तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण
विधि संवाददाता,वाराणसी। ज्ञानवापी स्थित मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की मांग समेत सात मुकदमों की सुनवाई बुधवार को जिला जज संजीव शुक्ला की अदालत में हुई। सुनवाई के दौरान पक्षकारों ने ज्ञानवापी के तालाब (वजुखाना) को सील करने में लगे ताले पर लगे कपड़े को बदलने की मांग के लंबित प्रार्थना पत्र का मुद्दा उठाया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
प्रतिवादी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की ओर से मौजूद वकील एकलाख अहमद ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लंबित एक रिट याचिका में 12 दिसंबर 2024 को पारित आदेश की प्रमाणित प्रति जिला जज के समक्ष प्रस्तुत किया। एकलाख अहमद ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए प्रार्थना पत्र निरस्त करने की मांग की।
सर्वोच्च न्यायालय ने रिट याचिका के निस्तारण तक लंबित मुकदमों में किसी तरह का इफेक्टीव आर्डर पारित करने पर रोक लगा रखा है। जिला जज की अदालत सीलबंद कपड़ा को बदलने का कोई आदेश पारित नहीं कर सकती है। नये आदेश के लिए पक्षकार को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करना चाहिए।
शासन की ओर से नियुक्त विशेष वकील राजेश मिश्र ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सीलबंद कपड़ा नष्ट हो चुका है। ज्ञानवापी की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए इसे बदलना जरूरी है। दोनों पक्षों की दलील को सुनने के पश्चात् जिला जज ने आदेश के लिए 15 दिसंबर की तिथि मुकर्रर कर दी।
वहीं मंदिर पक्ष के सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने भी पक्ष रखा। एडवोकेट कमिश्नर की कार्रवाई के दौरान 16 मई वर्ष 2022 में सिविल जज (सीनियर डिविजन) रवि कुमार दिवाकर के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की पुष्टि के बाद ज्ञानवापी परिसर के तालाब को सीलबंद करने के लिए ताला लगाने के बाद उस पर कपड़ा लपेटकर सीलबंद किया गया था।
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बीते आठ अगस्त 2025 को राज्य सरकार की ओर से नियुक्त विशेष वकील राजेश मिश्रा ने एडवोकेट कमिश्नर की कार्रवाई के दौरान वजूखाने को शील करने में लगे कपड़े के नष्ट होने के कारण बदलकर नए कपड़े से पुनःशील करने का आदेश देने की मांग करते हुए जिला जज की अदालत में प्रार्थना पत्र पर दिया है।
इस प्रार्थना पत्र पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की ओर से 22 व 29 अगस्त को आपत्ति व प्रति आपत्ति दाखिल की जा चुकी है। पक्षकारों की बहस सुनने और पत्रावलियों के अवलोकन के पश्चात् जिला जज ने सुप्रीमकोर्ट में लंबित एक रिट याचिका में पारित आदेश की प्रति प्रस्तुत करने का पक्षकारों को आदेश दिया था। |