तंबाकू का कहर: मुंह के कैंसर मामलों में भारत विश्व में नंबर वन, हर 6 सेकंड में हो रही 1 की मौत

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ओरल कैंसर से हर 6 सेकंड में हो रही 1 की मौत। फाइल फोटो



संवाद सहयोगी, सुंदरपहाड़ी (गोड्डा)। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय, सुंदरपहाड़ी में राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम के तहत जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सामुदायिक स्वास्थ्य पदाधिकारी सोहनलाल मुंडेल और राजेंद्र प्रसाद कुमावत ने छात्राओं को तंबाकू के विषैले प्रभावों और आर्थिक बोझ के बारे में विस्तार से बताया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पदाधिकारी मुंडेल ने बताया कि यह एक वैश्विक महामारी है। इसके कारण हर साल 54 लाख लोगों की जान ले लेता है। विकासशील देशों में इन मौतों का 80% से अधिक हिस्सा आता है। भारत में स्थिति और भी भयावह है, जहां हर साल 10 लाख से अधिक लोग तंबाकू संबंधी बीमारियों से मरते हैं।

मुंह के कैंसर के मामलों में भारत विश्व में सबसे ऊपर है, जहां 90% केस तंबाकू उपयोग से जुड़े हैं। लगभग 50% कैंसर के मामले भी तंबाकू के कारण ही होते हैं। झारखंड में तो वयस्क आबादी का 50% से अधिक तंबाकू उत्पादों का उपयोग करता है, जो राष्ट्रीय औसत 35% से कहीं अधिक है।
तंबाकू की तुलना एचआईवी महामारी से भी भयानक

कार्यक्रम में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2007 में एचआईवी वायरस ने वैश्विक स्तर पर 20 लाख लोगों की जान ली, जबकि उसी वर्ष तंबाकू ने 57 लाख लोगों को शिकार बनाया।

स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि तंबाकू का आर्थिक बोझ भारत पर भारी पड़ रहा है। प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत 16,800 करोड़ रुपये, सीधी मृत्यु दर से जुड़ी लागत 14,700 करोड़ रुपये और समयपूर्व मृत्यु से 73,000 करोड़ रुपये का खर्च – कुल मिलाकर 1,04,500 करोड़ रुपये का वार्षिक नुकसान।

यह राशि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.16% है, जो राज्य और केंद्र सरकार के स्वास्थ्य व्यय से 12% अधिक है। तंबाकू उत्पादों से होने वाली कुल केंद्रीय उत्पाद शुल्क आय भी इस आर्थिक क्षति का मात्र 17% ही कवर करती है।

तंबाकू न केवल स्वास्थ्य का दुश्मन है, बल्कि आर्थिक विकास को भी बाधित करता है। हर छह सेकंड में एक तंबाकू संबंधी मौत होती है, जो 2030 तक 10 मिलियन वार्षिक मौतों तक पहुंच सकती है। 21वीं सदी में कुल 10 अरब मौतों का अनुमान है।
तंबाकू में 4,000 जहरीले पदार्थ, युवाओं पर सबसे बड़ा खतरा

कार्यक्रम में छात्राओं को बताया गया कि सिगरेट के धुएं में 4,000 से अधिक विषैले पदार्थ होते हैं, जिनमें अमोनिया (फ्लोर क्लीनर), आर्सेनिक (चूहा मारक जहर), कार्बन मोनोऑक्साइड (कार एग्जॉस्ट), हाइड्रोजन साइनाइड (गैस चैंबर में प्रयुक्त), निकोटीन (कीटनाशक), टार (सड़क बनाने का चिपचिपा पदार्थ) और रेडियोएक्टिव कंपाउंड्स (परमाणु हथियारों में प्रयुक्त) शामिल हैं।

ये पदार्थ बाल झड़ना, मोतियाबिंद, दांत सड़ना, फेफड़े का कैंसर, हृदय रोग, पेट के अल्सर, उंगलियों का काला पड़ना, विकृत शुक्राणु और गैंग्रीन जैसी बीमारियां पैदा करते हैं, जो अंततः दर्दनाक मौत का कारण बनते हैं।

युवाओं पर इसका प्रभाव और भी गंभीर है। ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे (GYTS-2009) के अनुसार, 13-15 वर्ष आयु वर्ग के 14.6% युवा तंबाकू का सेवन करते हैं (GYTS-2019 में 5.1%)।

भारत में प्रतिदिन 550 से अधिक बच्चे-किशोर तंबाकू की लत के शिकार होते हैं। औसतन तंबाकू शुरू करने की आयु 17.8 वर्ष है, जिसमें 25.8% लड़कियां 15 वर्ष से पहले ही शुरू कर देती हैं।
श्रमिकों पर तंबाकू का बोझ: गरीबी का चक्र

कार्यक्रम में बिड़ी रोलर्स और तंबाकू किसानों की दयनीय स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया। बिड़ी रोलर्स तंबाकू धूल के संपर्क में रहने से ब्रोंकाइटिस, टीबी, अस्थमा और महिलाओं में स्त्रीरोग संबंधी विकारों से ग्रस्त होते हैं।

उनकी मजदूरी न्यूनतम वेतन से भी कम है, जो गरीबी के दुष्चक्र में फंसा देती है। हरे तंबाकू के संपर्क से होने वाली बीमारियां उनकी सेहत बिगाड़ती हैं, यहां तक कि उनके भोजन का स्वाद भी कड़वा हो जाता है।
कोटपा कानून: मजबूत हथियार

कार्यक्रम में सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम-2003 (कोटपा) की प्रमुख धाराओं पर जोर दिया गया। धारा-4: सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान प्रतिबंधित, उल्लंघन पर 200 रुपये जुर्माना।

धारा-5: तंबाकू विज्ञापन निषिद्ध। धारा-6(a): स्कूलों से 100 गज के दायरे में बिक्री प्रतिबंधित। धारा-6(बी): 18 वर्ष से कम आयु वालों को बिक्री पर रोक। धारा-7: पैकेट पर 85% चित्रात्मक चेतावनी अनिवार्य।
शपथ और क्विज: नई पीढ़ी का संकल्प

कार्यक्रम के अंत में सभी छात्राओं और स्टाफ ने तंबाकू त्याग की शपथ ली। तंबाकू नियंत्रण पर क्विज प्रतियोगिता में तीन विजेता छात्राओं को पुरस्कार दिए गए। कार्यक्रम का उद्देश्य युवाओं को जागरूक कर तंबाकू मुक्त समाज बनाना था।

डिमांड में कमी लाने के लिए जागरूकता और कर बढ़ाकर वास्तविक कीमतें बढ़ाना, तथा सप्लाई में कमी के लिए कोटपा की कड़ाई से पालन और वैकल्पिक फसलें अपनाना – ये रणनीतियां अपनाकर ही हम इस महामारी पर विजय पा सकते हैं। जिंदगी चुनें, तंबाकू नहीं
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