पूस पिट्ठा केवल स्वादिष्ट व्यंजन ही नहीं, बल्कि ऊर्जा से भरपूर
संवाद सूत्र, फतेहपुर (गया)। मकर संक्रांति और पूस मास की शुरुआत होते ही ग्रामीण इलाकों के घर-आंगन में पारंपरिक व्यंजन पूस पिठ्ठा की खुशबू फैलने लगती है। बदलती जीवनशैली और आधुनिकता के प्रभाव के बावजूद इस सदियों पुराने व्यंजन का स्वाद और महत्ता आज भी ग्रामीण समाज में जीवित है। खेतों की बुवाई के बाद ग्रामीण परिवारों में जब कुछ अवकाश मिलता है, तब महिलाएं चावल के आटे, खोआ और गुड़ की महक से पूरा घर महका देती हैं। पूस पिठ्ठा केवल भोजन नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक जुड़ाव का प्रतीक माना जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कैसे बनता है पिट्ठा ?
धान कटते ही नए चावल घरों में आते हैं, और इन्हीं चावलों से पिट्ठा की तैयारी शुरू होती है। इसके लिए चावल को भिगोकर सुखाया जाता है और फिर बारीक पीसकर आटा तैयार किया जाता है।
इसके बाद गुड़ में नारियल, तिल, बेदाम, तीसी या खजूर का मिश्रण बनाकर भरावन तैयार की जाती है। ग्रामीण घरों में चूल्हे की लो पर पकने वाले पिट्ठे का स्वाद आज भी अलग पहचान रखता है।
पिट्ठा बनाने की प्रक्रिया में पहले पानी उबालकर उसमें चावल का आटा डालकर गूंथा जाता है। इसके बाद छोटी-छोटी लोइयां बनाकर उनमें गुड़ और तीसी के मिश्रण को भरा जाता है।
आकार चाहे गोल हो या लंबा, हर रूप में इसका स्वाद लाजवाब रहता है। भरने के बाद पिट्ठा को उबलते पानी में पकाया जाता है।
इसी पित्थे को हल्का तेल लगाकर भूनकर या भाप में पकाकर भी खाया जाता है। खोआ से बने पिट्ठे को दूध में पकाया जाता है, जिसे \“दूध पिट्ठा\“ कहा जाता है, यह खासकर बच्चों और बुजुर्गों में बेहद लोकप्रिय है।
- पानी उबाल कर उसमें चावल का आटा डालकर गूंथा जाता हैं।
- छोटी-छोटी लोइयां बनाई जाती है।
- गुड़ में तीसी के चूर को मिलाया जाता है।
- गुड़ व तीसी को लोई में भरकर लंबा या गोल करके बनाया जाता है।
- उसे उबलते पानी में डालकर पकाया जाता है।
पौष्टिकता का भंडार
विशेषज्ञों के अनुसार पूस पिट्ठा केवल स्वादिष्ट व्यंजन ही नहीं, बल्कि ऊर्जा से भरपूर खाद्य है। चावल का आटा आसानी से पच जाता है, जबकि गुड़ शरीर को गर्मी देता है।
नारियल, तिल और तीसी के साथ इसका संयोजन इसे और अधिक पौष्टिक बनाता है। पोषण विशेषज्ञ डॉ. दीपक कुमार बताते हैं कि गुड़ आयरन से भरपूर होता है और सर्दियों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
वहीं तीसी में फाइबर, ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो शरीर को ताकत देते हैं। खोआ विटामिन डी और कैल्शियम का अच्छा स्रोत है, जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं।
ठंड के मौसम में पिट्ठा खाने से शरीर गर्म रहता है। इसकी सुपाच्यता इसे बच्चों, वयस्कों और बुजुर्गों—सभी के लिए उपयुक्त बनाती है। यही कारण है कि बिहार के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी यह व्यंजन चाव से खाया जाता है।
बदलती जीवनशैली में घटता चलन
तेज रफ्तार जीवन, बाजारवाद और आधुनिक खानपान के कारण युवाओं में पिट्ठा का चलन कुछ कम हुआ है। शहरों में केक, पेस्ट्री और फास्ट फूड की बढ़ती लोकप्रियता ने पारंपरिक व्यंजनों को पीछे धकेला है।
पहले हर घर में नियमित रूप से बनता पिट्ठा अब त्योहारों और विशेष अवसरों तक सीमित होकर रह गया है। हालांकि ग्रामीण इलाकों में इसकी परंपरा आज भी मजबूत है और लोग पौष मास की शुरुआत होते ही इसे बनाने लगते हैं।
परंपरा जिसे बचाए रखने की जरूरत
आयुर्वेदाचार्य डॉ. मंटू मिश्रा और साहित्यकार डॉ. सुदर्शन पांडेय बताते हैं कि पिट्ठा सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि पारिवारिक एकजुटता का प्रतीक है।
पहले पूरा परिवार पिट्ठा बनाने में शामिल होता था, जिससे रिश्तों में मिठास बढ़ती थी। बदलते समय में भले ही इसकी लोकप्रियता में बदलाव आया हो, लेकिन ग्रामीण समाज में इसकी सांस्कृतिक महत्ता आज भी जस की तस बनी हुई है।
पूस पिठ्ठा का स्वाद आज भी लोगों के मन को उसी तरह लुभाता है। आधुनिकता की आंधी के बावजूद यह पारंपरिक व्यंजन अपनी सादगी, महक और पौष्टिकता के साथ ग्रामीण जीवन की पहचान बना हुआ है। |