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दिल्ली-एनसीआर में कैसे जुड़ेगी सार्वजनिक सेवाएं? परिवहन सेवाओं को आपस में जोड़ना जरूरी

cy520520 2025-11-27 01:13:56 views 733

  

दिल्ली और एनसीआर में सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने के लिए सेवाओं को आपस में जोड़ना जरूरी है।



राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली समेत एनसीआर के शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सबसे पहले तो परिवहन सेवा को दिल्ली-एनसीआर के बीच आपस में लिंक करना होगा। दिल्ली में सिर्फ यहीं के रहने वाले लोग सफर नहीं करते बल्कि एक बड़ी संख्या में लोग एनसीआर के शहरों से यहां आते हैं और यहां से पड़ोसी शहरों में जाते भी हैं। ऐसे में परिवहन सेवा अगर आपस में जुड़ी रहेगी तो अधिक उपयोगी होगी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

मेट्रो और नमो भारत ट्रेन इसका एक बड़ा उदाहरण है। मेट्रो में तो रोजाना लाखों की संख्या में यात्री चलते ही हैं, नमो भारत भी जहां तक चल रही है, बड़ी संख्या में लोग उसका लाभ उठा रहे हैं। अनगिनत लाेगों को दिल्ली- मेरठ के बीच 82 किमी लंबे पूरे कारिडोर पर नमो भारत ट्रेन के जल्द दौड़ने का भी इंतजार है। ऐसा होने पर इस सेवा में भी यात्रियों की संख्या में तेजी से इजाफा होगा।

दिल्ली सरकार एक बार फिर से अंतरराज्जीय रूटों पर बसें शुरू करने जा रही है, जो वाकई एक अच्छा कदम है। दिल्ली में भी बसें घटने के बजाए न सिर्फ बढ़नी चाहिए बल्कि उनके फेरे यातायात जाम में फंसे बगैर तय वक्त पर पूरे हो सकें, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सार्वजनिक परिवहन के कुछ नए विकल्प भी तलाशे जाने चाहिए ताकि लोग निजी वाहनों पर निर्भरता छोड़कर उनकी ओर उन्मुख हो सकें।

दिल्ली की लचर परिवहन सेवा की एक अन्य वजह यहां बहुनिकाय व्यवस्था भी है। कुछ किसी निकाय के अधीन आता है तो कुछ किसी निकाय के अधीन। नतीजा, आपस में न तो कोई सामंजस्य रहता है और न ही कभी कोई बेहतर प्रयास ही किया जाता है। जब तक यह स्थिति बनी रहेगी, परिवहन सेवा भी ऐसे ही हिचकोले खाती रहेगी।

अब देखिए, दिल्ली में मेट्रो सेवा केंद्र सरकार के अधीन है जबकि बस सेवा दिल्ली सरकार के पास है। इसी तरह कुछ सड़कें लोक निर्माण विभाग की हैं, कुछ दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड, कुछ नई दिल्ली नगर पालिका परिषद और कुछ नगर निगमों के अधीन हैं। इस कारण अंतरविभागीय योजनाओं में भी हमेशा कोई झोल बना रहता है।

आपसी सामंजस्य न होने के कारण ही इतने साल से दिल्ली में बसें नहीं बढ़ पाईं। आटो रिक्शा की कैपिंग भी नहीं हटाई जा सकी है। बैटरी रिक्शा हर जगह जाम का सबब बन रही हैं। फीडर बसों को लेकर भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। कामन मोबेलिटी कार्ड भी बार बार लटकता ही रहा। मेट्रो के कोच बढ़ने और इसके नेटवर्क विस्तार की रफ्तार भी बीते वर्षों में धीमी ही रही। यहां तक कि निजी डीजल गाड़ियों पर भी कोई प्रतिबंध नहीं लग पा रहा है।

यातायात जाम के मुद्दे पर आएं और अब अगर सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइनिंग की बात करें तो वहां भी कमोबेश वही स्थिति बनती रही है। कहीं एनडीएमसी इलाके में बनी बनाई सड़कों पर भी पैसा लगाया जाता रहता है तो कहीं नगर निगम की सड़कों पर जब तब पैबंद लगाकर ही काम चला लिया जाता है। ऐसे में सड़कें भी परिवहन व्यवस्था को सुधरने नहीं देती।

हालांकि इस स्थिति से निपटने के लिए बैठकें तमाम होती रहती हैं, लेकिन अलग अलग विभागों की जिम्मेदारी आपस में तालमेल न होने से कभी पूरी नहीं हो पाती। किसी भी योजना में निवेश का रिटर्न तभी मिलता है जब उसे बेहतर ढंग से क्रियान्वित किया जाए। इसके लिए एकल प्राधिकरण होना अत्यंत आवश्यक है। अगर सारी परिवहन व्यवस्था एक प्राधिकरण के अधीन आ जाएगी तो तमाम योजनाओं पर अमल भी अच्छे से हो सकेगा। इसी सूरत में दिल्ली की परिवहन व्यवस्था सुधर सकती है अन्यथा तो यह साल दर साल और बदतर ही होती जाएगी।

नोट- संकायाध्यक्ष (अनुसंधान),योजना तथा वास्तुकला विद्यालय, दिल्ली के प्रोफेसर सेवा राम ने संजीव गुप्ता को बताया
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