एल्युमीनियम का उपयोग कई तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में होता है।
नई दिल्ली। हफ्तेभर में सोना 4,000 डॉलर प्रति औंस के पार पहुंचा और चांदी भी रिकॉर्ड ऊंचाई के करीब पहुंच गया। जबकि प्लैटिनम इस साल अब तक लगभग 80% ऊपर है। कीमती धातुओं के अलावा, पिछले कुछ सालों में तांबे जैसी औद्योगिक धातुओं का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है। अपने कई खास उपयोगी गुणों के बावजूद, एल्युमीनियम (aluminum investment) को काफी हद तक नजरअंदाज किया जाता है। लेकिन अब वह दिन दूर नहीं जब एल्यूमिनियम अगला कॉपर बन कर दिखाएगा! जल्द ही स्थिति बदलने वाली है। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं और एल्यूमिनियम में कैसे निवेश कर सकते हैं इसके बारे में आज विस्तार से बताएंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
एल्युमीनियम का उपयोग कई तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में होता है। ब्लूमबर्गएनईएफ के अनुसार, तांबे, लिथियम और स्टील के साथ, यह उन चार प्रमुख धातुओं में से एक है जिनकी नए ऊर्जा स्रोतों में बदलाव के लिए आवश्यकता है। लेकिन एल्युमीनियम उत्पादन में बिजली भी एक महत्वपूर्ण घटक है और बिजली की कमी होती जा रही है।
पिछले दो दशकों में एल्युमीनियम का उत्पादन ज्यादातर समय अधिशेष में रहा है। क्योंकि दुनिया में एल्युमीनियम का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता और उपभोक्ता चीन ने सस्ती कोयला आधारित बिजली का इस्तेमाल करके अपनी उत्पादन क्षमता में तेजी से बढ़ोतरी की है। इससे मांग बढ़ने के बावजूद कीमतों को कम रखने में मदद मिली है। इस अवधि में एल्युमीनियम की कीमतें लगभग 44% बढ़ी हैं, जबकि तांबे की कीमतें 160% से ज्यादा बढ़ी हैं।
शायद यही कारण है कि एल्युमीनियम से जुड़े निवेशों में रुचि कम है। सोना, चांदी और प्लेटिनम जैसे कीमती धातुओं के दाम इस साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुके हैं। लेकिन अब इंडस्ट्रियल मेटल्स में भी बड़ा खेल शुरू हो गया है और एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगला बड़ा सितारा \“\“एल्यूमिनियम\“\“ हो सकता है।
क्यों बढ़ रही है एल्यूमिनियम की डिमांड?
दुनिया भर में इलेक्ट्रिफिकेशन और ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन (जैसे EVs, सोलर, और पावर इंफ्रास्ट्रक्चर) तेजी से बढ़ रहे हैं। इन सब सेक्टर्स में एल्यूमिनियम की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है।
इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) में एल्यूमिनियम का इस्तेमाल बढ़ रहा है क्योंकि यह हल्का है और कार की रेंज बढ़ाने में मदद करता है। एक EV में पेट्रोल कार के मुकाबले करीब 150 पाउंड ज्यादा एल्यूमिनियम लगता है।
सोलर एनर्जी में भी स्टील के बाद एल्यूमिनियम दूसरा सबसे बड़ा मेटल है। डेटा सेंटर्स और पावर लाइन्स में भी एल्यूमिनियम तेजी से कॉपर की जगह ले रहा है क्योंकि यह सस्ता, हल्का और पर्याप्त कंडक्टिविटी रखता है।
सप्लाई क्यों है टाइट?
एल्यूमिनियम बनाना बहुत एनर्जी-इंटेंसिव प्रोसेस है। एक नया एल्यूमिनियम स्मेल्टर (जहां मेटल तैयार होता है) एक बड़े शहर जितनी बिजली खा जाता है। चीन, जो दुनिया का सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है अब अपनी 45 मिलियन टन सालाना कैपेसिटी लिमिट के करीब पहुंच चुका है। यानी आने वाले सालों में एल्यूमिनियम की सप्लाई सीमित रहेगी।
अमेरिका और यूरोप में भी एनर्जी कॉस्ट ज्यादा होने से नई स्मेल्टिंग यूनिट्स लगाना मुश्किल हो गया है। यानी, डिमांड बढ़ेगी लेकिन सप्लाई नहीं।
कब दिखेगा असर?
सिटी बैंक के मुताबिक, 2027 से एल्यूमिनियम की वैश्विक कमी (डिफिसिट) शुरू हो सकती है। यह करीब 1.4 मिलियन टन, यानी कुल खपत का लगभग 2% होगा। वुड मैकेनजी का अनुमान है कि 2028 से शुरू होकर कम से कम 5 साल तक एल्यूमिनियम डिफिसिट होगा।
निवेश के मौके कहां हैं?
अभी एल्यूमिनियम से जुड़ी कंपनियाँ और ETF काफी सस्ते वैल्यूएशन पर ट्रेड कर रही हैं। विदेश एल्यूमिनियम फंड एलको (Alcoa) और नोर्स्क हाइड्रो (Norsk Hydro) जैसी कंपनियां अगले 12 महीनों की अर्निंग्स के मुकाबले 13 गुना के P/E पर हैं, जबकि कॉपर कंपनियां जैसे ग्लेनकोर (Glencore) या साउथ कॉपर (Southern Copper) करीब 30 गुना पर है।
विस्डम ट्री एल्यूमिनियम (WisdomTree Aluminum) ETF में सिर्फ $40 मिलियन का निवेश है, जबकि कॉपर फंड में $1 बिलियन से ज्यादा का निवश है। यानी अभी यह सेक्टर अंडररेटेड है।
एल्कोआ एए जैसे एल्यूमीनियम उत्पादकों के शेयर और नॉर्स्क हाइड्रो का कारोबार आगामी 12 महीने की आय के 13 गुना से भी कम पर हो रहा है, जो कि ग्लेनकोर और सदर्न कॉपर जैसे तांबा फेमस नामों से सस्ता है। ये करीब 30 गुना पर कारोबार कर रहे हैं।
एल्यूमिनियम से जुड़ी भारतीय कंपनियों के स्टॉक्स में कैसे करें निवेश
हिंडाल्को इंडस्ट्रीज (Hindalco Industries) आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी और एशिया की सबसे बड़ी एल्यूमिनियम निर्माता है। इसके अलावा NALCO सरकारी कंपनी, बॉकसाइट माइनिंग से लेकर एल्यूमिनियम फिनिशिंग तक पूरी वैल्यू चेन कवर करती है। अगर आप थोड़ा एडवांस्ड इन्वेस्टर हैं, तो आप MCX पर फ्यूचर में ट्रेड कर सकते हैं।
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डिस्केलमर: एल्यूमिनियम की कीमतें ऊर्जा लागत और चीन की नीतियों से बहुत प्रभावित होती हैं। लॉन्ग टर्म व्यू (3–5 साल) के साथ निवेश करना बेहतर होगा। यहां दी गई जानकारी निवेश की राय नहीं है। चूंकि, स्टॉक मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है इसलिए निवेश करने से पहले किसी सर्टिफाइड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर से परामर्श जरूर करें।) |
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