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काशी का कायाकल्प: जब आस्था बनी अर्थनीति और लोकल हुआ ग्लोबल

Chikheang 2025-10-11 06:07:25 views 452

  

काशी जहां समय साधना में विलीन होता है



प्रणय विक्रम सिंह। काशी जहां समय साधना में विलीन होता है, जहां मृत्यु भी मोक्ष का मार्ग बन जाती है, और जहां हर सांस ‘हर हर महादेव’ की अनुगूंज में जीवंत है। वही काशी आज पुनः नवयुग की नाभि बन उठी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि-दीप्ति और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की संकल्प-शक्ति ने इस अनादि नगर को केवल पुनर्जीवित नहीं किया, बल्कि उसे विकास, धर्म और अर्थ तीनों की त्रिवेणी बना दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

13 दिसंबर 2021 को जब प्रधानमंत्री मोदी ने श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन किया, तब गंगा के तट पर केवल पत्थरों की परिक्रमा नहीं हुई, एक सांस्कृतिक पुनर्जन्म हुआ। तब से 30 सितंबर 2025 तक 25 करोड़ 28 लाख श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ के दर्शन को पहुंचे। यह आंकड़ा केवल संख्या नहीं, श्रद्धा का समुद्र है। तीन वर्ष नौ महीनों में इस भक्ति-धारा ने उत्तर प्रदेश की अर्थनीति में लगभग ₹1.25 लाख करोड़ का नवनीत घोला है।

काशी के घाटों पर उतरी इस आर्थिक आरती में हर दीप एक जीविका है, हर लहर एक संभावना। मुख्य कार्यकारी अधिकारी विश्व भूषण मिश्रा कहते हैं कि “यह कॉरिडोर गलियारा नहीं, गौरव का गर्भगृह है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी दृष्टि और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संकल्पमय मिशन ने न केवल लाखों लोगों के लिए रोजगार के नए द्वार खोले हैं, बल्कि जीवन के नए द्वार भी आलोकित किए हैं।

काशी ने आज यह सिद्ध कर दिया है कि जब आध्यात्मिकता विकास से जुड़ती है, जब आस्था नीति से संगठित होती है, तो तीर्थ केवल मोक्ष का नहीं, मॉडल ऑफ डेवलपमेंट का भी केंद्र बन जाता है। धर्म और विकास के इस संतुलन का जो अद्भुत उदाहरण काशी ने प्रस्तुत किया है, वह आज समूचे भारत के लिए प्रेरणा और विश्व के लिए प्रतीक बन चुका है।“

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में इस नगरी ने सुशासन को सुगंध की तरह जिया है। घाटों का सौंदर्य अब साधना-सरीखा है, सड़कें अब संस्कृति के सोपान हैं, और एयरपोर्ट से गंगा-घाट तक फैली रोशनी यह बताती है कि जब व्यवस्था विवेक से जुड़ती है, तो विकास स्वयं दीपावली बन जाता है। काशी में अब केवल आरती की लौ नहीं जलती, यहां अर्थव्यवस्था के दीपक भी टिमटिमाते हैं और शासन की ज्योति में अध्यात्म की आभा घुली है।

प्रत्येक यात्री, जो काशी आता है, औसतन ₹4,000 से ₹5,000 व्यय करता है। यह व्यय नहीं, आस्था का अर्पण है। इन तीन वर्षों में यही अर्पण ₹1.25 लाख करोड़ का आशीर्वाद बनकर उत्तर प्रदेश की धमनियों में प्रवाहित हुआ है। काशी की यह आर्थिक गंगा अब पूरे पूर्वांचल की प्यास बुझा रही है। हर यात्री, हर यजमान अब नवभारत का नया अर्थशिल्पी बन गया है।

यह केवल तीर्थ-यात्रा नहीं, अर्थ-यात्रा है। लगभग 70 प्रतिशत श्रद्धालु दक्षिण भारत से आते हैं, 15 प्रतिशत अन्य प्रांतों से, और अब विदेशी पर्यटक भी काशी को भारत की ‘स्पिरिचुअल कैपिटल’ के रूप में देख रहे हैं।

काशी-दर्शन के बाद वे विंध्याचल, प्रयागराज, अयोध्या, मथुरा, चित्रकूट और नैमिषारण्य जैसे तीर्थों की यात्रा करते हैं। यह तीर्थ-शृंखला एक आर्थिक परिक्रमा बनाती है, जहां गंगा की हर लहर जीडीपी में स्पंदन जगाती है।

प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता और मुख्यमंत्री योगी के परिश्रम ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब धर्म नीति से और भक्ति प्रबंधन से जुड़ती है, तो तीर्थ विकास का तीर्थराज बन जाता है। काशी अब केवल मोक्ष का नगर नहीं, बल्कि \“मॉडल ऑफ डेवलपमेंट\“ है। एक ऐसा मॉडल जो संस्कृति को संरचना में, आस्था को आत्मनिर्भरता में और परंपरा को प्रगति में रूपांतरित कर देता है।

और यही वह स्थान है, जहां प्रधानमंत्री मोदी का ‘लोकल से ग्लोबल’ का मंत्र जीवंत होता है। काशी के घाटों पर जो दीप जला है, उसकी लौ अब विश्व के कोनों तक पहुंच रही है। यहां के बुनकरों की बुनावट से लेकर घाटों की गूंज तक, हर सृजन अब वैश्विक पहचान बन रहा है। काशी ने दिखाया है कि स्थानीय संस्कृति ही वैश्विक संवाद का सबसे प्रखर स्वर बन सकती है।

अब काशी के पदचिह्नों पर अयोध्या, मथुरा, चित्रकूट, नैमिषारण्य और विंध्याचल भी आगे बढ़ रहे हैं। योगी सरकार ने धार्मिक नगरीय विकास को राज्य-निर्माण का सेतु बना दिया है। यह केवल पर्यटन नहीं, बल्कि संस्कृति का पुनर्सृजन है, जिसमें हर ईंट में आस्था है, हर दीवार में दर्शन है, और हर दीप में दिशा है।

काशी में घाटों की स्वच्छता, सड़कों की सुगमता और शासन की शुचिता मिलकर यह बताती है कि \“नया भारत\“ कैसा दिखता है।

आज काशी केवल एक नगर नहीं, एक नाद है जो कह रहा है कि जब शासन सेवा बन जाए और श्रद्धा साधना, तब भक्ति स्वयं विकास का व्रत बन जाती है। यह वही काशी है जहां हर कण में कर्म है, हर श्वास में शिव है, हर घाट में गाथा है, और हर पत्थर में परमात्मा।

अविनाशी काशी बोलती है कि यह केवल मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं, यह भारत की आत्मा का पुनर्जागरण है। यह लोकल से ग्लोबल तक फैली हमारी सनातन संस्कृति की अमर गूंज है। यह वही क्षण है, जब धर्म और विकास, श्रद्धा और सेवा, आस्था और आत्मनिर्भरता सब एक सूत्र में बंध गए हैं। काशी ने दिखाया है कि जब संकल्प संस्कृति से जुड़ता है, तो साधना ही समृद्धि बन जाती है।
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