World Migratory Bird Day 2025: दुनिया भर में शनिवार, 11 अक्टूबर को विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाया जा रहा है।
ललन तिवारी, भागलपुर। World Migratory Bird Day 2025 भागलपुर के गंगा तट की शांत वादियों में प्रकृति एक बार फिर जीवन से भर उठी है। गंगा के इस पार और उस पार फैले दियारा क्षेत्र में अब ऐसे दुर्लभ पक्षियों का बसेरा दिखाई दे रहा है, जिन्हें कभी विलुप्ति के कगार पर माना गया था। इस क्षेत्र की नीरवता, स्वच्छ गंगा का बहाव और मानवीय हस्तक्षेप से दूर प्राकृतिक परिवेश इन पक्षियों के लिए अब एक सुरक्षित शरणस्थली बन गया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की विशिष्ट खोज
भागलपुर मुख्यालय से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के अनुसंधान निदेशक डा. अनिल कुमार सिंह के नेतृत्व में कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डा. तारकनाथ गोस्वामी की टीम ने इस क्षेत्र में पक्षियों पर गहन अध्ययन किया। यह अध्ययन विश्वविद्यालय परिसर से ढाई किलोमीटर के दायरे में किया गया, जिसमें पक्षियों की विविधता, प्रजनन प्रवृत्ति और उनकी मौसमी उपस्थिति को दर्ज किया गया।
75 प्रजातियां दर्ज, कई प्रजाति विलुप्ति की कगार पर
अनुसंधान में यह पाया गया कि इस क्षेत्र में लगभग 75 प्रकार के पक्षी नियमित रूप से देखे जाते हैं। इनमें कई ऐसी प्रजातियां शामिल हैं, जो अपने अनुकूल परिवेश मिलने के कारण यहां बड़ी संख्या में प्रजनन कर रही हैं। गंगा के रेतीले टापू और दियारा इलाकों में विशेष रूप से छोटा गरुड़, काले सिर वाला बगुला और तितरी की प्रजातियां बहुतायत में पाई जा रही हैं। ये तीनों मांसाहारी पक्षी इस क्षेत्र में स्थायी रूप से निवास कर रहे हैं।
यूआइसीएन ने माना संकटग्रस्त प्रजातियां
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इन पक्षियों को विलुप्ति के खतरे वाली प्रजातियों की श्रेणी में रखा है। बावजूद इसके, भागलपुर के दियारा क्षेत्र में इनका स्थायित्व इस बात का प्रमाण है कि यहां का पर्यावरणीय संतुलन अब भी सुरक्षित है।
मानव से दूरी बनी सुरक्षा की ढाल
विज्ञानियों का मानना है कि गंगा किनारे का यह इलाका अत्यंत शांत और मानवीय गतिविधियों से लगभग मुक्त है। यहां न तो बड़ी आबादी है और न ही औद्योगिक हलचल। केवल नाव से आने-जाने वाले किसान, पशुपालक या मजदूर ही कभी-कभार नजर आते हैं, जो न तो पक्षियों का शिकार करते हैं और न उन्हें परेशान करते हैं। स्थानीय लोगों की प्राकृतिक सह-अस्तित्व की प्रवृत्ति और क्षेत्र की शांति ही इन पक्षियों के अस्तित्व को संजीवनी दे रही है।
प्रकृति की यह अनमोल धरोहर हमें बताती है कि हमारी धरती अभी भी जीवन के लिए अनुकूल है। भागलपुर के गंगा किनारे विलुप्त होती प्रजातियों का लौट आना सुखद एहसास है। जरूरत है कि हम सभी इनके संरक्षण के प्रति जागरूक रहें।– डा. डीआर. सिंह, कुलपति, बीएयू सबौर
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