वैश्विक स्तर पर सौर तूफान अध्ययन में भारत के आदित्य-एल1 ने की मदद, इसरो ने कही ये बात

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भारत के आदित्य-एल1 ने वैश्विक स्तर पर हो रहे सौर तूफान अध्ययन में मदद की: इसरो (फोटो- जागरण)



पीटीआई, बेंगलुरु। भारत की पहली सौर वेधशाला आदित्य-एल1 ने सौर तूफान को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे विज्ञानियों को यह समझने में मदद मिली कि मई 2024 में आए सौर तूफान से पृथ्वी पर इतनी असामान्य घटनाएं क्यों हुई थीं? विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

यह पिछले दो दशक का सबसे शक्तिशाली सौर तूफान है। यह भारत की वैश्विक अंतरिक्ष विज्ञान में बढ़ती नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है। आदित्य एल1 को सितंबर 2023 में लांच किया गया था। आदित्य-एल1 की मदद से भारत अब शक्तिशाली सौर तूफानों को समझने और उनकी भविष्यवाणी करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) नेमंगलवार को कहा कि आदित्य-एल1 ने नासा के विंड सहित छह अमेरिकी उपग्रहों के साथ मिलकर काम किया और चुंबकीय क्षेत्र को सटीकता से मापा।

इससे शोधकर्ताओं को अंतरिक्ष में कई सुविधाजनक प्वाइंट या जगहों से एक साथ इस दुर्लभ घटना का अध्ययन करने में मदद की। इसरो के मुताबिक 2024 में आए सौर तूफान को \“गैनन तूफान\“ के नाम से जाना जाता है। उसने पृथ्वी के पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित किया।

सूर्य पर विशाल विस्फोटों की श्रृंखला जिन्हें \“कोरोनल मास इजेक्शन\“ (सीएमई) कहा जाता है के कारण यह तूफान आया था। सीएमई सूर्य से अंतरिक्ष की ओर उठने वाले गर्म गैस और चुंबकीय ऊर्जा के विशाल बुलबुले होते हैं। जब ये पृथ्वी से टकराते हैं तो हमारे उपग्रहों, संचार प्रणालियों, जीपीएस और यहां तक कि बिजली ग्रिड के लिए गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं।

भारतीय विज्ञानियों की टीम ने इस संबंध में \“एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स\“ नामक पत्रिका में अहम शोध पत्र प्रकाशित किया है।मई 2024 के सौर तूफान के दौरान, विज्ञानियों ने पाया कि सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, जो सौर तूफान के अंदर मुड़ी हुई रस्सियों की तरह होते हैं, तूफान के भीतर टूट रहे थे और फिर से जुड़ रहे थे।
इसलिए अलग तरह का था मई 2024 में आया सौर तूफान

आमतौर पर सीएमई मुड़ी हुई \“चुंबकीय रस्सी\“ की तरह होते है जो पृथ्वी के निकट आते ही धरती के चुंबकीय ढाल के साथ संपर्क बनाती है। लेकिन इस बार, दो सीएमई अंतरिक्ष में टकराई और एक दूसरे को इतनी मजबूती से दबाया कि उनमें से एक के अंदर की चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं टूट गईं और नए तरीके से फिर से जुड़ गईं।

इस प्रक्रिया को \“चुंबकीय पुनर्संयोजन\“ कहा जाता है। चुंबकीय क्षेत्र के इस अचानक बदलाव ने तूफान के प्रभाव को अपेक्षा से कहीं अधिक शक्तिशाली बना दिया।

इसरो ने कहा, पहली बार, शोधकर्ता अंतरिक्ष में कई सुविधाजनक बिंदुओं से एक ही चरम सौर तूफान का अध्ययन कर पाए। भारत के आदित्य-एल1 मिशन से प्राप्त सटीक चुंबकीय क्षेत्र मापों की बदौलत, वैज्ञानिक इस क्षेत्र का मानचित्रण करने में सक्षम हुए।

इसरो के मुताबिक अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि वह क्षेत्र जहां सीएमई का चुंबकीय क्षेत्र टूट रहा था और फिर से जुड़ रहा था, वह विशाल था। यह खगोलीय घटना लगभग 13 लाख किमी क्षेत्र में यानी पृथ्वी के आकार के लगभग 100 गुना क्षेत्र में हो रही थी।
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