संत प्रेमानंद महाराज। फाइल
संवाद सूत्र, जागरण, गोवर्धन। गिरिराज महाराज की भक्तिमयी छाया में शुक्रवार का प्रभात जैसे और अधिक पावन हो उठा, जब संत प्रेमानंदजी ने ब्रजरज को मस्तक पर धारण कर अपनी परिक्रमा का दिव्य क्रम पुनः प्रारंभ किया। बुधवार को जहां उन्होंने विराम लिया था, वहीं से विनम्रता और भक्ति के साथ कदम आगे बढ़े। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
राधे-राधे के जयघोष से गूंजता रहा परिक्रमा मार्ग
सुबह साढ़े नौ बजे संत प्रेमानंद का का काफिला पूंछरी पहुंचा। यहां से उन्होंने पैदल परिक्रमा शुरू की तो मानों परिक्रमा मार्ग जीवंत हो उठा। राधे-राधे के स्वर हवा में घुलकर ऐसा आह्वान कर रहे थे, मानो गिरिराज स्वयं भक्तों को इस अद्भुत दृश्य का साक्षी बनने बुला रहे हों। जैसे ही संतजी के आगमन का समाचार फैला, परिक्रमा मार्ग श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ से भर गया। हर ओर पुष्पों की वर्षा, नयनाभिराम दृश्य, मानो भक्ति का सागर लहरें मार रहा हो।
जतीपुरा पहुनचकर उन्होंने गिरिराजजी की पूजा अर्चना की
संत प्रेमानंदजी के दिव्य चरण जहां पड़े, वहां भजन-कीर्तन की मधुर ध्वनियां गूंज उठीं। लोग उनके एक दर्शन के लिए व्याकुल होकर आगे बढ़ते रहे। जतीपुरा पहुनचकर उन्होंने गिरिराजजी की पूजा अर्चना की, दूध से अभिषेक किया और भक्तिभाव से नतमस्तक हुए। उस क्षण परिक्रमा मार्ग का प्रत्येक कण राधे राधे के जयकारों से झूमने लगा। जतीपुरा से बाहर निकलकर उन्होंने परिक्रमा को थोड़े विश्राम के लिए विराम दिया और करीब डेढ़ घंटे बाद गाड़ी से वृंदावन की ओर लौट गए, लेकिन पीछे छोड़ गए भक्ति, प्रेम और आध्यात्मिक ऊर्जा की एक अमिट लहर।
तलहटी में छाए जयकारे और भक्तों की उमंग यह बता रही थी कि प्रेमानंदजी के मात्र एक दर्शन ने ही दिन को तीर्थ, और क्षण को उत्सव बना दिया। |