मनोरंजन नहीं चाहता, उसे सच्चाई भी चाहिए। इसलिए हम लोग रील के जरिए यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि नेता चुनना उतना ही जरूरी फैसला है, जितना किसी बच्चे के स्कूल या किसी मरीज के डाक्टर का चुनाव करना।
मजाक अपने जगह, पर समझदारी भी जरूरी है। अब हम कह सकते हैं कि इस बार का चुनाव मैदान सिर्फ सड़कों और रैलियों में नहीं, बल्कि मोबाइल स्क्रीन पर भी सजा हुआ है। अब देखना यह होगा कि असर किसका ज्यादा होगा जुबानी जंग का… या मीम वाली संग्राम का! |