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हरियाणा: खुद डॉक्टर नहीं बन पाए तो कम्पाउडर पिता ने बेटों बनाया डॉक्टर, बेटी बनी इंजीनियर

LHC0088 2025-11-26 03:37:43 views 935

  

कम्पाउडर पिता ने बेटों को बनाया डॉक्टर, बेटी बनी इंजीनियर।



अनीता सिंहमार, महम। कहते हैं अगर इरादा मजबूत हो तो हालात भी झुक जाते हैं। महम के वार्ड 13 में किराये के मकान में रहने वाले संजय मित्तल ने यह कहावत सच कर दिखाई। खुद डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह गया, लेकिन उन्होंने ठान लिया कि अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर डॉक्टर बनाएंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आज वही सपना हकीकत बन चुका है, उनकी बेटी डॉ. ईशा मित्तल और बेटा डॉ. राहुल मित्तल दोनों एमबीबीएस कर चुके हैं, जबकि सबसे छोटा बेटा कर्ण मित्तल दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है।

संजय मित्तल का बचपन संघर्षों से भरा रहा। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। उनके दादा को व्यवसायिक नुकसान के चलते करीब 45 वर्ष पहले अपना मकान बेचना पड़ा था। पढ़ाई में तेज होने के बावजूद परिस्थितियों ने उन्हें दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया। परिवार का पेट पालने के लिए उन्होंने महम के एक निजी अस्पताल में कर्मचारी के रूप में काम शुरू किया। मेहनत और ईमानदारी के चलते डॉक्टर ने उन्हें कम्पाउंडर की जिम्मेदारी सौंप दी।

पिछले 30 वर्षों से वे निजी अस्पताल में कम्पाउंडर के पद पर कार्यरत हैं। संजय बताते हैं कि जिस दिन पढ़ाई छोड़ी थी, उसी दिन निश्चय किया था कि अपने बच्चों को कभी मजबूरी में पढ़ाई नहीं छोड़ने दूंगा। उन्होंने ओवरटाइम काम कर, कर्ज लेकर और अपनी जरूरतें काटकर बच्चों की पढ़ाई पर हर संभव खर्च किया। वे कहते हैं कि घर नहीं बना सका, लेकिन तीनों बच्चों के भविष्य की नींव मजबूत बना दी। उनकी पत्नी पूनम ने भी पूरे मनोयोग से उनका साथ दिया।
तीनों बच्चों की कामयाबी की कहानी प्रेरणादायक

बड़ी बेटी डॉ. ईशा मित्तल ने 2020 में पीएमटी में आल इंडिया रैंक 181 प्राप्त की थी और पीजीआइएमएस रोहतक में सरकारी सीट पर एमबीबीएस में दाखिला लिया। अब वह अपनी इंटर्नशिप कर रही हैं। ईशा ने कहा कि मेरी कामयाबी मेरे माता-पिता के त्याग की देन है। लक्ष्य बनाकर मेहनत करने से सफलता निश्चित है। जरूरी नहीं कि कोटा या दिल्ली जाकर कोचिंग ली जाए, घर पर रहकर आनलाइन तैयारी से भी सफलता हासिल की जा सकती है।

बेटे राहुल मित्तल ने 2022 में पीएमटी परीक्षा में आल इंडिया रैंक 189 पाई और पीजीआइ रोहतक में एमबीबीएस के तीसरे वर्ष में पढ़ रहा है। राहुल ने कहा कि बारहवीं तक पढ़ाई के दौरान फोन या टीवी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एक बार लक्ष्य तय कर लिया जाए तो पूरी लगन से उस पर ध्यान देना चाहिए। सबसे छोटा बेटा कर्ण मित्तल दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। उसका भी दाखिला सरकारी सीट पर हुआ है।
मां पूनम का त्याग और अनुशासन बना सफलता की कुंजी

संजय की पत्नी पूनम ने बताया कि मैं रोज सुबह चार बजे उठती थी, साढ़े चार बजे बच्चों को पढ़ने के लिए उठाती और खुद नाश्ता तैयार करती थी। रात में 11-12 बजे तक उनके साथ जागती थी। मैंने बच्चों से कहा था कि जिस दिन तुम तीनों सफल हो जाओगे, उसी दिन मैं चैन से सो पाऊंगी।
घर नहीं बनाया, बच्चों का भविष्य बनाया

संजय मित्तल ने कहा कि शादी के बाद कभी घर बनाने की नहीं सोची। बस यह ठान लिया था कि बच्चों को पढ़ाना है। जरूरत पड़ी तो कर्ज लिया, पर बच्चों की पढ़ाई में कभी कमी नहीं आने दी। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहिए, टेलीविजन का सीमित प्रयोग करना चाहिए और गलत संगत से बचाना चाहिए।

कहते हैं कि मकान, गाड़ी, पैसा सब बीत जाता है, लेकिन बच्चों की सफलता ही माता-पिता का असली धन है। जिस दिन बच्चों ने सफलता की ऊंचाइयां छू लीं, उस दिन मैंने समझा कि मेरी मेहनत सफल हो गई।
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