डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली का जहर भरा आसमान और एक सवाल, क्या प्रदूषण को रोकने का एकमात्र उपाय अब लॉकडाउन ही है? क्योंकि कोविड के लाॅकडाउन ने हवा बिलकुल साफ कर थी।
दिल्ली–एनसीआर की हवा इस समय किसी हेल्थ इमरजेंसी से कम नहीं है। रोज अस्पतालों में सांस और आंखों की जलन से परेशान लोग उमड़ रहे हैं। सड़क पर निकलिए तो गले में चुभन और चेहरे पर भारीपन साफ महसूस होता है। GRAP के तमाम नियम, कंस्ट्रक्शन पर रोक, ट्रक एंट्री बैन, वर्क फ्रॉम होम एडवाइजरी, स्कूलों काे बंद किया जाना। ये सब लागू हैं, लेकिन हवा में जहरीली धुंध और घुलती ही जा रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
ऐसे माहौल में एक सवाल जहन में बार-बार उठता है \“दिल्ली को बचाना है तो क्या कोरोना काल के जैसा लॉकडाउन ही एकमात्र रास्ता है?\“ लेकिन इससे पहले कि हम भारत की स्थिति पर आएं, ये समझना जरूरी है कि क्या दुनिया में कहीं भी वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया है?
अगर लगाया गया तो नतीजा क्या हुआ? अगर नहीं लगाया गया, तो किस तरह के आंशिक कदम कारगर साबित हुए? और भारत में अगर कभी ऐसा लॉकडाउन लगाया जाए, तो हवा भले साफ हो जाए, लेकिन उसके सामाजिक-आर्थिक नुकसान कितने भारी होंगे?
इस रिपोर्ट में हम इन सभी सवालों का जवाब वैश्विक उदाहरणों, वैज्ञानिक अध्ययनों और COVID लॉकडाउन के प्रमाणित डेटा के आधार पर खोज रहे हैं।
क्या किसी देश ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए लॉकडाउन लगाया है?
क्या किसी देश ने वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए कभी कोविड जैसे लॉकडाउन लगाया है, तो इसका जवाब है \“नहीं\“। लेकिन, कई देशों ने ऐसे कड़े, अल्पकालिक और लॉकडाउन-जैसे प्रतिबंध जरूर लागू किए, जिनका असर शहरों में साफ दिखा, जिनमें सड़कें खाली, फैक्ट्रियां ठप, और हवा साफ हुई। आइए इन देशों के इन प्रतिबंधों और उससे हुए लाभ के बारे में जानते हैं।
चीन का बीजिंग (2008 ओलिंपिक और 2014 APEC): सबसे सफल प्रयोग
प्रदूषण नियंत्रण का इससे सबसे सफल प्रयोग माना जात है। ओलिंपिक 2008 से पहले बीजिंग ने शहर की हवा को दुनिया के लिए \“सांस लेने लायक\“ बनाने की ठानी। जुलाई 2008 में ये कदम उठाए गए:
- 3 लाख पुराने वाहन सड़क से हटाए गए।
- 20 जुलाई से ऑड-ईवन लागू।
- सभी निर्माण कार्य बंद।
- प्रदूषक फैक्ट्रियों की गतिविधि रोकी गई।
- स्वच्छ ईंधन पर बिजलीघर शिफ्ट किए गए।
इन प्रतिबंधों के नतीजे चौंकाने वाले थे। CO, NOx, SO₂, PM10 जैसे प्रदूषक 12–70% तक घट गए। उपग्रह डेटा से पता चला कि NO₂ स्तर 43–59% तक गिरा।
फिर 2014 में APEC सम्मेलन के दौरान \“APEC Blue\“ प्रयोग किया गया। यहां तक कि लोग कहने लगे थे, चीन सरकार जब चाहे बीजिंग का आसमान नीला कर देती है। तब PM2.5 में 59% गिरावट दर्ज की। दृश्यता में 56–70% तक का सुधार हुआ। लेकिन, वैज्ञानिकों ने साफ चेताया कि ये स्थायी समाधान नहीं हैं। हवा साफ हुई, पर सिर्फ उतने समय के लिए, जब तक प्रतिबंध लागू थे।
फ्रांस का पेरिस (2014): सिर्फ वाहन आधारित प्रतिबंध ही लगे
दो दिन के ऑड-ईवन नियम ने ट्रैफिक और प्रदूषण दोनों घटाए। मार्च 2014 में जब पेरिस की हवा खतरे के स्तर पर पहुंची, सरकार ने ऑड-ईवन लागू किया। पब्लिक ट्रांसपोट्र को फ्री कर दिया। स्पीड लिमिट घटाई।
दो दिनों में यहा भी नतीजा उत्साहजनक मिला। ट्रैफिक 18% कम हो गया, PM10 में 6% और NOx में 10% कमी दर्ज की गई। लेकिन, ये असर त्वरित था और प्रभाव बहुत छोटा, क्योंकि सिर्फ वाहन-आधारित प्रतिबंध थे।
इटली के मिलान, रोम, ट्यूरिन, फ्लोरेंस (2015 और 2020)
इटली में में धुंध के दिनों में प्रतिबंध लगे। दिसंबर 2015 में मिलान में 10AM से 4PM तक निजी गाड़ियों की आवाजाही बंद कर दी गई। वहीं, रोम में तीन दिन के लिए ऑड-ईवन लागू किया गया। इसी तरह जनवरी 2020 में ट्यूरिन में पुराने वाहनों पर रोक लगा दी गई और फ्लोरेंस में 8–12 जनवरी तक पुरानी कारों पर पाबंदी रही। तब ट्रैफिक प्रतिबंधों से अस्थायी राहत दिलाई थी।
चिली का सैंटियागो (2015): सबसे सफल लॉन्ग-टर्म एयर क्वालिटी मॉडल
21 जून 2015 को सैंटियागो में PM2.5 खतरनाक स्तर पर पहुंचा। सरकार ने तुरंत 900 उद्योग बंद कर दिए, इतना ही नहीं सड़कों से
40% निजी वाहन सड़क से हटा दिए।
इसका नतीजा ये हुआ कि PM2.5 में तेज गिरावट आई। फिर अगले दशक में दीर्घकालिक सुधारों के चलते खतरनाक प्रदूषण वाले दिनों में 66% कमी दर्ज हुई। यह दुनिया का सबसे सफल लॉन्ग-टर्म एयर क्वालिटी मॉडल माना जाता है।
ईरान का तेहरान (2025): तत्काल राहत के लिया किया काम
तेहरान में AQI 170 पहुंचने पर 24–25 नवंबर 2025 में प्रतिबंध लगाए गए। दो दिन स्कूल-यूनिवर्सिटी बंद किए गए। कई इलाकों में 6:30AM से 8:30PM तक निजी गाड़ियाें की आवाजाही प्रतिबंधित की गई। ट्रकों पर कड़ा नियंत्रण करने के साथ ही वर्क फ्रॉम होम एडवाइजरी जारी की गई। इसका नतीजा ये रहा कि AQI में गिरावट हुई, पर दो दिन बाद हवा फिर उसी रफ्तार से जहरीली होने लगी।
दक्षिण कोरिया का सियोल (2025): पुराने डीजल पर प्रतिबंध
मार्च 2025 में पुराने डीजल वाहनों पर पूर्ण रोक लगाई गई। सरकारी वाहनों के लिए ऑल्टरनेट डे ड्राइविंग को लागू किया गया। इसके साथ ही निर्माण और इंडस्ट्रियल एक्टिविटी पर रोक लगाई। PM2.5 कुछ गिरा, लेकिन यह माना गया कि मौसम जब खराब हो, तो यह उपाय सीमित राहत ही देते हैं।
मेक्सिको सिटी में 1989 से हर हफ्ते \“प्रतिबंध\“
“Hoy No Circula” नीति को मेक्सिको में अपनाया गया। हफ्ते में एक दिन गाड़ियों को नंबर प्लेट के आधार पर सड़क से हटाया जाता है। बाद में शनिवार के दिन रोक के साथ ही पुराने वाहनों पर सख्ती की गई। अध्ययन बताते हैं कि लोगों ने दूसरी कार खरीदकर सिस्टम को मात दे दी, नतीजतन प्रदूषण में मामूली सुधार दिखा, लेकिन कोई स्थायी फायदा नहीं हुआ।
भारत में प्रदूषण रोकने के लिए COVID जैसा लॉकडाउन लगे तो...
अब आते हैं सबसे अहम सवाल पर, अगर दिल्ली-एनसीआर में कोरोना जैसा लॉकडाउन सिर्फ हवा साफ करने के लिए लगाया जाए तो नतीजा क्या होगा?
सबसे बड़ा सबक हमें COVID लॉकडाउन में मिला, IIT दिल्ली और Elsevier की एक बहु-शहर स्टडी बताती है कि प्रदूषण में बेहद कमी आई। आइए देखते हैं किस प्रदूषक तत्व में तब कितनी कमी दर्ज की कई थी।
| प्रदूषक तत्व एवं AQI | दर्ज की गई कमी | | PM2.5 | 43% | | PM10 | 31% | | NO₂ | 18% | | CO | 10% | | AQI (संपूर्ण भारत) | 30% | | AQI (दिल्ली) | 49% |
इस अध्ययन में यह भी पाया गया:
- यदि यह स्तर पूरे साल बना रहे, तो लगभग 6.5 लाख लोगों की जानें हर साल बच सकती हैं।
- स्वास्थ्य जोखिम (PM exposure risk) में 52% कमी दर्ज हुई।
- यानी हवा इतनी साफ हुई कि दिल्ली का आसमान नीला दिखाई देने लगा था।
फायदा: अगर प्रदूषण के लिए लॉकडाउन लगाया जाए
- हवा में तत्काल सुधार।
- सांस और दिल की बीमारियों में तेज कमी।
- सालाना लाखों मौतों में संभावित गिरावट (IIT-Delhi आकलन)
- दुर्घटनाओं, शोर और कार्बन उत्सर्जन में कमी।
- वैज्ञानिकों के लिए वास्तविक \“एयर क्वालिटी\“ देखने का मौका।
नुकसान: कीमत बहुत भारी होगी
1. अर्थव्यवस्था को झटका
- COVID-19 लॉकडाउन में GDP तिमाही में 24% गिरी।
- रोजगार 26% गिरा।
- लाखों प्रवासी मजदूरों ने काम खोया।
2. गरीब जनता सबसे ज्यादा प्रभावित
- दिहाड़ी मजदूर, सड़क विक्रेता, छोटे व्यापारी—सभी पर सीधा असर।
3. शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान
- स्कूल बंद होने से बच्चों की पढ़ाई पर बड़ा ब्रेक लगा। मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ।
4. स्वास्थ्य व्यवस्था पर दूसरा बोझ
- ओपीडी, इलेक्टिव सर्जरी, रूटीन ट्रीटमेंट प्रभावित हुए।
5. लॉकडाउन खत्म होते ही प्रदूषण दोबारा लौट आता है
- विशेषज्ञ चेताते हैं किबिना स्थायी समाधान के लाभ कुछ हफ्तों तक ही टिकते हैं।
6. ओज़ोन (O₃) बढ़ने का खतरा
- PM कम होने पर O₃ कई शहरों में 10–20% बढ़ी।
- पूर्वी भारत में 89% तक उछाल दर्ज हुआ।
तो समाधान क्या है, लॉकडाउन या कुछ और?
विशेषज्ञ कहते हैं कि लॉकडाउन हवा को साफ कर सकता है, लेकिन देश को नहीं चला सकता। इसलिए दुनिया भर में अपनाया जाने वाला सिद्धांत है Emergency Measures + Long-term Policy = Sustainable Clean Air, आपातकालीन उपाय (स्कूल बंद, वाहन पर रोक, निर्माण पर रोक) जरूर लगाने चाहिए जब AQI खतरनाक स्तर पर हो, लेकिन असली लड़ाई इन कदमों से ही जीत सकते हैं:
- इलेक्ट्रिक और सार्वजनिक परिवहन
- उद्योगों के लिए क्लीन टेक्नोलॉजी
- सड़क धूल नियंत्रण
- पराली प्रबंधन समाधान
- ओजोन नियंत्रण नीतियां
- शहर-विशिष्ट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड
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लॉकडाउन कोई स्थायी समाधान नहीं है, क्योंकि आज के समय में हमें सतत विकास की आवश्यकता है। पर्यावरणीय तथा मानव-सुविधा से जुड़ा विकास, दोनों को समानांतर रूप से आगे बढ़ना चाहिए। किसी भी प्रकार के विकास की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए; बल्कि पर्यावरणीय अवसंरचना की carrying capacity को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि पर्यावरणीय सहायक सेवाएं पर्याप्त न हों तो मानव विकास भी दीर्घकाल में टिकाऊ नहीं रह सकता है।
लॉकडाउन की अवधि में पूरे देश ने ground-level ozone की बढ़ी हुई सांद्रता का सामना किया। यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि वायुमंडल में particulate dust न होने के कारण solar radiation बिना किसी रुकावट के सतह तक पहुंच गया। ओजोन अधिक कैंसरकारी (carcinogenic) माना जाता है, इसी कारण पश्चिमी देशों सहित उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में दिन के समय ओज़ोन अलर्ट सेवाएं शुरू की जाती हैं। इस प्रकार, धूल के कण हमें अत्यधिक ओजोन से बचाते हैं, जो मानव जाति के लिए लाभकारी सिद्ध होता है।
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- डॉ. दीपांकर साहा, पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी |