सरकार सब्सिडी के माध्यम से किसानों को खाद उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संतुलित मानसून ने खेती-किसानी को इस बार नई गति दी है, लेकिन इसकी सीधी चुनौती उर्वरक क्षेत्र के सामने खड़ी हो गई है। मांग में अप्रत्याशित वृद्धि ने आयात और घरेलू आपूर्ति दोनों पर भारी दबाव बना दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
फर्टिलाइजर एसोसिएशन आफ इंडिया (एफएआई) का मानना है कि 2025-26 में देश का उर्वरक आयात 2.23 करोड़ टन तक पहुंच सकता है, जो पिछले साल से लगभग 41 प्रतिशत अधिक होगा। यह उछाल संकेत देता है कि देश में खाद की उपलब्धता को लेकर एक नया दबाव चक्र शुरू हो चुका है।एफएआई ने वार्षिक सेमिनार से पहले मंगलवार को प्रेस कान्फ्रेंस में बताया कि अप्रैल-अक्टूबर के दौरान भारत 1.445 करोड़ टन उर्वरक आयात कर चुका है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 69 प्रतिशत की भारी वृद्धि है।
बुधवार से शुरू होने वाले दो दिवसीय सेमिनार में उर्वरक सुरक्षा, मूल्य स्थिरता, आयात निर्भरता और ग्रीन अमोनिया जैसी उभरती तकनीकों पर चर्चा होगी। विशेषज्ञों के अनुसार बेहतर बारिश के कारण बुआई का रकबा बढ़ा है। इससे खपत भी बढ़ी और साथ ही आयात बढ़ाने को भी मजबूर किया। एफएआई चेयरमैन एस. शंकर सुब्रमणियन का कहना है कि मांग ते.ाी से बढ़ने के चलते भारत को बड़े पैमाने पर वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं से अनुबंध करने पड़े हैं।
सप्लाई में तत्काल कोई बाधा नहीं है, लेकिन दबाव स्पष्ट रूप से बढ़ा है।देश में बफर स्टाक की स्थिति भी पिछले वर्षों से बेहतर दिख रही है। नवंबर के अंत तक कुल 1.02 करोड़ टन उर्वरक का भंडार उपलब्ध था, जिसमें 50 लाख टन यूरिया, 17 लाख टन डीएपी और 35 लाख टन एनपीके शामिल हैं। खरीफ के दौरान कई राज्यों में स्थानीय स्तर पर कमी जरूर देखी गई, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धता को सामान्य बताया गया है।
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि मांग इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो स्टॉक बनाए रखना भी कठिन हो जाएगा।घरेलू उत्पादन में भी थोड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अप्रैल-अक्टूबर के दौरान कुल उत्पादन 2.997 करोड़ टन रहा, जबकि पिछले वर्ष यह 2.975 करोड़ टन था।इसमें 1.713 करोड़ टन यूरिया, 23.2 लाख टन डीएपी और 70.4 लाख टन एनपीके शामिल हैं। इसके बावजूद देश की वार्षिक कुल खपत सात करोड़ टन के आसपास है, जिसके मुकाबले घरेलू उत्पादन अभी भी केवल तीन-चौथाई मांग पूरी कर पाता है। यही कारण है कि आयात पर निर्भरता बनी हुई है।
भारत ने पिछले दो महीनों में सऊदी अरब, जार्डन, मोरक्को, कतर और रूस जैसे उर्वरक-संपन्न देशों के साथ बड़े अनुबंध किए हैं, ताकि कच्चे माल और तैयार खाद की निरंतर आपूर्ति बनी रहे। अर्थशास्त्री चेतावनी देते हैं कि यदि आने वाले मौसमों में मांग इसी गति से बढ़ती रही, तो वैश्विक कीमतों और उतार-चढ़ाव का प्रभाव भारत पर और ज्यादा देखने को मिलेगा।
इस बीच सरकार सब्सिडी ढांचे को मजबूत बनाकर दबाव कम करने की कोशिश कर रही है। वर्ष 2024-25 में 1.9 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी दी गई, जिससे किसानों को समय पर खाद उपलब्ध कराने में सहायता मिली। देश के 14 करोड़ से अधिक कृषि परिवारों के लिए यह समर्थन उत्पादन चक्र को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। |