टाटा जू में बाघों की मौत, तेंदुए की डूबने की घटना और अब जीवाणु संक्रमण का प्रकोप, जानिए चिड़ियाघर का दर्दनाक इतिहास...

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फाइल फोटो।


जासं, जमशेदपुर। टाटा स्टील जूलोजिकल पार्क (टाटा जू) में हाल ही में पाश्चुरेला बैक्टीरिया के संक्रमण से 10 ब्लैकबक की मौत ने वन्यजीव संरक्षण तंत्र पर फिर से गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना महज एक हादसा नहीं, बल्कि उन त्रासदियों की एक और कड़ी है जिन्होंने कई बार इस चिड़ियाघर को गहरे सदमे में डुबोया है।    वर्षों से टाटा जू प्राकृतिक आपदाओं, संक्रमण, सुरक्षा चूक और बाहरी हमलों का सामना करता रहा है। टाटा जू में संक्रमण का यह पहला मामला नहीं है।    वर्ष 2018 में दो बंगाल टाइगर्स की संदिग्ध मौत ने पूरे राज्य के वन्यजीव विभाग को हिला दिया था। जांच में पाया गया कि दोनों टाइगर बेबियोसिस नामक बीमारी से पीड़ित थे।    यह घटना चिड़ियाघर की चिकित्सा व्यवस्था, टिक नियंत्रण और बाड़ों की स्वच्छता पर गंभीर सवाल खड़ी कर दी थी। अब 2025 के अंत में ब्लैकबक पर हुए पाश्चुरेला संक्रमण ने एक बार फिर यह साबित किया है कि सूक्ष्म जीवाणु यहां के वन्यजीवों के लिए शिकारियों से भी अधिक घातक हैं।

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वर्ष 2022 में बाड़े में घुुस गया था बारिश का पानी  

स्वर्णरेखा नदी के निकट स्थित होने के कारण यह चिड़ियाघर हमेशा से बाढ़ के खतरे में रहा है। अगस्त 2022 में भारी बारिश के बाद चिड़ियाघर के निचले हिस्सों में पानी घुस आया था।

इस दौरान 17 वर्षीय तेंदुआ मिथुन तेज बहाव में फंस गया और सभी प्रयासों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका। उसकी मौत ने जू के फ्लड मैनेजमेंट प्लान की कमियों को उजागर कर दिया था। 2008 में भी बाढ़ के कारण जू पर असर

आवारा कुत्तों के हमलों से कई हिरणों की मौत


संक्रमण और बाढ़ के अलावा, टाटा जू के लिए सबसे बड़ी चुनौती बाहरी घुसपैठ रही है। विशेष रूप से आवारा कुत्तों के हमले कई बार जानवरों की जान ले चुके हैं।  वर्ष 2006 से 2010 के बीच कई बार कुत्तों के झुंड दीवार फांदकर बाड़ों में घुसे थे। इन हमलों में कई हॉग डियर और चीतल की मौत हो गई थी। इन घटनाओं ने जू की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगा दिए थे।

पुरानी समस्याओं से उभरता नया संकट


अब जब 2025 में ब्लैकबक की मौतों ने एक बार फिर चिड़ियाघर को दहला दिया है, वन्यजीव प्रेमियों के सामने वही पुराना सवाल खड़ा है।
क्या इन दुर्लभ वन्यजीवों की सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त है?

संक्रमण हो या बाढ़, या फिर आवारा कुत्तों के हमले, हर बार चिड़ियाघर की कमजोरियां उजागर होती रही हैं। ताजा घटना ने यह साफ कर दिया कि वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए समन्वित प्रयास, नियमित मॉनिटरिंग और बाड़ों की कड़ी सुरक्षा अनिवार्य है।

टाटा जू का यह इतिहास बताता है कि यहां वन्यजीवों को बचाने की लड़ाई लगातार और चुनौतीपूर्ण रही है। आने वाले समय में इसे और मजबूत बनाने की जरूरत है।
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