मद्रास हाई कोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार वजह है DMK द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश। मामला उस आदेश से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने एक दरगाह के पास स्थित थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर पारंपरिक कार्तिगई दीपम जलाने की अनुमति दी थी। उनके इस फैसले के बाद राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली।
तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के सांसद, जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ संसद के शीतकालीन सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं। DMK की तरफ से यह कदम जस्टिस स्वामीनाथन के उस आदेश के बाद उठाया जा रहा है, जिसमें पिछले दिनों उन्होंने निर्देश दिया था कि मदुरै की थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ियों की चोटी पर एक दरगाह के पास स्थित मंदिर के दीबाथुन पिलर के ऊपर पारंपरिक कार्तिगई दीपम जलाया जाए।
जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन कौन हैं?
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जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच में कार्यरत एक प्रतिष्ठित जज हैं। उनका मूल निवास तमिलनाडु के थिरुवरूर में है। उन्होंने अपनी लॉ की पढ़ाई सेलम के सेंट्रल लॉ कॉलेज और चेन्नई के अंबेडकर गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से पूरी की। वर्ष 1991 में उन्होंने वकील के रूप में एनरोलमेंट लिया और करीब दो दशक तक वकालत की। इसी दौरान 2014 में उन्हें मदुरै बेंच में असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल की जिम्मेदारी भी मिली।
जून 2017 में उन्हें मद्रास हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और अप्रैल 2019 में वे स्थायी जज बन गए। जस्टिस स्वामीनाथन अपने स्पष्ट और बेबाक निर्णयों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कई अहम मुद्दों—जैसे संवैधानिक अधिकार, नागरिक स्वतंत्रता, जेल सुधार, धार्मिक प्रथाएं, अल्पसंख्यक अधिकार और इंटरसेक्स व्यक्तियों के अधिकार—पर महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। साल 2024–25 में उन्होंने अपनी व्यक्तिगत कार्यप्रदर्शन रिपोर्ट जारी कर सुर्खियां बटोरीं। इस रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि पिछले सात वर्षों में उन्होंने 64,798 मामलों का निपटारा किया। उन्होंने इसे न्यायिक जवाबदेही (judicial accountability) की दिशा में एक पहल बताया।
क्या है विवाद
यह पूरा विवाद जस्टिस स्वामीनाथन के उस आदेश से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने कहा था कि कार्तिगई दीपम का दीया सिर्फ उची पिल्लैयार मंदिर के पास ही नहीं, बल्कि थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित दीपाथून नामक पत्थर के खंभे पर भी जलाया जाए। कोर्ट के अनुसार यह खंभा मंदिर की जमीन पर आता है और पास की दरगाह की सुरक्षित संपत्ति में शामिल नहीं है। जज ने इस रस्म को मंदिर का वैध अधिकार माना और इसे सुरक्षित माहौल में पूरा करवाने के लिए प्रशासन को सुरक्षा देने का निर्देश दिया। साथ ही, कानून-व्यवस्था की आशंका बताकर इसे रोकने वाले सरकारी आदेश को भी रद्द कर दिया।
राज्य सरकार ने इस आदेश को लागू करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद विरोध, तनाव और कई जगह टकराव देखने को मिले। इसी माहौल में 9 दिसंबर को DMK ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को 120 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ एक महाभियोग नोटिस भेजा। यह नोटिस संविधान के अनुच्छेद 217 और 124 के आधार पर दिया गया और इसमें जस्टिस स्वामीनाथन पर न्यायिक निष्पक्षता की कमी, पद का गलत उपयोग और विचारधारा से प्रभावित होकर फैसले देने जैसे आरोप लगाए गए। इस कदम के समर्थन में कनिमोझी, टी.आर. बालू, अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कई विपक्षी नेता आगे आए।
भाजपा ने की आलोचना
BJP नेता के. अन्नामलाई ने महाभियोग की इस कोशिश की आलोचना की और इसे न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश बताया। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर सुनवाई करने का फैसला कर लिया है, जिसमें हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है। इसके साथ ही यह मामला अब न्यायिक और राजनीतिक—दोनों स्तरों पर और जटिल होता जा रहा है। |