‘प्रयागे मुंडं, काशी दंडं, गया पिंडं...’ की मान्यतावश आदिकाल से काशी से जुड़ा है तमिलनाडु

LHC0088 2025-12-10 14:07:12 views 416
  

काशी मेें तमिल समुदाय द्वारा स्थापित काची कामकोटिश्वर मंदिर। जागरण  



शैलेश अस्थाना, वाराणसी। भाषा, बाहरी और उत्तर-दक्षिण के मुद्दे को लेकर जब कुछ राजनीतिक दल अपनी क्षुद्र राजनीति के चलते आए दिन अनावश्यक विवाद खड़ा करते दिख रहे हैं तो वहीं सांस्कृतिक और धार्मिक रीति-रिवाज, संस्कृतियां व संस्कार उत्तर-दक्षिण को एक सूत्र में गूंथ रहे हैं। काशी, प्रयाग हों या कि गया, आदिकाल से तमिलनाडु के लोग यहां धार्मिक, आध्यात्मिक और रस्मों-रीतियों से बंधे हुए हैं। काशी तमिल शैवों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

प्रयागे मुंडं काशी दंडं गया पिंडं... की मान्यता के अनुसार शिव के सुख साधन रहित आनंद की तलाश में सदियों से तमिल शैव काशी आते रहे हैं। महीनों-वर्षों पैदल चलकर भगवान शिव की नगरी में देव ऋण से उत्तीर्ण होने की कामना से यहां पहुंचे तमिल समुदाय ने हनुमानघाट, केदारघाट और हरिश्चंद्र घाट के क्षेत्रों के मध्य काशी के बीचो-बीच एक लघु तमिलनाडु ही बसा दिया है।

‘विशाल गंगा के रेत के कणों को गिनें, इतने सारे इंद्र, केवल एक ही अंतहीन ईश्वर है!…,’ सातवीं-आठवीं शताब्दी के तीन महान शैव तमिल कवियों में से एक अप्पार की इस रचना में काशी में प्रवाहित गंगा के रेतकणों में प्रवाहित होती उनकी आस्था का प्रवाह दिखता है। प्राचीन तमिल ग्रंथों में उत्तर भारत के तीन तीर्थ नगरों प्रयागराज, काशी व गया की महत्ता बताते हुए कहा गया है कि प्रयागराज में आत्मऋणण, काशी में देवऋण व गया में पितृऋण से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के पश्चात आत्मा को बैकुंठ लोक में वास या मोक्ष की प्राप्ति होती है।

प्रयागराज में मुंडन व वेणीदान, काशी में पिंडदान का है महत्व
हनुमानघाट निवासी तमिल वैदिक विद्वान पं. वेंकट रमन घनपाठी बताते हैं कि तमिल धर्मग्रंथों के अनुसार प्रयागराज में आत्मऋण से उऋण होने के लिए तमिल व अन्य दक्षिण भारतीय समुदाय के पुरुष लोग वहां पहुंचकर संगम तट पर अपना मुंडन कराते हैं। तत्पश्चात अपनी पत्नी की चाेटी अपने हाथों से गूंथते हैं, इसके बाद चोटी का अंतिम सिरा काटकर उसके साथ सिंदूर, रोली, कुमकुम आदि मिलाकर बालों के इन गुच्छों को गंगा में प्रवाहित करते हैं।

इस धार्मिक प्रक्रिया को मुंडन व वेणीदान कहा जाता है। इसके पश्चात काशी पहुंचकर सभी यहां काशीवास करते हैं- काशी में यह धार्मिक यात्रा कम से कम पांच दिनों की होती है। इस दौरान लोग बाबा विश्वनाथ व माता विशालाक्षी का दर्शन-पूजन करते हैं।

यह भी पढ़ें- वाराणसी में पहचान सत्यापन के बाद फेरीवालों को हाजिरी के निर्देश, रखी जा रही न‍िगरानी

इसके पश्चात दो दिना नौका में सवार होकर गंगा पूजन कर, गंगा के पांच घाटों पर असि, दशाश्वमेध, पंचगंगा, मणिकर्णिका व वरुणा पर स्नान कर अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष के लिए तर्पण-अर्पण करते हैं। इसके पश्चात माता अन्नपूर्णा का दर्शन कर अन्न-धन आदि का दान-पुण्य करते हैँ। गया पहुंचकर भी पिंडदान कर पूर्वजों की आत्मा के मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। इन सब में काशी की यात्रा देव ऋण से उऋण होने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

काशी की आर्थिकी मेें बड़ा योगदान है तमिल धार्मिक यात्रा का
पं. घनपाठी बताते हैं कि तमिलनाडु, आंघ्र प्रदेश, तेलंगाना से प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग काशी दर्शन व देवयात्रा करने पहुंचते हैं। यहां नौकायन के साथ ही पूजा-पाठ की सामग्री, होटल, खान-पान की दुकानें, रिक्शा व टेंपाे चालक उनके आगमन से लाभान्वित होते हैं। बहत से लोग काशी की गलियों में नंगे पांव घूम-घूमकर लोग इस देवयात्रा को पूर्ण करते हैं।
like (0)
LHC0088Forum Veteran

Post a reply

loginto write comments
LHC0088

He hasn't introduced himself yet.

410K

Threads

0

Posts

1310K

Credits

Forum Veteran

Credits
133040

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com, Of particular note is that we've prepared 100 free Lucky Slots games for new users, giving you the opportunity to experience the thrill of the slot machine world and feel a certain level of risk. Click on the content at the top of the forum to play these free slot games; they're simple and easy to learn, ensuring you can quickly get started and fully enjoy the fun. We also have a free roulette wheel with a value of 200 for inviting friends.