कहानी गहनों की: महाराष्ट्र की ‘ब्राह्मणी’ से लेकर उत्तराखंड की ‘नथुली’ तक, हर क्षेत्र की है अपनी अनोखी नथ

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भारत के अलग-अलग हिस्सों में पहनी जाती हैं अलग-अलग डिजाइन की नथ  



लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति की बात करें, तो गहनों के बिना यह अधूरी है। सदियों से गहनें भारतीय परंपरा और संस्कृति का अटूट हिस्सा रहे हैं। शादी-ब्याह से लेकर रोजमर्रा के जीवन में गहनों की बेहद खास भूमिका है, जो आज तक चली आ रही है।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

गहनों की बात करें, तो इसके कई प्रकार हैं, जो भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी हैं। ऐसे ही नथ यानी नाक में पहनी जाने वाली जूलरी भी अलग-अलग तरह की होती हैं और अलग-अलग क्षेत्रों में इनका अपना महत्व है। कहानी गहनों की सीरिज में आज हम इसी बारे में जानेंगे कि नथ का इतिहास क्या है और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में किस तरह की नथ पहनी जाती है।  

  

(Picture Courtesy: Pinterest)
नथ का इतिहास

नथ भारतीय संस्कृति का एक प्राचीन आभूषण है, जिसका जिक्र वेदों, मंदिरों की मूर्तियों और पुरानी चित्रकला में मिलता है। प्राचीन समय में इसे सिर्फ सुंदरता या श्रृंगार के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक पहचान और वैवाहिक स्थिति के प्रतीक के रूप में भी पहना जाता था।  

मुगल काल में नथ का डिजाइन और भी कलात्मक हो गया, जबकि राजपूताना और मराठा संस्कृति में बड़ी, भारी और कीमती नथों का चलन बढ़ा। समय के साथ नथ का रूप और महत्व बदलता रहा, लेकिन यह हमेशा भारतीय महिलाओं के श्रृंगार का अहम हिस्सा बनी रही।
नथ का महत्व

नथ सिर्फ फैशन का हिस्सा नहीं, बल्कि कई मान्यताओं से भी जुड़ी है। कई मान्यताएं हैं कि नथ पहनना या नाक की पियर्सिंग सेहत के लिए अच्छी होती है। शादी में भी नथ पहनना विवाह का शुभ संकेत भी माना जाता है और कई परिवारों में खानदानी नथ को पीढ़ियों से आगे बढ़ाने की परंपरा है।
भारत के अलग-अलग राज्यों की नथ और उनकी खासियत
महाराष्ट्रीयन नथ

महाराष्ट्र की नथ काजू या पायसली आकार वाली होती है, जिसे गोजेदार या ब्राह्मणी नथ कहा जाता है। मोती, रूबी और एमराल्ड से इसे सजाया जाता है। यह ‘नवरी’ साड़ी और मराठी ब्राइडल लुक का मुख्य हिस्सा है।

  

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उत्तराखंडी टिहरी नथ (नथुली)

यह भारत की सबसे बड़ी नथों में से एक है। चांद के आकार की गोल नथ में बारीक फिलिग्री वर्क, मोती और रूबी जड़े होते हैं। इसका आकार कई बार परिवार की सामाजिक स्थिति का भी संकेत होता है। यह पहाड़ी दुल्हनों के लिए अहम आभूषण है।

  

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पंजाबी शिकरपुरी नथ और लौंग

पंजाब की शिकरपुरी नथ एक बड़ी गोल रिंग होती है जिसे बालों में पिन की जाने वाली चेन से सहारा दिया जाता है। यह भारी और बेहद सजावटी होती है। इसके अलावा छोटी लौंग, एक कली आकार का सोने या डायमंड का स्टड, रोजमर्रा की पसंदीदा नथ है।

  

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राजपूताना/मारवाड़ी नथ

राजस्थान और गुजरात की नथें बड़ी, भारी और कूंदन-पोल्की से सजी होती हैं। इनमें अक्सर फूलनुमा डिजाइन बना होता है। यह नथें शाही विरासत और राजस्थानी भव्यता का प्रतीक हैं।

  

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दक्षिण भारतीय मुक्कुथी (नोज स्टड)

दक्षिण भारत में नथ आमतौर पर छोटी, डायमंड स्टड वाली होती है। इसे मुक्कुथी या बेसेरी कहा जाता है। यह दाएं नथुने में पहनने की परंपरा कई दक्षिण भारतीय समुदायों में प्रचलित है। सात हीरे वाला ‘लो्टस क्लस्टर’ भी काफी लोकप्रिय है।

  

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पुल्लाकु (सेप्टम रिंग)

तमिलनाडु और ओडिशा के आदिवासी इलाकों में पुल्लाकु, यानी सेप्टम रिंग, पहनने की परंपरा है। यह नथ बीच की हड्डी में पहनी जाती है और कई बार देवदासी संस्कृति से भी जुड़ी मानी जाती है। दक्षिण भारत में यह अक्सर छोटे पेंडेंट जैसी होती है।

  

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बंगाली मुकुट नथ

बंगाल की नथ गोल आकार की होती है, लेकिन इसकी नक्शी कारीगरी इसे खास बनाती है। यह नाजुक, मध्यम आकार की होती है और कई बार ईयर चेन से जुड़ी होती है। यह बंगाली दुल्हन के लुक का महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है।

  

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हिमाचली बालू

हिमाचली नथ बड़ी और भारी गोल रिंग होती है। इसमें कभी-कभी तुरकवाज या मूंगा जड़ा होता है, जो तिब्बती संस्कृति का प्रभाव दिखाता है। इसकी डिजाइन साधारण लेकिन काफी खूबसूरत होती है।

  

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मध्य भारत की साधारण नथ

एमपी, यूपी और छत्तीसगढ़ में मध्यम आकार की सोने की नथें आम हैं। यह कम डिजाइन वाली, रोजमर्रा की परंपरा का हिस्सा हैं।

  

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आधुनिक दौर में नथ

आज नथ सिर्फ परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि फैशन का अहम हिस्सा बन चुकी है। डायमंड स्टड, मिनिमल रिंग्स और सेप्टम रिंग्स को युवा महिलाएं रोजमर्रा के लुक में भी अपनाने लगी हैं। पारंपरिक और आधुनिक डिजाइन का यह मेल भारतीय नथ को आज भी उतना ही प्रासंगिक बनाता है।
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