सकरीनदी में कांस की झाड़ी में घोड़परास एवं सूअर का बसेरा।
अशोक कुमार, वारिसलीगंज(नवादा)।सकरी नदी से सटे वारिसलीगंज प्रखंड के कई गांवों के किसान इन दिनों घोड़परास और जंगली सुअरों के बढ़ते आतंक से परेशान हैं। नदी किनारे बसे गांवों में रबी की फसलों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। दिन में सकरी नदी के कांस और घनी झाड़ीदार इलाके में बसेरा करने वाले ये जंगली पशु रात होते ही झुंड के रूप में खेतों में धावा बोल देते हैं और किसानों की महीनों की मेहनत को पलभर में बर्बाद कर देते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
स्थानीय किसानों का कहना है कि घोड़परास और जंगली सुअर जिस भी खेत में प्रवेश करते हैं, उसकी फसल को तहस-नहस कर डालते हैं। विशेष रूप से सौर, वरनावां, पैंगरी, मंजौर, मकनपुर और कोचगांव पंचायतों में इनका आतंक अधिक देखने को मिलता है।
इन पंचायतों के किसान बताते हैं कि सकरी नदी के किनारे स्थित खेतों में आलू, मटर, मक्का समेत कई सब्जियों की खेती करना अब जोखिम भरा हो गया है, क्योंकि जंगली सुअरों के झुंड मिनटों में खेत उजाड़ देते हैं।
कई किसानों ने बताया कि वन्यजीव संरक्षण कानून के कारण घोड़परास को मारने की हिम्मत कोई नहीं करता। वहीं, वन विभाग को बार-बार सूचना देने के बावजूद प्रभावी कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे जंगली जानवरों का मनोबल और बढ़ता जा रहा है।
किसानों का कहना है कि वे खून-पसीना बहाकर अपनी जमीन पर हरियाली लाते हैं, लेकिन जंगली सूअर और घोड़परास रातों-रात सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं।
मकनपुर के किसान राजू कुमार, मिश्री मोची, अभिमन्यु सिंह, रिझो राम और बिजेंद्र रविदास, वहीं पैंगरी के सुरेंद्र प्रसाद और नरेश पासवान बताते हैं कि हर साल रबी सीजन में भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
कई परिवारों की खेती-बारी इस वजह से संकट में पड़ गई है, लेकिन सरकार या वन विभाग की ओर से कोई ठोस पहल नहीं हो रही।
कृषि विभाग क्या कहता है
प्रखंड कृषि पदाधिकारी कपिल प्रसाद ने बताया कि इस समस्या से निपटने के लिए किसान अपने पंचायत के मुखिया को आवेदन दें। आवेदन के जिला कार्यालय से अनुमोदित होने के बाद जंगली पशुओं को नियंत्रित करने या जरूरत पड़ने पर शूट करने की व्यवस्था की जाती है। उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि आवेदन देने पर निश्चित रूप से राहत दिलाई जाएगी।
किसानों की बढ़ती समस्याओं को देखते हुए ग्रामीण लगातार मांग कर रहे हैं कि सरकार और वन विभाग तुरंत प्रभावी कदम उठाए, ताकि रबी सीजन की बची फसलें सुरक्षित रह सकें। |