जानकारी देतीं वक्ता
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। मोटापा, डायबिटीज, फैटी लिवर, हर्निया और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं अब केवल उम्रदराज लोगों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि युवा भी तेजी से इनकी चपेट में आ रहे हैं। इसके पीछे जीवनशैली में तेजी से हो रहे बदलाव, अनियमित खानपान, मानसिक तनाव, शारीरिक गतिविधियों की कमी और अनुवांशिक कारण प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
शनिवार को होटल हालिडे रिजेंसी में मेहरोत्रा एंडोसर्जरी और रियल अकादमी की ओर से संयुक्त सीएमई में हर्निया सोसाइटी आफ इंडिया के वर्तमान अध्यक्ष एवं एपीएमबीएसएस के पूर्व अध्यक्ष प्रख्यात सर्जन डा. मनीष बैजल ने मेटाबालिक सिंड्रोम के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि भारत में मेटाबालिक बीमारियों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है।
मोटापा और मेटाबालिक सिंड्रोम न केवल व्यक्ति की दिनचर्या को प्रभावित करता हैं, बल्कि समय रहते ध्यान न देने पर यह जटिल सर्जरी की जरूरत पड़ रही हैं। ऐसे में बैरियाट्रिक सर्जरी, लैप्रोस्कोपिक तकनीक, एंडोस्कोपी और रोबोटिक प्रक्रियाएं आधुनिक चिकित्सा की नई दिशा बन रही हैं।
उन्होंने जोर दिया कि चिकित्सकों का निरंतर अपडेट रहना जरूरी है, क्योंकि मेडिकल साइंस लगातार विकसित हो रही है और हर वर्ष नई तकनीकें सामने आ रही हैं। मुरादाबाद फिर चिकित्सा जगत का केंद्र बना, जहां मेहरोत्रा एंडोसर्जरी और रियल अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में हुई सीएमई (कंटीन्यूस मेडिकल एजुकेशन) में आधुनिक सर्जरी तकनीक और मेटाबालिक बीमारियों के बढ़ते प्रभाव पर व्यापक चर्चा हुई।
विशेषज्ञों ने नई चिकित्सा चुनौतियों, उपचार पद्धतियों और रोबोटिक सर्जरी के भविष्य पर अपने अनुभव साझा किए। मुख्य वक्ता डा. बैजल ने कहा कि रोबोटिक सर्जरी, एडवांस लैप्रोस्कोपी और एंडोस्कोपी जटिल सर्जरी को अधिक सुरक्षित, सटीक और कम दर्द बनाने की तकनीकों का प्रदर्शन किया। रोबोटिक सर्जरी आने वाले समय में सामान्य सर्जरी की प्रक्रिया को पूरी तरह बदल सकती है।
इसमें सर्जन की त्रुटि की संभावना कम होती है, मरीज जल्दी स्वस्थ होता है और अस्पताल में रहने की अवधि कम होती है। उपस्थित युवा डाक्टर और प्रशिक्षु सर्जनों ने नई तकनीकों में रुचि दिखाई। चिकित्सा क्षेत्र में विशेषकर सर्जरी में तकनीक की भूमिका बढ़ रही है। ऐसे में चिकित्सकों को चाहिए कि वे न केवल नवीनतम प्रक्रियाओं को सीखें, बल्कि अपने रोजमर्रा के उपचार में उन्हें अपनाने का साहस भी दिखाएं।
संयोजक रोबोटिक सर्जन डा. मगन मेहरोत्रा ने सर्जरी के अनुभव साझा किये। साथ ही केस स्टडी के साथ प्रोजेक्टर के माध्यम से सर्जन को जानकारी दी। रोबोटिक सर्जन डा. लीना मेहरोत्रा ने बताया कि इस तरह के प्रशिक्षण सत्र मुरादाबाद में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं। इससे यहां के मरीजों को अत्याधुनिक उपचार उपलब्ध कराने में मदद मिलती है।
सीएमई चिकित्सा जगत में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो न केवल डाक्टरों के ज्ञान को नवीनतम तकनीकों से जोड़ता है बल्कि क्षेत्र के मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की दिशा में भी योगदान देता है। इसमें डा. अनुभव विंदल, डा. सैयद मो. रजी समेत अन्य चिकित्सक रहे।
हर्निया के 25 प्रतिशत बढ़े मामले, जीवनशैली में बदलाव से रोकथाम : डा. बैजल
हर्निया सोसाइटी आफ इंडिया अध्यक्ष डा. मनीष बैजल ने बताया कि हर्निया दो प्रकार का होता है। इनवाइनल हंबलीकल हर्निया अपने आप होता है। जो नाभि और जांघ में होता है। इनफिजनल हनिर्या वह होता है जो आपरेशन के बाद होता है। जैसे किसी ने ओपन सर्जरी करा ली। उसमें हनिर्या बन जाता है।
हाल के वर्षों में वजन उठाना, मोटापा, पुरानी खांसी, कब्ज, बार-बार गैस बनना, सर्जरी के बाद पेट की मांसपेशियों का कमजोर रह जाना और उम्र बढ़ने जैसी स्थितियां इसके प्रमुख कारण सामने आए हैं। अस्पतालों में हर माह ऐसे मरीजों की संख्या पहले की तुलना में 20-25 प्रतिशत तक बढ़ी है। हर्निया का स्थायी इलाज सर्जरी है।
सर्जरी द्वारा कमजोर हिस्से को मजबूत करते है और जाली (मेश) लगाकर दोबारा होने की संभावना को कम करते है। देर करने पर आंत फंसने, ब्लड सप्लाई रुकने या जान का खतरा तक हो सकता है, इसलिए शुरुआती लक्षण पेट या जांघ में गांठ, दर्द, खड़े होने या खांसने पर सूजन बढ़ना दिखते ही जांच कराएं।
रोकथाम के लिए नियमित व्यायाम, वजन को नियंत्रित रखना, कब्ज की समस्या न रहने देना, ज्यादा देर तक भारी वजन न उठाना और सही खानपान जरूरी है। पेट की मांसपेशियों को मजबूत रखने वाले व्यायाम, पर्याप्त पानी और रेशेदार भोजन करें। जिन लोगों की पहले सर्जरी हो चुकी है, उन्हें खास सावधानी बरतने की जरूरत है। हर्निया को सामान्य दर्द या सूजन समझकर नजरअंदाज न करें। समय पर जांच, सही उपचार और सतर्क जीवनशैली से इससे बचाव संभव है।
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