आइवीआरआइ फाइल फोटो
अनूप गुप्ता, जागरण, बरेली। 40 डिग्री के तापमान पर मीट को खुला रखकर अगर बेचा जाए तो उसमें दो से तीन घंटे में बेहद खतरनाक बैक्टीरिया पनपने लगते हैं और हाई प्रोटीन डाइट के तौर पर खाए जाने वाला मांस फायदा के बजाय शरीर के अंदर तमाम हानिकारक जीवाणु को पैदा कर देता है। इससे तमाम तरह की भयंकर बीमारियों के भी लगने की आशंका है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जबकि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की रिपोर्ट के तहत प्रति व्यक्ति जितना प्रोटीन पहुंचना चाहिए, वह दो से ढाई गुणा तक कम है। ऐसे में मीट को जीवाणु से ज्यादा दिनों तक कैसे संरक्षित किया जाए, इस पर राष्ट्रीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) देश के तमाम वेटनरी संस्थानों के करीब ढाई सौ विशेषज्ञों के साथ शोध कर रहा है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की रिपोर्ट बताती है कि देश में हर दिन करीब 10.25 मिलियन टन मांस का उत्पादन हो रहा है। जबकि प्रति व्यक्ति को कम से कम पूरी डाइट के लिए इससे दो से ढाई गुणा तक मांस की जरूरत है। जाहिर है कि मीट की जितनी आवश्यकता है, उसके मुकाबले उत्पादन बेहद कम है। ऐसे में आइवीआरआइ के विज्ञानी इस शोध पर लगे हैं कि मांस को ज्यादा देर तक किसी तरह से संरक्षित रखा जा सके।
विज्ञानियों का कहना है कि 40 डिग्री सेल्सियस डिग्री में खुले में रखे मीट में दो से तीन घंटे में बैक्टीरिया पैदा होने लगते हैं, जो हमारे शरीर में अगर दाखिल हो जाएं तो इसके नतीजे काफी खराब हो सकते है। इसे रोकने के लिए आइवीआरआइ के पशुधन उत्पाद प्रौद्योगिकी (आइसीएमआर) विभाग ने देशभर के तमाम वेटनरी संस्थाओं के करीब ढाई सौ विज्ञानियों को बुलाया है, जिन्होंने इस पर अब तक तमाम तरह की रिसर्च कर चुके हैं।
इन साइंटिस्टों के साथ स्मार्ट मीट प्रोसेसिंग, माइक्रोबियल एवं रसायनिक सुरक्षा वैल्यू-एडेड उत्पादों के विकास, बाय प्राजेक्ट उपयोग, सेंसर आधारित गुणवत्ता मूल्यांकन आदि बिंदुओं को लेकर नए सिरे से शोध को दिशा देने की तैयारी है, ताकि उच्च गुणवत्ता वाले पशु आधारित प्रोटीन, सुरक्षित खाद्य उत्पादन आदि को आसानी से बढ़ावा दिलाया जा सके।
वजह के हिसाब से कम से कम एक ग्राम मिलना चाहिए प्रोटीन
विज्ञानियों का कहना है कि आपका जितना वजन है, उसके हिसाब से कम से कम एक किलो वजन पर एक ग्राम प्रोटीन तो मिलना चाहिए। ऐसा नहीं है कि एक किलो मीटर पर सौ प्रतिशत प्रोटीन शरीर में पहुंचता है। यह सिर्फ 20 ग्राम ही है। हालांकि मांस के साथ प्रोटीन के तमाम अन्य स्रोत भी है। उन सभी को मिलाकर शरीर में पहुंचने वाला मानक ही हमारे कुल प्रोटीन के अनुपात को पूरा करता है।
विज्ञानियों के साथ मिलकर निकाला जाएगा निचोड़
आइवीआरआइ में पशुधन उत्पाद प्रौद्योगिकी (एलपीटी) के एचओसी उा. आरके सेन ने बताया कि भारतीय मीट विज्ञान संघ के 13वें राष्ट्रीय सम्मेलन के मौके पर मीट सेक्टर में अग्रणी तकनीकी का उपभोग विषय को लेकर जो मीट शुरू होने जा रही हैं, उसमें मीट उत्पादन और बढ़ोतरी के साथ उसकी गुणवत्ता सुधार आदि को लेकर विज्ञानियों के साथ मंथन किया जाएगा। ज्वाइंट डायरेक्टर डा. एसके मेहंदीरत्ता इस मीट को लेकर होने वाले तमाम बिंदुओं को स्पष्ट किया। बोले. इससे मीट संरक्षण और उत्पादन की दिशा में वैश्विक स्तर पर चल रहे बदलाव और यहां उसमें सुधार की संभावनाओं को भी तलाश जा रहा है। इसके लिए जिन विज्ञानियो ने इस दिशा में काम किया है, उन्हें एक साथ जोड़कर निचोड़ निकाला जाएगा कि मांस उत्पादन में बढ़ोतरी और संरक्षण को किस तरह से बढ़ाया जा सकता है।
मांस उत्पादन के बढ़ाने और उसे ज्यादा समय तक संरक्षित करने की दिशा में शोधार्थियों के साथ मीट कराई जा रही है। इसमें तमाम पहलुओं की बारीकियों को समझते हुए तय किया जाएगा कि इस दिशा में और बेहतर तरीके से कैसे काम किया जा सकता है।
- डा. त्रिवेणी दत्त, निदेशक, आइवीआरआइ
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