विधानसभा में सियासी विरासत और सामाजिक प्रतिनिधित्व का संगम (PTI)
सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा का ताजा शपथ ग्रहण समारोह इस बार कई मायनों में खास रहा। सदन ने केवल नए विधायकों का स्वागत नहीं किया, बल्कि एक ऐसी तस्वीर भी उभरी जिसमें राजनीतिक विरासत, सामाजिक प्रतिनिधित्व, महिला सशक्तिकरण और परिवर्तित जनमत का संगम भी दिखाई दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
किसी की पत्नी, किसी का बेटा, तो किसी की पुत्रवधू और समधन। एक ही मंच पर दो पीढ़ियों का यह प्रतिनिधित्व बताता है कि बिहार की राजनीति लगातार बदल रही है और जनता भी नए चेहरे, नई ऊर्जा और नए दृष्टिकोण को जगह दे रही है।
राजवल्लभ यादव, बिंदी यादव, बूटन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और अशोक महतो की पत्नियों का विधानसभा में प्रवेश यह संकेत देता है कि राजनीतिक नेतृत्व में महिलाएं अब सिर्फ सहायक भूमिका में नहीं हैं, बल्कि स्वयं जनादेश की वाहक बन रही हैं।
इन नेताओं की पत्नियों ने अपने क्षेत्रों में वर्षों से मौजूद सामाजिक संबंधों, सक्रिय भागीदारी और सहज पहुंच के आधार पर जनता का भरोसा हासिल किया। यह महिला प्रतिभागिता का मजबूती से उभरता हुआ रूप है। सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, वास्तविक नेतृत्व वाली भूमिका।
इसके समानांतर, दूसरी पीढ़ी की एंट्री भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। शाहबुद्दीन, प्रभुनाथ सिंह, आनंद मोहन, अरुण कुमार, जगदीश शर्मा, लालू प्रसाद यादव और शकुनी चौधरी के पुत्रों ने जिस तरह मतदाताओं का समर्थन जुटाया, वह बताता है कि राजनीतिक परिवार की पहचान के साथ-साथ युवा दृष्टिकोण, ताजगी और तकनीकी समझ अब राजनीति का नया आधार बन चुकी है।
ये युवा नेता अपने-अपने क्षेत्रों में विकास, शिक्षा, टेक्नोलॉजी और युवाओं के अवसर जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर राजनीति में उतर रहे हैं, जिससे विधानसभा के भावी विमर्श में नई ऊर्जा जुड़ने की उम्मीद है।
शपथ मंच का सबसे चर्चित दृश्य रहा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के परिवार की उपस्थिति—समधन और पुत्रवधू दोनों का विधायक बनकर शपथ लेना। यह घटना राजनीति के सामाजिक विस्तार की मिसाल है, जहां प्रतिनिधित्व परिवार के भीतर विविध वर्गों और सामाजिक आधारों से भी आता है।
मांझी परिवार की यह मजबूत उपस्थिति सामाजिक न्याय, दलित नेतृत्व और समावेशी राजनीति की नई परिभाषा पेश करती है।
कुल मिलाकर इस बार का शपथ ग्रहण समारोह बताता है कि बिहार की राजनीति एक नए संतुलन के दौर में है। जहां पारिवारिक विरासत अपनी जगह कायम है, वहीं महिलाओं का उभार, युवाओं का नेतृत्व और सामाजिक विविधता का विस्तार राजनीति को नए आयाम दे रहा है।
आने वाले वर्षों में यह मिश्रण बिहार विधानसभा की कार्यशैली और नीति-निर्माण को अधिक संवेदनशील, आधुनिक और लोकतांत्रिक बनाने की क्षमता रखता है। |